मुजफ्फरपुर: ‘समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध.’ राष्ट्रकवि दिनकर ने ये पंक्तियां इतर संदर्भो में लिखी थीं. मगर, आजकल होने वाले लगभग तमाम चुनाव में मतदान के अनिच्छुक लोगों पर यह पूरी तरह फिट बैठती है.
एकबार पुन: देश में लोक सभा चुनाव की दुदुंभि बज चुकी है. मुजफ्फरपुर में 8वां चरण में यानी 7 मई को और पड़ोसी संसदीय क्षेत्र वैशाली में 9वां चरण में 12 मई को मतदान होगा. पिछले एक दशक में हुए मतदान के आंकड़े को देखा जाये तो 50-55 फीसदी मतदाता ही अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं. यानी हर 100 में 45-50 आदमी मतदान करने से या तो वंचित रह जाते या अनिच्छा की वजह से बूथ पर नहीं पहुंचते.
यदि यह मान भी लिया जाये कि इस 45 में बहुत लोग चाह कर भी मतदान नहीं कर पाये तो भी यह स्वीकार करना पड़ेगा कि ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं जिन्हें सरकार एवं प्रशासन के तमाम प्रयासों के बावजूद मतदान केंद्रों तक नहीं लाया जा सका. इसका मतलब यह कि उनकी इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं रही कि देश का भविष्य कैसा हो? आज जब आप इन पंक्तियों को पढ़ रहे होंगे तो आपके इर्द-गिर्द मतदाता जागरूकता दिवस मनाया जा रहा होगा. यह समझिए कि मतदान आपका कर्तव्य है. आपकी जिम्मेदारी है. इससे बच कर आप किसी-न-किसी रूप में अपनी आने वाली पीढ़ी से अन्याय करते हैं. हो सकता है कि महज एक वोट के अंतर से वह आदमी आपका भाग्यनियंता बन जाये, जिसे आप नहीं चाहते हैं. ऐसे में आप क्या करेंगे. सोचिए.
अपने जिले में महिलाओं, खासकर संपन्न तबके की महिलाओं में मतदान करने के प्रति अनिच्छा साफ देखी जाती है. सरकार बनाना महज सरकार बनाना नहीं, इतिहास बनाना है. ऐसे में देश की तकदीर लिखने में भला आप क्यों पीछे होना चाहेंगे. मतदान का समय बार-बार नहीं आता. आप अगर वोट नहीं देंगे, तो नैतिक रूप से उस संविधान के प्रति गुनहगार बनेंगे, जो आजादी के बाद हमें मिला है. इसने हमें नागरिक का दर्जा दिया है. चाहे अफसर हो या मजदूर, सबके वोट की कीमत इसने बराबर कहा है. यह बात दीगर है कि आपने किसी मुद्दे को लेकर कभी वोट वहिष्कार का निर्णय किया हो या सामूहिक निर्णय में आपकी भी भागीदारी हो. यह जान लीजिए कि लोकतंत्र में वोट वहिष्कार किसी समस्या का निदान नहीं. उनका वहिष्कार कीजिए जो अपने फायदे में लगे रहते हैं. अपनी भड़ास आप मतदान करके ही निकाल सकते हैं.