मुजफ्फरपुर: भारतीय जो नील के खेती से जुड़े हुए हैं. उनकी दयनीय स्थिति काे बहुत हद तक जानने के बाद यहां आया हूं. मैं अपने काम को सच्ची भावना व सहयोग के साथ करुंगा. अगर मुझे निचले स्तर के प्रशासन का सहयोग मिले. चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के नींव डालने आये राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 14 अप्रैल 1917 को तिरहुत कमिश्नर एलएफ मॉर्शहेड के नाम पत्र लिख अपनी आवाज अंगरेजी हुकूमत तक पहुंचायी थी.
भारत सरकार के पब्लिकेशन डिविजन की पुस्तक द कलेक्टेड वर्क ऑफ महात्मा गांधी में इस ऐतिहासिक पत्र का जिक्र किया गया है. गांधी वाग्मंय के पृष्ठ 361 व 362 में में कमिश्नर को संबोधित करते हुए गांधी जी ने दो पत्र लिखा है. इसमें लिखा है कि अगर आप अपने साथ साक्षात्कार का मौका दें तो ताकि मैं आपके सामने किसानों की समस्या की जांच – पड़ताल का यथाथ को स्पष्ट कर सकूं. अगर संभव हो तो नीचले स्तर के प्रशासन के सहयोग को सुनिश्चित कर इस कार्य में मदद करें. गांधी जी ने दूसरे पत्र अपने निकटतम मित्र के द्वारा नील की खेती करने वाले किसानों के दुख: दर्द का जिक्र करते हुए.
कहा कि मुझे इस बात का डर है कि शायद में मैं अपने उदेश्य के वास्तविक पहलू को आपके सामने प्रस्तुत नहीं कर पाया हूं. मैं इसको फिर दुहरा रहा हूं. मुझे इस बात की चिंता है कि अपने दोस्त के बयान को गहराई या सच्चे तरीके समझने में असफल रहा. जिन्होंने मेरे नाम से पत्र को संबोधित किया था. जो नील के मामले से जुड़ा हुआ है. मैं इस बात का पता लगाना चाहता हूं कि मैं उनकी सहायता कर सकता हूं या नहीं. मेरा उदेश्य सम्मान के साथ शांति स्थपित करना है.