मुहर्रम. इमाम हुसैन की शहादत पर मातम में डूबा शिया समुदाय, जगह-जगह से निकाला गया जुलूस
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हक का शहनाशा मारा गया है राहे खुदा में
मुहर्रम. इमाम हुसैन की शहादत पर मातम में डूबा शिया समुदाय, जगह-जगह से निकाला गया जुलूस काले लिबास में जुटे सैकड़ों लोग, मसजिद में कराया गया यौमे आशुरा का अमाल मुजफ्फरपुर : प्यारे नबी का प्यारा नवासा, मिल्लत का सैदा, हक का शहनाशा, प्यारे नबी का प्यारा नवासा, दो दिन तक भूखा, दो दिन का […]
काले लिबास में जुटे सैकड़ों लोग, मसजिद में कराया गया यौमे आशुरा का अमाल
मुजफ्फरपुर : प्यारे नबी का प्यारा नवासा, मिल्लत का सैदा, हक का शहनाशा, प्यारे नबी का प्यारा नवासा, दो दिन तक भूखा, दो दिन का प्यासा, मारा गया है राहे खुदा में, यह मखसूस नोहा पढ़ कर लोगों की आंखें गीली हो गयी. इसी नोहा के साथ दस मुहर्रम पर इमाम हुसैन की शहादत का गम मना रहे तमाम अकीदतमंदों ने मातम मनाया. ब्लेड व जंजीर के मातम से अकीदतमंदों के सीने लहुलूहान थे. हालांकि सीने से टपकते खून की परवाह उन्हें नहीं थी.
कमरा मुहल्ला, दाउदपुर, हसन चक बंगरा, मेहदी हसन चौक से लकर करबला तक सुबह से ही मामतम का दौर चलता रहा. सैयद इमाम हुसैन के गम में डूबे लोंगों को शारीरिक पीड़ा का आभास भी नहीं था. छोटे से बड़े तक सभी काले लिबास में ब्लेड से अपना सीना छलनी कर रहे थे. या हुसैन की नारों के साथ जब ब्लेड लगी अंगुलिया सीने पर लगती खून की धार बहने लगती. फिर लगातार उसी कटे हगह पर ब्लेड लगते रहे व अजादारों का सीना छलनी होता रहा. यह आलम सुबह से दोपहर तक चला.
मेहदी हसन चौक पर ब्लेड व जंजीर का मातम देख अन्य लोगों के आंखें में भी आंसू आ गये. दस मुहर्रम पर इमाम के गम में शिया समुदाय के सैकड़ों अकीदतमंदों ने यौम-ए-आशुरा की फूल लेकर ब्रह्मपुरा स्स्थित मीर हसन वक्फ स्टेट बड़ा इमामबाड़ा पहुंचे. इसके बाद अजादार दाउदपुर इमामबाड़ा से अलम व ताजिया का जुलूस सेकर बड़ा इमामबाड़ा पहुचे.
जुलूस के बाद यौमे आशुरा का अमाल मसजिद में कराया गया.अलाम के बाद भगवानपुर से अलम व ताजिया का जुलूस आते ही लोग नोहा पढ़ते हुए दरबारे हुसैनी पहुंचे दिया पानी ने मेहमां बुला के, हाय मेरे सैयद को मारा.ब्रह्मपुरा स्थित दरबारे हुसैनी में जब इमाम का ताबूत व अब्बास का अलम निकला तो अजादारों में कोहराम मच गया. गम में डूबे लोग अलम व ताबूत को देखते हुए मातम करने लगे. जब आशुरा का जुलूस दरबारे हुसैनी से निकला तो लेागों ने नोहा पढ़ा. नोहा के इन पंक्तियों कूफियो ने करबला में बुला के, हाय मेरे सैयद को मारा, दिया पानी न मेहमां बुला के, हाय मेरे सैयद को मारा पंक्तियां पढ़ते हुए लोग मातम कर रहे थे.
यह जुलूस मातम करते हुए मेहदी हसन चौक पहुंचा. यहां अजादार ब्लेड व जंजीर से मातम करते हुए आगे बढे. हाय मजलूम जो मारा गया, था रसूले खुदा का नवासा, इस नोहा को पढ़ते हुए लोग आगे बढ़ रहे थे. यह मातमी जुलूस मीर हसन वक्फ स्टेट पहुंचा.यहां मातमदारों ने कमा का मातम किया तो लेाग खून से लहुलूहान हो गये. लेकिन करबला के शहीदों की अकीदत के साथ नजराना पेश किया.
इसके बाद अजादार मसजिद में जमा हुए. आखिरे आशुरे की इजारत पढ़ायी गयी. अजाखाने में फाकाशिकनी की मजलिस हुई.
इसके बाद दिन भर भूखे प्यासे अजादारों ने अपना फाका तोड़ा. इसके बाद फिर मजलिस हुई.
करबला में जुटे लोग, देर रात तक हुई नोहाखानी, जार-जार बहे आंसू
कमरा मुहल्ला से निकला जुलूस
कमरा मुहल्ला से सुबह सैकड़ों की संख्या में लोग जुलूस लेकर बड़ी करबला तक पहुंचे. जुलूस में शामिल लोग हुसैन का मातम करते हुए चल रहे थे. यह जुलूस बड़ी करबला पहुंची. इसके बाद लोगों का जत्था वापस हो गया. दोपहर में लोगों ने ताजिये व फूल को नदी तट पर जाकर दफन किया. कमरा मुहल्ला स्थित मैदान में शाम-ए-गरीबां की मजलिस हुई. जिसे मौलाना सैयद काजिम शबीब ने बयान फरमाया. इस माैके पर उन्होंने कहा कि बड़े काम के लिए बड़ी चिंता की जरूरत है. हुसैन के काम को समझना है, तो किसी एक धर्म के तहत नहीं समझा जा सकता.
सरैयागंज टावर चौक पर मुहर्रम के ताजिया जुलूस में शामिल लोग.
खुद को जंजीर से लहूलुहान करते जुलूस में शामिल लोग.
देर रात तक खेला गया अखाड़ा
सुन्नी समुदाय के लोगों ने मुहर्रम पर विभिन्न मुहल्लो में देर रात तक अखाड़ा खेला गया. कमरा मुहल्ला, मझौलिया, माड़ीपुर, सातपुरा, रामबाग चौरी सहित कई मुहल्लों की कमेटियों ने ताजिये व अखाड़ा निकाला गया. लेागों ने तलवारबाजी, भालेबाजी सहित परंपरागत हथियारों का खेल प्रस्तुत किया. इमामगंज रोड में सुबह से काफी देर तक करतब का दौर चलता रहा. रात में करबला के समीप विभिन्न मुहल्लों की कमेटियां अपने अखाड़ा टीम के साथ प्रदर्शन करती रही.
मातम मनाते लोग.
रात में हुई शाम-ए-गरीबों की मजलिस
कमरा मुहल्ला में रात में शाम-ए-गरीबां की मजलिस हुई, जिसे बयान फरमाते हुए मौलाना काजिम शबीब ने कहा कि करबला में इमाम 28 रजत को अपना काफिला लेकर नाना का दीन बचाने के लिए व इंसानियत की हिफाजत के लिए घर से चले थे. जब वे दो मुहर्रम को करबला पहुंचे तो इमाम ने यहां बनी असद से जमीन खरीद ली. इसके बाद उन्होंने जमीन को वापस दे दिया व कहा कि मेरी शहादत के बाद यहां मेरी कब्र बनेगी. इसका मकसद यह था कि इमाम ने यह तालीम दी कि नाजायज जमीनों पे किसी की मैयत दफन नहीं होनी चाहिए.
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