मुजफ्फरपुर : माता के पांचवें रूप स्कंदमाता की पूजा गुरुवार को की गयी. शहर से गांव तक मां का जयकारा गूंजता रहा. पूजन-अर्चन व आरती में काफी भीड़ जुट रही है. मां का जयकारा व मंत्रोच्चार की गूंज अनवरत सम्मोहित कर रही है. नवरात्र का एक-एक दिन श्रद्धालुओं के लिए खास होने लगा है. शुक्रवार को मां के छठवें स्वरूप कात्यायनी
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दुर्गापूजा. आस्था से पूजी गयीं स्कंदमाता, कात्यायनी की आज होगी पूजा
मुजफ्फरपुर : माता के पांचवें रूप स्कंदमाता की पूजा गुरुवार को की गयी. शहर से गांव तक मां का जयकारा गूंजता रहा. पूजन-अर्चन व आरती में काफी भीड़ जुट रही है. मां का जयकारा व मंत्रोच्चार की गूंज अनवरत सम्मोहित कर रही है. नवरात्र का एक-एक दिन श्रद्धालुओं के लिए खास होने लगा है. शुक्रवार […]
की पूजा होगी. पुराणों में लिखा है
कि मां ने महर्षि कात्यायन के यहां जन्म लिया, इस कारण इस रूप का नाम कात्यायनी हो गया.
भगवान स्कंद ‘कुमार कार्तिकेय’ नाम से भी जाने जाते हैं. ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे. पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कह कर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है. इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है. स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं. इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है. बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में व नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है, उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं. इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है. ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं.
इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है. सिंह भी इनका वाहन है.
नवरात्रि-पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है. इस चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है. वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर हो रहा होता है. साधक का मन समस्त लौकिक, सांसारिक व मायावी बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना मां स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णतः तल्लीन होता है. इस समय साधक को पूर्ण सावधानी के साथ उपासना की ओर अग्रसर होना चाहिए. उसे अपनी समस्त ध्यान-वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए साधना के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए. मान्यता है कि मां स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं.
इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है. उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है. स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी हो जाती है. यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है, अतः साधक को स्कंदमाता की उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए.
शेखपुर िस्थत माई स्थान में पूजा-अर्चन करतीं श्रद्धालु.
जुरनछपड़ा िस्थत महामाया स्थान में पूजा-अर्चना करते श्रद्धालु.
उपासक को मिलता है अलौलिक तेज. सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है. एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव उसके चतुर्दिक परिव्याप्त रहता है. यह प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता रहता है. हमें एकाग्रभाव से मन को पवित्र रखकर मां की शरण में आने का प्रयत्न करना चाहिए. इस भवसागर के दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ बनाने का इससे उत्तम उपाय दूसरा नहीं है.
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