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फांसी स्थल के रास्ते पर गूंजता है वंदे मातरम

मुजफ्फरपुर: शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा के उन रास्तों पर आज भी वंदे मातरम की आवाज गूंजती है, जिन रास्तों से होकर शहीद खुदीराम बोस को फांसी स्थल पर लेकर जाया जा रहा था. 11 अगस्त 1908 को अहले सुबह जब अंग्रेजी हुकूमत के सिपाही खुदीराम बोस को केंद्रीय कारा के उस काल कोठरी से […]

मुजफ्फरपुर: शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा के उन रास्तों पर आज भी वंदे मातरम की आवाज गूंजती है, जिन रास्तों से होकर शहीद खुदीराम बोस को फांसी स्थल पर लेकर जाया जा रहा था. 11 अगस्त 1908 को अहले सुबह जब अंग्रेजी हुकूमत के सिपाही खुदीराम बोस को केंद्रीय कारा के उस काल कोठरी से फांसी के लिये ले जा रहे थे, तब खुदीराम बोस के चेहरे पर मुस्कुराहट थी.

वह फांसी स्थल पर जाने के दौरान वंदे मातरत के नारे लगा रहे थे. इस दौरान वार्ड में सोये कैदी भी उठ कर अपने-अपने बैरक से टकटकी लगाये उन्हें देखने लगे थे. केंद्रीय कारा में 14 साल से सजा काट रहे कैदी व जेल की व्यवस्था देखने व रखवाली करने वाले कैदी गुड्डू कहते हैं कि 11 अगस्त की सुबह जब भी आती है, फांसी स्थल के रास्ते में वंदे मातरम की गूंज सुनाई देने लगती है. अन्य दिनों के अपेक्षा 11 अगस्त की सुबह को इन रास्तों पर अजीब सी एक आहट सुनाई देती है जो सब को अपनी ओर खिंचती है.

खंडहर वार्ड बने हैं खुदीराम के गवाह. खुदीराम बोस को जिस काल कोठरी में रखा गया था, उसके आसपास में आज भी खंडहर बने कैदियों के वार्ड उनकी फांसी के गवाह बने हुए हैं. उन वार्डों में उस वक्त उन कैदियों को रखा जाता था, जो अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करते थे. जेल के सुरक्षाकर्मी की मानें तो 11 अगस्त की अहले सुबह जब उन वार्ड के पास से गुजरते हैं तो उसमें कैदियों की हलचल सी महसूस होने लगती है. सुरक्षाकर्मी कहते हैं कि उन वार्ड को आज भी जेल प्रशासन की ओर से धरोहर के रूप में संभाल कर रखा गया है.
सुबह 3:55 बजे घंटी बजते ही उठ गये कैदी. घड़ी में जैसे ही सुबह के 3:55 बजे बजे, जेल की व्यवस्था देखने व रखवाली करने वाले कैदी गुड्डू व उमेश सिंह और वार्ड में बंद कैदियों की आंखें नम हो गयीं. सिर्फ गुड्डू ही नहीं, बल्कि शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा के 1768 सजायाफ्ता व सजावार सभी बंदियों की आंखों में आंसू थे. केंद्रीय कारा में काम करने वाले जफीर कहते हैं कि इस समय तक जेल के वार्ड में बंदी उठ कर शोर मचाना शुरू कर देते हैं, लेकिन बुधवार की सुबह सभी बंदी शोर मचाने की बजाय शोक में हैं. हर कैदी अपने-अपने वार्ड की खिड़की से शहीद खुदीराम बोस की फांसी स्थल की ओर टकटकी लगाये चुपचाप देख रहे थे.

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