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लोक गायिका मालिनी पहुंचीं तहजीब का केंद्र रहे चतुर्भुज स्थान देखने, बोल पड़ीं पांच साल में बदल गया है चतुर्भुज स्थान

मुजफ्फरपुर: चतुर्भुज स्थान यानी संगीत साधना का ऐतिहासिक धरोहर. समय के साथ चीजें भले ही बदल गयी हो. लेकिन यहां की मिट्टी में अभी भी उस्तादों की कद्र बाकी है. शायद यही कारण था कि पद्मश्री मालिनी अवस्थी मुजफ्फरपुर पहुंचने के क्रम में सबसे पहले चतुर्भुज गयीं. गाड़ी से ही संगीत साधकों की विरासत को […]

मुजफ्फरपुर: चतुर्भुज स्थान यानी संगीत साधना का ऐतिहासिक धरोहर. समय के साथ चीजें भले ही बदल गयी हो. लेकिन यहां की मिट्टी में अभी भी उस्तादों की कद्र बाकी है. शायद यही कारण था कि पद्मश्री मालिनी अवस्थी मुजफ्फरपुर पहुंचने के क्रम में सबसे पहले चतुर्भुज गयीं. गाड़ी से ही संगीत साधकों की विरासत को देखा. फिर होटल गयीं. वे सोमवार को महावीर पीठ की ओर से आयोजित भजन संध्या में श्रोताओं के बीच कार्यक्रम प्रस्तुत करने आयी थीं. प्रभात खबर से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि पांच वर्ष पूर्व जब वे मुजफ्फरपुर आयी थी, तब भी वहां गयी थी.
लेकिन अब काफी कुछ बदला सा दिखा. समय के साथ काफी कुछ बदलाव मिला. कभी साधना की जमीन कहा जाने वाला चतुर्भुज स्थान पहले जैसा नहीं रहा. अब न ऐसे उस्ताद रहे न ही गाने वाले. लोकगायिका ने कहा कि हमारे साथ तबले पर संगत करने के लिए बनारस से आये राजेश ने कहा था कि उनके मामा का घर भी वहीं है. गुरु नंद लाल मिश्र उनके मामा है. प्रभात रंजन जी की कोठागोई उपन्यास की भूमिका में मैंने चतुर्भुज स्थान पर लिखा था. इसलिए यह देखने की इच्छा थी कि संगीत की विरासत संभालने वाला चतुर्भुज स्थान अब कैसा दिखता है. बस गाड़ी के अंदर से ही देख कर चली आयीं.

बातचीत के क्रम में उन्होंने कहा कि भोजपुरी के नाम पर कुछ लोग अश्लीलता का प्रचार कर रहे हैं. गूगल में भोजपुरी सर्च करने पर जो कुछ आता है, उससे मन क्षुब्ध हो जाता है. लोकगीतों में जो गायक साधना कर रहे हैं, उन्हें ऐसे गायकों को बहिष्कार करना चाहिए. हमलोग भोजपुरी का आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग तो करते हैं, लेकिन हमें यह देखना होगा कि हमारी भोजपुरी कैसी हो गयी है. उसे प्रतिष्ठा दिलाना हम सभी का काम है. उन्हेांने कहा कि अश्लीलता रोकने के लिए फिल्मों की तरह भोजपुरी ऑडियो वीडियो का सेंसर होना चाहिए. इसके लिए हम लोग जल्द ही कला संस्कृति मंत्रालय को ज्ञापन देकर यह मांग करेंगे. इससे बहुत हद तक भोजपुरी के नाम पर अश्लीलता पर विराम लगेगा.
संरक्षण नहीं हुआ तो विलुप्त हो जायेगा लोकगीत
लोकगायिका ने कहा कि लोकगीतों की सबसे बड़ी चिंता इसके संरक्षण की है. चार-पांच वर्षों के दौरान यह काम नहीं हुआ तो आने वाले समय में हमारी धरोहर विलुप्त हो जायेगी. उसके बाद कोई भी अपनी विरासत को नहीं जान पायेगा. उन्होंने कहा कि 15 वर्ष पहले तक रोडियो व टीवी से संरक्षण किया जाता था. लेकिन अब वह सिलसिला भी टूट गया. उन्होंने कहा कि संरक्षण के लिए सरकार व कलाकारों दोनों को आगे आना होगा. आजकल गौना, ब्याह, मड़वा, विदाई, बुआई, पिसाई सहित जीवन के हर पहलू से जुड़े गीत लुप्त हो गये हैं. इसका कारण संयुक्त परिवार का टूटना है. दादी-नानी से लोक कंठ में बसे गीत अब कोई नहीं सुनता. ऐसे में संरक्षण कैसे होगा. जिन कलाकारों ने इसकी साधना की है. उन्हें पुस्तक के रूप में व धुनों के साथ उसको सहेजे. तभी हमारी सांस्कृतिक पहचान बच पायेगा.
जीवन शैली बदलने का लोककलाओं पर असर
पद्मश्री मालिनी ने कहा कि हमारे पर्व-त्योहार व शादी की विधियों की परंपरा टूटने से लोकगीत गायब हो रहे हैं. जनेऊ के गीत अब नहीं होते, इसका कारण है कि शादी के समय ही जनेऊ होता है. बटुक बरुआ के भीख मांगने के गीत अब कौन गाता है. जब बुआ व चाची ही साथ नहीं रहती तो गीत गाकर कौन बतायेगा. यह सब हमारी जीवन शैली बदलने के कारण हुआ है. मैंने पहले शास्त्रीय संगीत में साधना की फिर लाेकगीतों को विस्तार दिया. बिना साधना किसी भी क्षेत्र में पहचान नहीं मिलती.

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