149 राजनीतिक दलों वाला देश जो राजतंत्र के अवसान तक हिंदू राष्ट्र था, आज उथल-पुथल से जूझ रहा है. वजह है नये संविधान का निर्माण. इसमें सबसे बड़ा मुुद्दा समान नागरिकता का है. इसमें चार प्रकार की नागरिकता का प्रावधान है. मुख्य रूप से वंशज, जन्मसिद्ध व अंगीकृत की परिभाषा पर मधेशियों को आपत्ति है. तीन माह पहले पटना में नेपाल सद्भावना पार्टी के बड़े नेताओं ने कहा था कि भारतीय कन्या से ब्याह रचाने वाले को अंगीकृत नागरिकता मिलेगी. यानी उस महिला व बच्चे को नेपाल में सरकारी व संवैधानिक पद पर स्थान का अधिकार नहीं होगा. वो वोट तो दे सकेंगे, पर चुनाव नहीं लड़ पायेंगे. अभी सिर्फ बिहार से 20 लाख बेटियां नेपाल की बहू हैं, जबकि नेपाल की आधी आबादी में 1.40 करोड़ लोग मधेशी मूल के हैं. नये संविधान के प्रावधानों के कारण ये नेपाल के होकर भी वहां के नहीं रह गये हैं.
पिछले दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह ने इस बात का जिक्र किया था. कहा था कि नेपाल सरकार मधेशियों के साथ हिंसात्मक व दंडात्मक कार्रवाई कर रही है, जो पूरी तरह से गलत है. नेपाल के राजकोष व वित्तीय व्यवस्था सुधारने में मधेशियों को पूरा योगदान है, लेकिन नये संविधान में यहां की बहू व बेटियों को जो अधिकार मिलना चाहिए था, वह नहीं दिया गया. 2006 में मधेश विद्रोह के दौरान 22 सूत्री मांग पर समझौता हुआ था. अंतरिम संविधान में समझौता के प्रावधानों को शामिल किया था, लेकिन नये संविधान में उन प्रावधानों को हटा दिया गया.
बताया कि सवाल एक मधेश प्रदेश का नहीं है, बल्कि जनसंख्या के आधार पर संसद की सीट का निर्धारण, हिंदी को मान्यता, भारत की नेपाल में ब्याही बहू-बेटियों को उनके अधिकार का है. इस पर फैसला हो जिससे यहां की बहू-बेटियां नेपाल में ब्याह होने के बाद विदेशियों की तरह न रह सकें.