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एक जीवाणु मरा, हजारों अज्ञात आसपास

एक जीवाणु मरा, हजारों अज्ञात आसपास मेडिकल साइंस ने माना स्मॉल पॉक्स का कीटाणु की हुई समाप्तिलगातार बढ़ रही जीवाणुओं की संख्या, संक्रमण से बचाव मुश्किलवरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर . मेडिकल के छात्रों के लिए अनंत नारायण लिखित माइक्रोबाइलॉजी की पुस्तक में यह लिखा है कि दुनिया से स्मॉल पॉक्स का अंत हो गया. सबसे अंतिम […]

एक जीवाणु मरा, हजारों अज्ञात आसपास मेडिकल साइंस ने माना स्मॉल पॉक्स का कीटाणु की हुई समाप्तिलगातार बढ़ रही जीवाणुओं की संख्या, संक्रमण से बचाव मुश्किलवरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर . मेडिकल के छात्रों के लिए अनंत नारायण लिखित माइक्रोबाइलॉजी की पुस्तक में यह लिखा है कि दुनिया से स्मॉल पॉक्स का अंत हो गया. सबसे अंतिम केस 1979 में बांग्लादेश में देखा गया था. उसके बाद से अब तक स्मॉल पॉक्स का कोई केस नहीं देखा गया. किताब में कहा गया है कि यदि कोई स्मॉल पॉक्स का केस खोज दे तो विश्व स्वास्थ्य संगठन उसे पुरस्कृत करेगी. लेकिन यह बहुत खुश होने वाली बात नहीं है. हजारों वायरस में से सिर्फ एक वायरस को हम मिटा पाये हैं. जबकि हजारों वायरस व बैक्टीरिया हमारे चारों तरफ घूम रहे हैं. इसमें से कुछ गिनी चुनी बीमारियों को ही हम जानते हैं. अन्य तरह की बीमारियों की खोज के लिए वर्षों रिसर्च की प्रक्रिया चलती है.बीमारी नहीं, लक्षणों का होता है इलाजवायरस व बैक्टीरिया जनित वैसी बीमारियों का इलाज सिर्फ लक्षणों के आधार पर किया जाता है, जिन्हें मेडिकल साइंस नहीं जानता. बच्चों की जानलेवा बीमारी एइएस इसका उदाहरण है. ऐसे इलाज में बीमारी नहीं जाती, सिर्फ लक्षण दवा के प्रभाव से कम हो जाते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी स्स्थिति में मेडिकल साइंस लाचार होता है. उसके पास दूसरा चारा नहीं होता. ऐसी ही लाचारगी एंटीबायोटिक्स के रेसिस्ट करने से भी होगी. बिना जरूरत इन दवाओं का इतना उपयोग हो रहा है कि आने वाले वर्षों में साधारण सा इंफेक्शन का इलाज भी नहीं हो पायेगा. एंटीबायोटिक्स काम ही नहीं करेगी. नतीजा लोगों को बचाना संभव नहीं होगा. प्रतिरक्षण भी नहीं सौ फीसदी बचावकई जानलेवा बीमारियों से बचाव के लिए बच्चों को टीका दिया जाता है. लेकिन यह टीका भी सौ फीसदी बचाव नहीं करता. कई बच्चे को टीबी से बचाव के लिए बीसीजी, डीप्प्थीरिया व कुकुरखांसी से बचाव के लिए डीपीटी का टीका दिया जाता है. लेकिन अधिकतर कुपोषित बच्चे टीका लेने के बाद भी इस बीमारी की चपेट में आ जाते हैं. एक बार बच्चों को हो गया तो बार-बार उसके संक्रमण का खतरा बना रहता है.खुद खरीद कर नहीं खाये दवाश्वांस रोग विशेषज्ञ डॉ.विजय कुमार कहते हैं कि लोग साधारण सरदी बुखार होने पर भी बाजार से तीन-चार एंटीबायोटिक्स खरीद कर खा लेते हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि वायरल फीवर में एंटीबायोटिक्स का रोल नहीं होने के बाद भी इसका उपयोग करते हैं. इसका बुरा असर शरीर पर पड़ता है. दूसरी बात यह कि एंटीबायोटिक्स दवाओं का कोर्स होता है. यदि दवा की मात्रा व कोर्स पूरा नहीं किया जाये तो यह शरीर में रेसिस्ट कर जाता है. यानी बाद में जब वाकई एंटीबायोटिक्स की जरूरत होती है तो यह दवा काम नहीं करता. लोगों को चाहिए कि वह पूछ कर दवा नहीं खाये.

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