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प्रदेशों में मिली सूप-दउरा को पहचान

मुजफफरपुर: लीची के बाद अब मुजफ्फरपुर की पहचान सूप दउरा से हो रही है. यहां के बने सूप दउरा की मांग अन्य राज्यों में है. खासकर छठ के समय यह मांग काफी बढ़ जाती है. अन्य प्रदेशों में रहने वाले लोग छठ के लिए यहां के बने सूप दउरा की मांग करते हैं. बढ़ती मांग […]

मुजफफरपुर: लीची के बाद अब मुजफ्फरपुर की पहचान सूप दउरा से हो रही है. यहां के बने सूप दउरा की मांग अन्य राज्यों में है. खासकर छठ के समय यह मांग काफी बढ़ जाती है. अन्य प्रदेशों में रहने वाले लोग छठ के लिए यहां के बने सूप दउरा की मांग करते हैं. बढ़ती मांग को देखते हुए अब बाहर के कारोबारी छठ से एक महीने पहले ही यहां से बनी सामग्री मंगा रहे हैं. छठ के समय पश्चिम बंगाल व उड़ीसा में यहां के सूप दउरा की मांग अधिक होती है.

मांग के कारण शहर में यह कारोबार काफी बढ़ गया है. हालांकि यहां के कारीगर मांग के अनुसार इसकी आपूर्ति नहीं कर पाते. इसका कारण इस व्यवसाय के लिए कुटीर उद्योग नहीं है. इस पेशे से जुड़े परिवार ही दिन भर मेहनत कर सूप, दउरा, डाला व डगरा बनाते हैं.

सावन से ही शुरू हो जाता है बुनना. शहर के करीब 500 परिवार सावन महीने से ही सूप दउरा बुनने में लग जाते हैं. बावजूद मांग के हिसाब से वे बाजार में आपूर्ति नहीं कर पाते. इमामगंज में इसका कारोबार करने वाले दिनेश कहते हैं कि शहर में बनी सामग्री से काम नहीं चलता. हमलोग उतना बना ही नहीं सकते. इसलिए दरभंगा व सीतामढ़ी से सूप मंगा कर बेचते हैं. इस बार भी ऐसा ही हुआ है. शहर में बने सूप दउरा दूसरे राज्यों में चली गयी. सूप बनाने वाले कारीगर जयशंकर बताते हैं कि यहां का सूप मजबूत होता है. बांस की कमानी को बांधने का तरीका ही महत्वपूर्ण होता है. यहां के बने बांस के कोई भी सामान में कारीगर मेहनत करते हैं, इसलिए मजबूती दिखती है.

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