महाअष्टमी पर उल्लास में डूबा शहरमां दुर्गा के दर्शन के लिए शहर में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़शाम ढलने के साथ ही परवान चढ़ा दुर्गा पूजा का मेलाशहर के मशहूर पूजन स्थलों पर लगा लोगों का तांतारोशनी से चकाचौंध पंडालों ने लोगों का मन मोहा वरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर भक्तों की आस्था व मेले का उल्लास. हर तरफ बस मां के दर्शन की लालसा. रोशनी से चकाचौंध पंडालों में भक्तों की आंखें मां का दर्शन कर तृप्त हो रही थीं. मां की कृपा की कामना करते लोग आगे बढ़ रहे थे. उल्लास का ऐसा माहौल कि हर तरफ लोगों का तांता. शाम ढलते ही लोगों का करवां बढ़ता गया. शहर के मशहूर पूजन स्थलों पर लोग मां के दर्शन को लालायित थे. महाअष्टमी पर उमड़ी लोगों की भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी. रंगबिरंगे लाइटों से सजे मां दुर्गा के आकर्षक पंडाल लोगों का मन मोह रहे थे. जैसे-जैसे रात हुई, भीड़ भी बढ़ती गयी. शहर के देवी मंदिर रोड व हरिसभा में भक्तों की काफी भीड़ रही. बंगाली समुदाय की ओर से हरिसभा में की जा रही मां दुर्गा की पूजा देखने के लिए सभी मोहल्ले से लोग पहुंचे. बंगला विधि से ढाक के साथ की जा रही मां की आरती ने लोगों का मन मोह लिया. भक्तों की आस्था का केंद्र मां बागलामुखी मंदिर में भी शाम से लोगों की भीड़ बढ़ने लगी. तांत्रिक विधि से की जा रही यहां की पूजा लोगों के आकर्षण का केंद्र बना. सुबह में कई पूजन स्थलों पर खुला मां का नेत्रमंगलवार की अहले सुबह से ही कई पूजन स्थलों पर मां दुर्गा की कालरात्रि रूप की पूजा की गयी. इसके बाद मां दुर्गा का नेत्र खोला गया. सुबह साढ़ नौ बजे के बाद महाअष्टमी की पूजा की गयी. मंगलवार की शाम होते ही शहर की रौनक देखने लायक थी. रंगबिरंगी रोशनी से नहाये शहर में मेले का अद्भुत नजारा दिख रहा था. हर तरफ मेले का उल्लास. पूजा समितियों की ओर से बनाये गये पंडाल लोगों का मन मोह रहे थे. पंकज मार्केट स्स्थित कटक रेलवे स्टेशन का दृश्य लोगों का मन मोह रहा था. अघोरिया बाजार स्स्थित मां दुर्गा की आकर्षक प्रतिमा भी लोगों को बरबस मन मोह रही थी. कल्याणी पर मां की आकर्षक प्रतिमा सहित लाइटिंग व दुर्गा स्थान मंदिर के पास भव्य लाइटिंग के साथ आकर्षक साज सज्जा भी भक्तों का ध्यान खींच रहा था.महानवमी आज, ऐसे करें पूजनमां दुर्गा की प्रसन्नता के लिए कभी भी उपासना की जा सकती है. शास्त्राज्ञा में चंडी हवन के लिए किसी भी मुहूर्त की अनिवार्यता नहीं है, लेकिन नवरात्रि में इस आराधना का विशेष महत्व है. इस समय के तप का फल कई गुना व शीघ्र मिलता है. इस फल के कारण ही इसे कामदूधा काल भी कहा जाता है. देवी या देवता की प्रसन्नता के लिए पंचांग साधन का प्रयोग करना चाहिए. पंचांग साधन में पटल, पद्धति, कवच, सहस्त्रनाम व स्रोत हैं. पटल का शरीर, पद्धति को सिर, कवच को नेत्र, सहस्त्रनाम को मुख तथा स्रोत को जिह्वा कहा जाता है. सहस्त्रनाम में देवी के एक हजार नामों की सूची है. इसमें उनके गुण हैं व कार्य के अनुसार नाम दिये गये हैं. सहस्त्रनाम के पाठ करने का फल भी महत्वपूर्ण है. इन नामों से हवन करने का भी विधान है. इसके अंतर्गत नाम के पश्चात नम: लगाकर स्वाहा लगाया जाता है. हवन की सामग्री के अनुसार उस फल की प्राप्ति होती है. सर्व कल्याण व कामना पूर्ति हेतु इन नामों से अर्चन करने का प्रयोग अत्यधिक प्रभावशाली है. इसे सहस्त्रार्चन के नाम से जाना जाता है. सहस्त्रार्चन के लिए देवी की सहस्त्र नामावली का अर्चन करना चाहिए. इस नामावली के एक-एक नाम का उच्चारण करके देवी की प्रतिमा पर, उनके चित्र पर, उनके यंत्र पर या देवी का आह्वान किसी सुपारी पर करके प्रत्येक नाम के उच्चारण के पश्चात नम: बोलकर भी देवी की प्रिय वस्तु चढ़ाना चाहिए. जिस वस्तु से अर्चन करना हो, वह शुद्ध, पवित्र, दोष रहित होना चाहिए………………………………………………ऐसे करें मां को अर्चनअर्चन में बिल्व पत्र, हल्दी, केसर या कुमकुम से रंग चावल, इलायची, लौंग, काजू, पिस्ता, बादाम, गुलाब के फूल की पंखुड़ी, मोगरे का फूल, किसमिस, सिक्का आदि का प्रयोग शुभ व देवी को प्रिय है. यदि अर्चन एक से अधिक व्यक्ति एक साथ करें तो नाम का उच्चारण एक व्यक्ति को तथा अन्य व्यक्तियों को नम: का उच्चारण अवश्य करना चाहिए. अर्चन की सामग्री प्रत्येक नाम के पश्चात, प्रत्येक व्यक्ति को अर्पित करना चाहिए. अर्चन के पूर्व पुष्प, धूप, दीपक व नैवेद्य लगाना चाहिए. दीपक इस तरह होना चाहिए कि पूरी अर्चन प्रक्रिया तक प्रज्वलित रहे. अर्चनकर्ता को स्नानादि आदि से शुद्ध होकर धुले कपड़े पहनकर मौन रहकर अर्चन करना चाहिए. साधना काल में आसन पर बैठना चाहिए तथा पूर्ण होने के पूर्व उसका त्याग किसी भी स्थिति में नहीं करना चाहिए. अर्चन के उपयोग में प्रयुक्त सामग्री अर्चन उपरांत किसी साधन, ब्राह्मण, मंदिर में देना चाहिए. कुमकुम से भी अर्चन किये जा सकते हैं. इसमें नम: के पश्चात बहुत थोडा कुमकुम देवी पर अनामिका-मध्यमा व अंगूठे का उपयोग करके चुटकी से चढ़ाना चाहिए. फिर उसे प्रसाद के रूप में भक्तों को तिलक लगाना चाहिए…………………………………………………………महानवमी पर करें कन्याओं का पूजन नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन का बड़ा महत्व है. नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है. अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं व भक्तों को उनका मनचाहा वरदान देती हैं. कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर तथा 10 वर्ष तक होनी चाहिए व इनकी संख्या कम से कम नौ तो होनी ही चाहिए. इन कन्याओं को आरामदायक व स्वच्छ जगह बिठाकर इन सभी के पैरों को बारी-बारी दूध से भरे थाल में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोने चाहिए व पैर छुकर आशीष लेना चाहिए. उसके बाद पैरों पर अक्षत, फूल व कुमकुम लगाना चाहिए. फिर मां भगवती का ध्यान कर इन कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं. भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पुन: पैर छूकर आशीष लें.
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