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है कलम प्राण से प्रिय जिन्हें…

-कवि सम्मेलन में चटक हुए हर मिजाज के रंग संवाददाता। मुजफ्फरपुर बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री हिन्दी साहित्यिक सेवा संस्थान की ओर से रविवार को गोला रोड स्थित गांधी पुस्तकालय में किया गया. इसमें हर मिजाज के रंग चटक हुए. कार्यक्रम की शुरूआत सरस्वती वंदना से हुई, इसके बाद कवियों ने अपनी रचना सुनाई. मौसम के […]

-कवि सम्मेलन में चटक हुए हर मिजाज के रंग संवाददाता। मुजफ्फरपुर बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री हिन्दी साहित्यिक सेवा संस्थान की ओर से रविवार को गोला रोड स्थित गांधी पुस्तकालय में किया गया. इसमें हर मिजाज के रंग चटक हुए. कार्यक्रम की शुरूआत सरस्वती वंदना से हुई, इसके बाद कवियों ने अपनी रचना सुनाई. मौसम के मिजाज के हिसाब से राजमंगल पाठक ने बेहतर शुरूआत की- आषाढ़ की पहली बरसात का एहसास, प्रियतम से मिलन का एहसास. इसके बाद महेश कुमार चकोर ने सुनाया- है कलम प्राण से प्रिय जिन्हें, तलवार उठा सकते हैं वे. इसके बाद डॉ प्रवीण कुमार मिश्र ने- न हमरा झुमका नथिया हार चाहीं, ना कवनो उपहार चाहीं, सुनाया तो खूब ठहाके लगे. हरिनारायण गुप्ता ने भी- गंदी हो थाली नहीं टूटी हो प्याली नहीं, घर न चलाए ढंग से वो अच्छी घरवाली नहीं, सुनाकर तालियां बटोरीं. विष्णुकांत झा ने-दिनकर के कवि को किसने है झुकाया, हर युग में कवि ने संस्कृति है बचाया तथा सुमन कुमार मिश्र ने- हम कद के इतने छोटे की झुकने की नौबत आई नहीं, सुनाया. इंद्रमोहन मिश्र महफिल ने- तन से तन का मिलना कोई मायने नहीं रखता, उदय शंकर प्रसाद ने- बिजली चमकती सावन भी बरसता, जुल्फ अगर लहराए न होते, देवेन्द्र कुमार ने- दो दिनों की वर्षा ने सड़कों को क्या दिया रंग तथा सत्यनारायण मिश्र ने- मां की ममता छांह में पलता है बचपन सुना कर कार्यक्रम को ऊंचाई प्रदान की. कार्यक्रम की अध्यक्षता राजमंगल पाठक, संचालन सत्यनारायण मिश्र व धन्यवाद ज्ञापन सुमन कुमार मिश्र ने किया.

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