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17 जून तक आयेगा मॉनसून
मुजफ्फरपुर : गरमी ङोल रहे लोगों को करीब 17 दिन बाद मॉनसून की बारिश का मजा मिलेगा. बिहार में 15 से 17 जून को मॉनसून आ सकता है. इस बार मॉनसूनी बारिश के कम होने की संभावना है. बारिश खंड-खंड में हो सकती है. कुछ इलाकों से समय से पहले मानसून जा सकता है. रबी […]
मुजफ्फरपुर : गरमी ङोल रहे लोगों को करीब 17 दिन बाद मॉनसून की बारिश का मजा मिलेगा. बिहार में 15 से 17 जून को मॉनसून आ सकता है. इस बार मॉनसूनी बारिश के कम होने की संभावना है. बारिश खंड-खंड में हो सकती है. कुछ इलाकों से समय से पहले मानसून जा सकता है.
रबी व जायद फसलों की बरबादी से तबाह हो चुके किसानों के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. लोगों को खरीफ मौसम की खेती के लिए प्लान अभी से बनाना होगा. राजेंद्र कृषि विवि पूसा के ग्रामीण कृषि मौसम सेवा के नोडल पदाधिकारी डॉ आइबी पांडेय ने बताया कि इस साल अन्य वर्षो की अपेक्षा कम बारिश होगी. ऐसा मॉनसून सामाजिक, आर्थिक व पर्यावरण के लिए बेहतर संकेत नहीं दे रहा है.
बताया जाता है कि इस साल केरल में एक जून को मॉनसून प्रवेश कर जायेगा. यहां से मॉनसून दक्षिणी राज्यों को पार करते हुए बंगाल की खाड़ी में पहुंचेगा. बंगाल की खाड़ी से मॉनसून झारखंड पहुंचेगा. बंगाल में मॉनसून करीब 13 जून को प्रवेश करने की उम्मीद है. यहां मॉनसून का प्रवेश एक से दो दिन पहले या बाद में हो सकता है. इसके बाद 15 से 17 जून के बीच यहां प्रवेश करेगा. झारखंड के कुछ हिस्सों में मॉनसून मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ होते हुए भी पहुंच सकता है. खासकर छत्तीसगढ़ से सटे झारखंड के इलाके में ऐसा हो सकता है.
बिहार में आम तौर पर मॉनसून की बारिश 1246 मिलीमीटर होती है, लेकिन, इस वर्ष मॉनसून की बारिश छह से 10 फीसदी कम होने की आशंका है. ऐसे में 124 से 130 मिलीमीटर बारिश कम हो सकती है. यह स्थिति खरीफ खेती के लिए घातक साबित हो सकती है. किसानों को मॉनसून की बारिश कम होने की आशंका को देखते हुए व्यापक प्लान बनाने की जरू रत है. किसानों को वैसे धान की खेती बेहतर साबित हो सकती है, जो कम समय में हो जाये. पानी कम लगे.
मॉनसून की बारिश कम होने से केवल धान ही नहीं, मक्का, तिल, उड़द, अरहर व पशु चारा वाले फसलों के उत्पादन पर काफी प्रभाव पड़ सकता है. इस स्थिति में किसानों को सब्जी व कम पानी खपत वाले दलहन की खेती का प्लान बेहतर साबित हो सकता है. मॉनसून की बारिश का पीरियड भी कम हो सकता है.
रबी की खेती तो पहले ही खराब मौसम का शिकार हो चुकी है. रबी की गेहूं व मक्का की फसल तो बेमौसम बारिश व सैनिक कीट से बरबाद हो ही चुकी है. जायद फसलों में मूंग ऐलो मोजैक वायरस व बिहार हेयरी कैटर पीलर के कारण बरबाद हो गया. मौसम के कारण आम व लीची भी बरबाद हैं. ऐसे में किसानों की दुर्दशा पर कौन विचार करेगा, बड़ा सवाल है. किसानों ने खेतों में जितनी पूंजी लगायी थी, उसकी भरपाई किसी भी सरकार के बूते की बात नहीं है.
खराब मौसम के कारण कृषि उत्पादन पर सबसे खराब असर पड़ रहा है. किसानों को नुकसान हो रहा है. बाहर से कमाई कर किसान खेती के कर्ज की भरपाई कर रहे हैं. किसानों से लेकर राज्य का अन्न का भंडार घट रहा है. पशु चारा का भंडार किसानों के पास से समाप्त हो रहा है. ऐसे में पूरे सामाजिक व आर्थिक परिवेश के साथ पर्यावरण पर दूरगामी असर पड़ सकता है.
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