मुजफ्फरपुर: आम व लीची के पुरानी बागों में एक और गहरी जुताई का समय आ गया है. बागों की जुताई कर प्रति पेड़ एक किलो नेत्रजन, तीन सौ ग्राम स्फूर, 750 ग्राम पोटाश का उपयोग करना जरूरी है. खाद का प्रयोग पेड़ के मुख्य तना से 2.5 मीटर छोड़कर करना होगा. 1.5 से 2.0 मीटर पट्टी में तना के चारों ओर छिड़ककर गुड़ाई कर दें. ताकि खाद मिट्टी में पूरी तरह मिल जाये. राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा के कृषि व मौसम परामर्शी सेवा के नोडल पदाधिकारी ने बताया कि अभी बागों में अगर गुराई कर खाद का प्रयोग किया जाये तो पेड़ को काफी फायदा होगा.
साथ ही वर्षा की कमी को देखते हुए खेती में कुछ बदलाव का वक्त भी आ गया है. ऊंचास जमीन में अरहर की बोआई करना जरूरी है. इसकी बोआई के लिए बहार, पूसा 8, नरेंद्र अरहर 1, एनडी 1, मालवीय 13 आदि किस्मों का चयन करना बेहतर होगा.
पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें. बीज दर 18 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखना होगा. वर्षा के अभाव में अच्छी जल निकासी वाले ऊं ची जमीन में धान के बदले मिश्रीकंद, अरहर, उड़द, मक्का, सूरजमुखी और वैकल्पिक फसलों की बोआई की जा सकती है. वर्षा की कमी को देखते हुए धान की फसल में जीवन रक्षक सिंचाई करना होगा. रोपे हुए धान की फसल में खरपतवार नियंत्रण को प्राथमिकता देने की सलाह भी कृषि विशेषज्ञों ने दी है. मवेशियों को संक्रामक रोगों से बचाव के लिए पशु चिकित्सकों की सलाह से टीकाकरण कराना अति आवश्यक है.