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नव वर्ष पर लुभाते हैं सरैया व वैशाली के पर्यटन स्थल

मुजफ्फरपुर: बीतते वर्ष के नये वर्ष में बदलने का इंतजार अब महज कुछ घंटों में खत्म हो जायेगा. बुधवार की रात ठीक बारह बजे जैसे ही घड़ी के दोनों कांटे आपस में मिलेंगे, पटाखे फूटने लगेंगे. 2014 इतिहास बन जायेगा और एक बार पुन: नूतन वर्ष सामने होगा. युवा वर्ग में ऐसे मौके को लेकर […]

मुजफ्फरपुर: बीतते वर्ष के नये वर्ष में बदलने का इंतजार अब महज कुछ घंटों में खत्म हो जायेगा. बुधवार की रात ठीक बारह बजे जैसे ही घड़ी के दोनों कांटे आपस में मिलेंगे, पटाखे फूटने लगेंगे. 2014 इतिहास बन जायेगा और एक बार पुन: नूतन वर्ष सामने होगा. युवा वर्ग में ऐसे मौके को लेकर खासा उत्साह है.

बच्चे भी खुश हैं तो अभिभावक भी. कुछ लोग मंदिरों व अन्य उपासना स्थलों में वर्ष के पहले दिन सुख-समृद्धि की कामना करेंगे, ताकि वर्ष खुशहाल बीते. उधर, नये साल के जश्न की तैयारी में शहर के पिकनिक स्पॉट जुब्बा सहनी पार्क सहित सरैया व वैशाली के पर्यटन स्थल लोगों से गुलजार रहेगा. यहां बीते वर्ष की भांति ही नये साल का जश्न मनेगा. सुरक्षा को पुलिसकर्मियों की विशेष तैनाती रहेगी. यदि इस उत्सव में शरीक होने की आपकी भी तैयारी है तो ऐसे करें भ्रमण.

आकर्षण का केंद्र वैशाली

भगवान बुद्ध की कर्मस्थली तथा जैन धर्म के 24वें एवं अंतिम र्तीथकर भगवान महावीर की जन्मस्थली वैशाली के विभिन्न पुरातात्विक स्थल नव वर्ष के मौके पर गुलजार रहता है. वैसे तो यहां देश ही नहीं, बल्कि विश्वभर से सैलानियों का रेला सालों भर उमड़ते रहता है. मगर यहां की फिजाओं में गूंजती लोकतंत्र की गाथाएं, ऐतिहासिक अभिषेक पुष्करणी की कल-कल करती लहरें, स्तूप, स्तंभ और राजा विशाल के राज महल के भग्नावशेष लोगों को अपनी ओर खींचने को बाध्य कर देते हैं.

राजा विशाल का गढ़

वैशाली चौक से सटा राजा विशाल का गढ़ वैशाली भ्रमण को जाने वाले लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. राजा विशाल इक्ष्वाकु कुल के थे. इसकी चर्चा वाल्मीकि रामायण में भी आई है. अब भी यह गढ़ सतह की तुलना में 1.85 से 3.05 मीटर ऊंचाई पर है. इसके दक्षिण-पश्चिम में करीब 30 फीट ऊंचे स्थान पर शेख मुहम्मद फैजुल्लाह काजिन मीरन सुत्तारी की दरगाह है. इसके बगल में बजरंग बली हनुमान जी की पिंडिका स्थापित है जहां हर साल चैत्र रामनवमी को मेला लगता है. गढ़ के बगल में ही हरि कटोरा मंदिर है. गढ़ से सटे पश्चिम एक प्राचीन मंदिर में गणोश, सप्तमातृका, सिंहनाद अवलोकितेश्वर, शिव-पार्वती और विष्णु की मूर्तियां स्थापित हैं. यहां के प्राचीन जैन मंदिर में र्तीथकर महावीर की भव्य मूर्ति भी दर्शनीय है. राजा विशाल के गढ़ से करीब एक मिल पूरब कम्मन छपरा में चतुमरुख शिव मंदिर अद्भुत है.

विश्व शांति स्तूप

शांति, सद्भावना एवं सहिष्णुता का प्रतीक विश्व शांति स्तूप अभिषेक पुष्करणी के दक्षिण तट पर अवस्थित है. यह भारत का सबसे ऊंचा (125 फीट) शांति स्तूप है. इसका निर्माण जापान के प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु निचिदात्सु फुजिई गुरुजी की पहल पर भारत व जापान के उपासकों की सहायता से निप्पोजान म्योहोजी एवं राजगीर बुद्ध विहार सोसाइटी ने 1996 में संयुक्त रूप से कराया था. तथागत के जीवन दर्शन तथा उनकी स्मृतियों को साकार करते इस स्तूप का स्थापत्य बेजोड़ है. इसमें स्थापित उनके तप, संबोधि, उपदेश एवं महापरिनिर्वाण के अवस्थाओं की चारों मूर्तियां फाइबर ग्लास से निर्मित एवं सोने की पॉलिश की हुई है जिसकी दिव्यता एवं भव्यता देखते ही बनती हैं.

अस्थि कलश स्तूप

अंतरराष्ट्रीय गर्व का प्रतीक वैशाली का अस्थि कलश स्तूप अभिषेक पुष्करणी के के उत्तर-पूर्व तट पर आकर्षण की छटा बिखेरता नजर आता है. यह पर्यटकों के लिए श्रद्धा का केंद्र है. यह भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष पर बने आठ मूल स्तूपों में से एक है. यहां लिच्छवियों ने ‘सीप स्टोन मंजूषा’ में अस्थि कलश को स्थापित किया था जिसे 1958 में केपी जायसवाल शोध संस्थान, पटना के तत्कालीन निदेशक डॉ एएस अल्तेकर ने खुदाई में खोज निकाला था. उसके बाद यहां स्तूप का निर्माण कराया गया. लेकिन सुरक्षा कारणों से अस्थि कलश को राजधानी पटना के संग्रहालय में रखा गया है. पुष्करणी के उत्तरी तट पर ही संग्रहालय भी अवस्थित है.

अशोक स्तंभ व बौद्ध स्तूप

सरैया प्रखंड के कोल्हुआ ग्राम में ऐतिहासिक अशोक स्तंभ एवं बौद्ध स्तूप वैशाली परिक्षेत्र का बेहद रमणीय स्थल है. प्रसिद्ध मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को स्वीकार करने के बाद बुद्ध एवं बौद्ध धर्म से जुड़े स्थलों के दर्शन कर स्तूपों एवं स्तंभों का निर्माण करवाया जो लौरिया नंदनगढ़ से गंधार (पाकिस्तान) तक के विशाल क्षेत्र में फैले थे. उसी में एक यह स्तंभ व स्तूप है. इसके शीर्ष पर अधोमुख कमल फलक पर बैठा उत्तराभिमुखी सिंह सुशोभित है. इसके चारों ओर घंटे का मनोहारी अलंकरण है. यहां छोटे-छोटे मनौती स्तूप, मर्कटहृद नाम का एक पुष्कर, प्राचीन चैत्य(मंदिर), बारह कक्षों का स्वास्तिक आकारयुक्त भिक्षुणी विहार और कुटागारशाला के अवशेष भी है. वैशाली प्रवास के दौरान तथागत इसी कुटागारशाला में ठहरते थे.

महावीर की जन्म-स्थली

भगवान महावीर की जन्म-स्थली बासोकुंड सरैया से छह किमी दक्षिण एवं वैशाली से पांच किमी उत्तर में है. यहां प्राचीन कुंडग्राम के राजा सिद्धार्थ की भार्या त्रिशला की महिमामयी कुक्षि से कनिष्ठ पुत्र के रूप में वर्धमान महावीर का जन्म ईसा पूर्व 599 में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को हुआ था. बासोकुंड से लगभग पांच किमी पश्चिम-उत्तर में लक्ष्मीपुर अरार गांव में अलारका राम का आश्रम है. बताया जाता है कि कपिलवस्तु को त्याग कर राज कुमार गौतम ज्ञान की खोज में चले तो अपने कुल गुरु के बताने पर अलारका राम के आश्रम आये थे. यहां से महज दो किमी पर बखरा एनएच 102 के बगल में भीमसेन का पल्ला है. बखरा से तीन किमी पर रेवा रोड के अंबारा चौक पर वैशाली की नगर वधू आम्रपाली की जन्मस्थली द्रष्टव्य है.

वजर्न

कोल्हुआ अशोक स्तंभ एवं बासोकुंड में पुलिस की विशेष व्यवस्था रहेगी. हुड़दंगियों पर कड़ी नजर रखी जायेगी. मुख्यालय से विशेष पुलिस बल की मांग भी की गयी है. लाठी पार्टी की भी तैनाती होगी.

आशुतोष कुमार, थानाध्यक्ष, सरैया

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