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जाति बदल कर 21 लाख का गोलमाल

मुजफ्फरपुर: कृषि विभाग ने कृषि यंत्र बांटने में गजब का कारनामा किया है. सामान्य कोटि के किसानों को एससी व एसटी बना 21.26 लाख रुपये की हेराफेरी की है. एक नहीं ऐसे कई सामान्य कोटि के किसान हैं, जिन्हें कीमती कृषि यंत्र दिया गया है. लेकिन, आवेदन के साथ कोई भी प्रमाण पत्र नहीं था […]

मुजफ्फरपुर: कृषि विभाग ने कृषि यंत्र बांटने में गजब का कारनामा किया है. सामान्य कोटि के किसानों को एससी व एसटी बना 21.26 लाख रुपये की हेराफेरी की है.

एक नहीं ऐसे कई सामान्य कोटि के किसान हैं, जिन्हें कीमती कृषि यंत्र दिया गया है. लेकिन, आवेदन के साथ कोई भी प्रमाण पत्र नहीं था जिससे लाभुक के आरक्षित श्रेणी में होने का दावा प्रमाणित हो सके. कृषि अधिकारियों ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाइ) की राशि में हेराफेरी की है. विभाग के अधिकारी ने वर्ष 2011-12 में एक नहीं, ऐसे कई कारनामा किया है. यह खुलासा 2012 में वरीय लेखा परीक्षा अधिकारी की ऑडिट रिपोर्ट से हुआ है.

रिपोर्ट के अनुसार, हेराफेरी की आशंका पर ऑडिट टीम ने जिला कृषि पदाधिकारी, मुजफ्फरपुर में उपलब्ध कृषि यांत्रिकीकरण के कागजात की नमूना जांच की. पाया गया कि विभाग ने जिन कृषकों को आरक्षित वर्ग का कृषक घोषित कर लाभ दिया है, वे सामान्य कोटि के हैं. कागजात की जांच के दौरान टीम को अधिकृत कार्यालय से निर्गत कोई जाति प्रमाण पत्र नहीं मिला.

मुशहरी निवासी कपिलदेव राय के पुत्र नरेश कुमार को पावर टिलर का लाभ दिया गया. यंत्र खरीद कर आदेश प्रखंड कृषि अधिकारी ने दिया था. मुरौल प्रखंड के ईंटहा रसूलनगर निवासी स्व. रामप्रीत प्रसाद के पुत्र नागेश्वर प्रसाद को भी कृषि यंत्र का लाभ दिया गया. हेराफेरी के लिए बड़े कृषि यंत्रों पर अधिकारियों व कर्मियों ने हाथ साफ किया. इनमें कल्टीवेटर, पावर टिलर, रोटावेटर, डिस्क हैरो, पावर थ्रेसर, पंप सेट प्रमुख हैं. इसका लाभ 16 फीसदी आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को दिया जाना था. लेकिन, आरक्षित श्रेणी के कृषकों का हिस्सा सामान्य कोटि के किसानों को दिया गया. ऑडिट में बताया गया है कि अनारक्षित समुदाय के कृ षक को आरक्षित समुदाय का कृषक किन परिस्थितियों में बनाया गया. सरकारी कोष का अवैध तरीके से उपयोग क्यों किया गया? इसके जवाब में कृषि विभाग ने कहा, अनुदान का लाभ देने के लिए चयनित लाभार्थी के जाति वर्गीकरण की जांच स्थानीय स्तर पर किये जाने के बाद अनुदान का लाभ दिया गया. इस जवाब से ऑडिट संतुष्ट नहीं था. इस यंत्र पर पूरी राशि वसूलने के लिए विभाग को आदेश दिया.

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