दीपू
मुजफ्फरपुर : अति संवेदनशील मानी जाने वाली सेंट्रल जेल में सुरक्षा की धज्जियां वहां तैनात सुरक्षाकर्मी ही उड़ा रहे हैं. ये कैदियों की सुरक्षा के प्रति कितने सजग हैं, इसका नजारा शनिवार को शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा के गेट पर देखने को मिला. सुबह के 10.30 बज रहे थे.
जेल गेट के समीप मुलाकात करने वालों की भीड़ लगी थी. हर मुलाकाती के हाथ में कुछ न कुछ सामान था, जो वे जेल के अंदर बंद अपने संबंधियों को पहुंचाना चाहते थे. सुरक्षाकर्मी झोले के हिसाब से रेट लगा रहे थे. ये बीस से पचास रुपये के बीच था.
मुलाकाती अगर सुरक्षा कर्मी की ओर से मांगी गयी रकम देने के तैयार हो जाते थे, तब बेरोक-टोक झोला जेल गेट पर बने छेद में बढ़ा देते थे. कोई पैसे कम करने की बात कहता, तो उसे जांच करने वाली मशीन के चैंबर में भेज दिया जा रहा था.
सीसीटीवी की परवाह नहीं
कैदियों से मुलाकात करने वाले स्थान पर सीसीटीवी कैमरे लगाये गये हैं. इसके बाद भी बेरोक-टोक सुरक्षाकर्मी मुलाकात करने आने वाले लोगों से पैसा वसूली करते हैं. क्या सुरक्षाकर्मी की वसूली सीसीटीवी कैमरा में कैद नहीं होती? इस लापरवाही के कारण झोला में कुछ भी रख कर जेल के अंदर भेजा जा सकता है? ऐसे कई सवाल हैं, जो जेल के सुरक्षा व्यवस्था को कठघरे में खड़ा करते हैं.
सुरक्षा से हो रहा खिलवाड़
पहले भी जांच के दौरान जेल से मादक पदार्थ व मोबाइल जैसी चीजें बरामद हो चुकी हैं. बिना जांच जिस तरह से जेल के अंदर सामान भेजा जा रहा है, उसमें कोई व्यक्ति पचास रुपये देकर मादक पदार्थों के साथ गोला -बारूद भी जेल के अंदर पहुंचा सकता है, क्योंकि गेट पर तैनात सुरक्षा कर्मियों के सिर्फ रुपयों से मतलब है.
झोले में क्या है. इसकी परवाह वे नहीं करते हैं. कम से कम शनिवार की स्थिति देख कर तो ऐसा ही लगा.
आंख ही हमारी जांच मशीन
जेल गेट पर तैनात सुरक्षाकर्मी जब बिना जांच किये सामान को अंदर भेज रहे थे. जब हमने पूछा कि बिना जांच ही सामान अंदर भेज रहे हैं, तो उसने जवाब दिया कि हमारी आंख ही जांच मशीन है. एक नजर डालते ही पता चल जाता है कि झोला में क्या है ? पैसे लेने की बात पर सुरक्षाकर्मी ने कहा कि जो पैसा लिया जाता है. उसमें जेलर साहब का भी हिस्सा होता है?