मुजफ्फरपुर : रामचंद्र के विवाह के बाद अयोध्या में नित्य मंगल हाे रहे हैं. आनंद की बधइया बज रही है. सब माताएं व सखी-सहेलियां अपनी मनोरथ रूप बेल को फली हुई देख कर आनंदित हैं. सबके हृदय में ऐसी अभिलाषा है कि राजा अपने जीते जी राम को युवराज का पद दे दें.
स्वार्थी देवता सोचने लगे कि भगवान राजा बन जायेंगे, तो जगत को सुख कौन देगा. उक्त बातें ब्रह्मपुरा नाका चौक स्थित मां खंडेश्वरी दुर्गा मंदिर में आयोजित कथा में कथावाचक मनीष माधव ने कही. उन्होंने कहा कि सभी देवता मां सरस्वती के पास गये, विनती की. सरस्वती मंथरा नाम की दासी के जिह्वा पर बैठती हैं. मंथरा कैकेयी के कान भरती है.
कैकेयी राजा दशरथ से भरत को युवराज व रामजी को चौदह वर्ष का वनवास देने को कहती हैं. दशरथ नहीं चाहते हुए भी राम को बनवास की आज्ञा देते हैं. भगवान वन गमन करते हैं. रास्ते में केवट का प्रेम दर्शन होता है. भगवान गंगा पार करते हैं. कथा में रंजीत मिश्रा, वार्ड पार्षद गायत्री चौधरी, सरोज ओझा, अजय मिश्रा, केदार गुप्ता, कृष्ण कुमार गुप्ता, लक्ष्मी शर्मा व राजेंद्र शर्मा सहित अन्य लोग मौजूद थे.