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जिले की मिट्टी में भी स्ट्राॅबेरी की खेती संभव

मुजफ्फरपुर : लीची के लिए मशहूर मुजफ्फरपुर की धरती पर स्ट्राॅबेरी का बेहतर उत्पादन हो सकता है. कामारोजा व स्वीट चार्ली प्रजाति बिहार की मिट्टी के लिए उपयुक्त पायी गयी है. सरैया के भटौलिया स्थित एमबीआरआइ में चार प्रजातियों पर चल रहा शोध सफल हो गया है. एमबीआरआइ के संस्थापक अविनाश कुमार ने बताया की […]

मुजफ्फरपुर : लीची के लिए मशहूर मुजफ्फरपुर की धरती पर स्ट्राॅबेरी का बेहतर उत्पादन हो सकता है. कामारोजा व स्वीट चार्ली प्रजाति बिहार की मिट्टी के लिए उपयुक्त पायी गयी है. सरैया के भटौलिया स्थित एमबीआरआइ में चार प्रजातियों पर चल रहा शोध सफल हो गया है. एमबीआरआइ के संस्थापक अविनाश कुमार ने बताया की शोध उत्साहित करने वाला है. एमबीआरआइ में नवंबर से मलचिंग तकनीक से हिमाचल प्रदेश से मंगाकर चार प्रजातियों कामारोजा, विनटर डॉन, नाबीला व स्विट चार्ली पर शोध किया गया. इन चारों प्रजातियों को बेड बनाकर मलचिंग सीट पर 100-100 पौधे लगाये गये हैं.

इन सभी प्रजातियों में यहां की मिट्टी पर अगात प्रजाति के रूप में कामारोजा और 20-22 डिग्री तापमान के साथ पिछात प्रजाति के रूप में स्विट चार्ली सफल रही है. अन्य दो प्रजातियों का उत्पादन बेहतर नहीं रहा है. स्ट्रॉबेरी एक बहुत ही नाज़ुक फल होता है, जो स्वाद में हल्का खट्टा व मीठा होता है. दिखने में यह दिल के आकर का होता है. इसका रंग चटक लाल होता है. बीज बाहर की ओर होते हैं. सभी अपने स्वाद रंगरूप में एक-दूसरे से भिन्न होते हैं.

स्ट्रॉबेरी एक अलग खुशबू के लिए पहचानी जाती है. इसका फ्लेवर आइसक्रीम आदि में उपयोग किया जाता है. स्ट्रॉबेरी में कई विटामिन और लवण होते हैं जो स्वास्थ के लिए काफी लाभदायक होते हैं. इसमें काफी मात्रा में विटामिन C, विटामिन A व पाया जाता है.

यह रूप निखारने, चेहरे में कील मुंहासे, आंखों की रोशनी व दांतों की चमक बढ़ाने में सहायक होता है.
मलचिंग तकनीक से हिमाचल प्रदेश की चार प्रजातियों पर शोध
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए मिट्टी व जलवायु उपयुक्त
वैसे तो इसकी खेती के लिए किसी खास प्रकार की मिट्टी तय नहीं है, फिर भी अच्छी उपज लेने के लिए बलुई दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है. इसकी खेती के लिए ph 5.0 से 6.5 तक मानवाली मिट्टी उपयुक्त होती है. यह फसल शीतोष्ण जलवायुवाली फसल है, जिसके लिए 20 से 30 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है. तापमान बढ़ने पर पौधों में नुकसान होता है और उपज प्रभावित होती है.

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