वहीं, बाहर से आनेवाले छात्र-छात्राओं को परेशानियों का सामना करना पड़ा. छात्र कर्मचारियों की चिरौरी करते रहे, लेकिन कहीं से मदद नहीं मिली. कोई भी यह बताने की स्थिति में नहीं था कि विवि में कामकाज कब तक शुरू होगा.
फर्जी नियुक्ति को लेकर छह दिनों से विवि सुलग रहा है. 31 अक्तूबर को यूजीसी को भेजे गये आवेदन में डीडीइ के स्टॉफ लिस्ट में फर्जी तरीके से 15 लोगों का नाम जोड़ दिया गया है. आरोप है कि विवि के अधिकारियों ने अनियमित तरीके से एकमुश्त नियुक्ति की साजिश रची है. हालांकि, दो दिन बाद यानी दो नवंबर को देर शाम यह राज खुला तो छात्रों ने बवाल शुरू कर दिया. तीन नवंबर को विवि में तालाबंदी कर दी. इसके बाद चार व पांच नवंबर को छुट्टी थी. छह नवंबर, यानी सोमवार को कर्मचारी कार्यालय पहुंचे, तो पहले से ही वहां मौजूद छात्रों सभी को बाहर से ही लौटा दिया. मंगलवार को भी यही स्थिति रही. न तो प्रशासनिक भवन का ताला खुल सका, न ही किसी डिपार्टमेंट का. छात्रों ने कैंपस में नारेबाजी करते हुए प्रदर्शन भी किया.
उनका कहना है कि फर्जी नियुक्ति के मामले में दोषी अधिकारियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की जाये. छात्रों ने जांच कमेटी के गठन को मामला दबानेवाला बताया. कहा कि जब सबकुछ साफ है, तो फिर जांच के लिए 10 दिन का समय निर्धारित करने का मतलब क्या है. उन्होंने आरोप लगाया कि फर्जीवाड़ा के असली दोषियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है. साजिश के तहत जिम्मेदार अधिकारियों ने यूजीसी को भेजे आवेदन में नाम जोड़े हैं. मामला नहीं खुलता, तो उन्हें चुपके से नियुक्ति पत्र भी थमा दिया जाता. छात्रों का कहना था कि जब तब दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती, विवि का काम ठप रखेंगे.