सरकारी खाते की राशि को निजी खाते में ट्रांसफर करने के कई मामले सामने आ चुके हैं. इसमें निजी लाभ के लिए एेसा करने की बात आयी है.
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विशेष भू-अर्जन व जिला भू-अर्जन कार्यालय की राशि को नियम ताक पर रख हुआ था ट्रांसफर
सरकारी खाते की राशि को निजी खाते में ट्रांसफर करने के कई मामले सामने आ चुके हैं. इसमें निजी लाभ के लिए एेसा करने की बात आयी है. मुजफ्फरपुर : सरकारी राशि की बैंकों व निजी खातों में ट्रांसफर के कई मामले जिले में प्रकाश में आ चुका है. जिला परिषद में 2015 में पंचायतों […]
मुजफ्फरपुर : सरकारी राशि की बैंकों व निजी खातों में ट्रांसफर के कई मामले जिले में प्रकाश में आ चुका है. जिला परिषद में 2015 में पंचायतों के विकास मद की करीब एक करोड़ राशि को जिप कार्यालय के प्रधान सहायक ने अपने निजी खाते में ट्रांसफर कर दिया था. चौंकाने वाले बात यह थी कि प्रधान सहायक ने अधिकारी से ब्लैंक चेक पर हस्ताक्षर करवा लिया था.
दरअसल बीआरजीएफ योजना मद की राशि प्रखंडों के खाते में भेजा गया था. करीब 1.76 लाख के चेक प्रत्येक प्रखंड के खाते में जमा की जाती थी. चेक के बंच में प्रधान सहायक एक ब्लैंक चेक रख देते है. साइन होने के बाद उस चेक अपने निजी खाते में डाल देते थे. यह खेल करीब एक साल तक चला. योजना के राशि के ऑडिट में गड़बड़ी पकड़ में आयी. इसके बाद प्रधान सहायक को निलंबित कर सरकारी राशि वसूलने का आदेश जारी हुआ.
यही नहीं, शिक्षा विभाग में इसी तरह के कई मामले सामने आ चुके है. जिसमें पोशाक, भवन निर्माण, छात्रवृत्ति, साइकिल आदि योजनाओं की राशि को शिक्षकों ने अपने निजी खाते में डाल लिया था. विभाग ने इस मामले में कार्रवाई का आदेश दे रखा है. पैक्सों में ऐसा खेल के मामले सामने आ चुके है.
राशि ट्रांसफर के खेल में देर से होता है वेतन भुगतान
सरकारी राशि के ट्रांसफर के खेल के कारण कई बार वेतन भुगतान में विलंब हो चुका है. विवि, शिक्षा विभाग में ऐसे मामले सामने आ चुके हैं. इस कारण कई बार वेतन भुगतान में भी विलंब होता है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, बैंकों पर डिपोजिट बढ़ाने का दबाव बढ़ रहा है. डिपोजिट बढ़ाने के दो रास्ते हैं. बैंक बड़े व अच्छे ग्राहकों का खाता खोले, या सरकारी राशि का खाता अपने यहां रखे, ताकि बैंक के व्यवसाय में वृद्धि, डिपोजिट रेसियो, सीआर बढ़े और बैंकर को प्रमोशन मिले. ऐसे में इसका आसान रास्ता सरकारी राशि का डिपोजिट है. दिनोंदिन बैंकों की संख्या बढ़ रही है, इसलिए कंपीटिशन बढ़ गया है. खासकर निजी बैंक भी इस ओर रुख कर रहे हैं. इसमें प्रति करोड़ रुपये के डिपोजिट पर 10 से 15 हजार रुपये कमीशन विभाग को उपलब्ध कराया जाता है. बहुत जगह नकद की जगह राशि के अनुपात में महंगे गिफ्ट तक दिये जाते हैं. यहां तक शाखा का ट्रांसफर व एटीएम तक को शिफ्ट किया जाता है. यही कारण है कि एक सरकारी राशि कई बैंकों में घूमती रहती है. इसका सबसे अधिक खेल प्रखंडों में होता है, जबकि सरकार का नियम है जो बैंक सरकारी योजनाओं के तहत अच्छा काम कर रहे हैं जैसे पीएमजेडीवाइ, प्रधानमंत्री बीमा व दुर्घटना बीमा योजना आदि में बेहतर काम रहे है. वहीं जिस बैंक का ऋण जमा अनुपात अच्छा है जैसे उसने प्राथमिक क्षेत्र में अधिक ऋण दिया हो. इन्हीं बैंकों में सरकारी राशि रखनी है.
सरकारी राशि रखने को बैंककर्मी लगाते हैं जुगाड़
सरकारी राशि को अपने शाखा में रखने के लिए भी बैंककर्मी जुगाड़ लगाते है. यहीं नहीं, इसमें कमीशन का खेल चलता है. करीब पांच छह साल पूर्व मुजफ्फरपुर जिला के इंदिरा आवास की करीब 40 करोड़ रुपये को दो दिन के लिए दूसरे जिले ट्रांसफर कर दिया गया था.
भू-अर्जन की राशि की एक बैंक से दूसरे बैंक के खाते में नियम को ताक पर रखकर ट्रांसफर किया गया था. एनएचएआइ ने राशि ट्रांसफर पर आपत्ति जताते हुए डीएम से शिकायत की थी. मामला मार्च 2015 का है. इसमें एनएचएआइ व जिला भू-अर्जन कार्यालय के संयुक्त नाम पर एक बैंक में खाता खुला, जिसमें एनएचएआइ की मंजूरी के बगैर 20 करोड़ दूसरे बैंक में ट्रांसफर कर दिया गया था.
इससे पूर्व 2014 में एनएचएआइ ने संयुक्त खाते से करीब पांच करोड़ रुपये की निकासी की थी, जिस पर भू-अर्जन विभाग ने आपत्ति जतायी बाद में मामले को सुलझा लेने की बात कही गयी.
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