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घटाने के बजाये बढ़ाया बोझ, कक्षा एक में 18 किताबें

मुजफ्फरपुर: सामान्य परिवार के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ना मुश्किल होता जा रहा है. किताबों की कीमतें आसमान छूने लगी है. सीबीएसइ के निजी स्कूल बच्चों से मोटी कमाई कर रहे हैं. 100 रुपये तक में मिलने वाली किताबों के लिए प्राइवेट स्कूल में छात्रों को 500 रुपये तक चुकाने पड़ते हैं. इतना ही […]

मुजफ्फरपुर: सामान्य परिवार के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ना मुश्किल होता जा रहा है. किताबों की कीमतें आसमान छूने लगी है. सीबीएसइ के निजी स्कूल बच्चों से मोटी कमाई कर रहे हैं. 100 रुपये तक में मिलने वाली किताबों के लिए प्राइवेट स्कूल में छात्रों को 500 रुपये तक चुकाने पड़ते हैं. इतना ही नहीं, सिर्फ कक्षा एक बच्चे में 18 किताबों का बोझ बच्चे उठा रहे हैं.

सीबीएसइ स्कूलों में एनसीइआरटी की किताबें चलती है जबकि किसी भी स्कूल में इन एनसीइआरटी की किताबें छात्र नहीं पढ़ते हैं. सभी स्कूल अपने हिसाब से किताबों को लागू करते हैं ताकि छात्रों से मोटी कमाई की जा सके. वर्ग एक के लिये एनसीइआरटी की किताबों का एक सेट 500 रुपये के अंदर हो जाते हैं. वहीं प्राइवेट स्कूलों में पहली कक्षा की एक किताब की कीमत पांच सौ रुपये तक है. निजी स्कूलों में वर्ग एक की किताब का पूरा सेट करीब 4200 रुपये में आता है. इस तरह करीब 12 गुना कीमत सिर्फ वर्ग एक में अभिभावकों को चुकाने पड़ते हैं. यहां तक कि प्राइवेट स्कूलों में किताबों का वास्तविक कीमत भी अभिभावकों को नहीं मालूम होता है. स्कूल की तरफ से ही सभी किताबों का सेट लगा कर बच्चों को दिया जाता है. फिर छात्रों से किताबों की कीमत वसूल ली जाती है.

अभिभावकों पर बढ़ा आर्थिक बोझ
स्कूलों के इस नियम कायदे से अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. जब वे अपने बच्चे का नामांकन किसी स्कूल में कराते हैं तो स्कूल ही छात्र को वर्ग के हिसाब से किताब दिलवाता है. अभिभावकों को समझ में नहीं आता कि आखिर इस किताब में ऐसा क्या होता है कि एक किताब की कीमत 500 रुपये तक ली जाती है. आमगोला के अभय कुमार का भतीजा शहर के ही एक निजी स्कूल में पढ़ता है. उस बच्चे पर स्कूल द्वारा इस कदर आर्थिक बोझ डाल दिया जाता है कि अभिभावकों की परेशानी बढ़ जाती है. उनका कहना कि मेरा भतीजा फिलहाल नर्सरी में ही है. लेकिन स्कूल प्रबंधन द्वारा चलायी जा रही किताबों का सेट करीब तीन हजार रुपये का आया है. उनका कहना कि इस तरह की किताबों की कीमत बाजार की दर से ज्यादा ली जाती है.

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