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प्रभात खबर कार्यालय में हुई परिचर्चा, जीएसटी से दवा कारोबारियों को होगा घाटा
मुजफ्फरपुर : जीएसटी लागू होने के बाद दवा करोबारी लाखों के घाटे में चले जायेंगे. उन्होंने जो दवाएं छह फीसदी टैक्स देकर खरीदी है, उसकी बिक्री पर छह फीसदी और टैक्स सरकार को देना होगा. यह राशि उनकी जेब से लगेगी. सरकार ने इनपुट टैक्स देने का प्रावधान तो नये नियम में किया है, लेकिन […]
मुजफ्फरपुर : जीएसटी लागू होने के बाद दवा करोबारी लाखों के घाटे में चले जायेंगे. उन्होंने जो दवाएं छह फीसदी टैक्स देकर खरीदी है, उसकी बिक्री पर छह फीसदी और टैक्स सरकार को देना होगा. यह राशि उनकी जेब से लगेगी. सरकार ने इनपुट टैक्स देने का प्रावधान तो नये नियम में किया है, लेकिन यह प्रक्रिया इतनी जटिल है कि यह राशि वापस मिलना संभव नहीं है. इसके लिए चार रिटर्न भरना होगा, बिल में यह दिखाना होगा कितनी दवाएं किसे बेची गयीं. उसका लाइसेंस नंबर भी दिखाना होगा. इसके बाद सरकार उसके स्टॉक का वेरीफिकेशन करायेगी. इतना करना कारोबारियों के लिए संभव नहीं है.
उक्त बातें दवा व्यवसायियों ने कहीं. मौका था प्रभात खबर कार्यालय में जीएसटी पर आयोजित कार्यशाला की दूसरी कड़ी का. जीसटी से आनेवाली परेशानियों को लेकर अखबार की ओर से सोमवार को दवा कारोबारियों को आमंत्रित किया गया था. इस मौके पर कारोबारियों ने जीएसटी के नियमों की जटिलताओं पर अपनी बातें रखीं. अधिकांश व्यवसायियों का कहना था कि जीएसटी का नियम सरल बताया जा रहा है, लेकिन अभी तक इस संदर्भ में उनलोगों को पूरी जानकारी नहीं है. इस मौके पर केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेंद्र प्रसाद सिन्हा, राज्य सचिव दिलीप कुमार जालान, जिला सचिव रंजन साहू, अजय कुमार, राजकुमार, अनिल कुमार सिंह, अशोक डागा, गौरी शंकर खरोट व सीएस आदित्य तुलस्यान शामिल थे.
सरकार को देना चाहिए था वक्त
कारोबारियों का कहना था कि सरकार को जीएसटी लागू करने के लिए अभी और वक्त देना चाहिए था. इसके लिए अभी मार्केट तैयार नहीं हुआ है. जबतक व्यवसायी नियमों को समझेंगे नहीं, उसका पालन कैसे करेंगे. दवा कारोबार में 70 फीसदी डीलर अनिबंधित हैं. उनके साथ व्यवसाय कैसे किया जाये, इस बारे में नीति स्पष्ट नहीं की गयी है. हमलोग उनके बिल को कहा दिखायेंगे. यदि बाद में उसने इनकार कर दिया कि दवाएं नहीं खरीदी हैं, तो फिर हमलोग क्या करेंगे. इस बाबत सरकार की ओर से कुछ भी निर्धारित नहीं है. ग्रामीण क्षेत्रों में दवा कारोबारियों को जीएसटी की जानकारी नहीं है. सैकड़ों दुकानें अभी तक अनिबंधित हैं. एक जुलाई के बाद जब जीएसटी लागू होगा, तो हमलोग दवाओं की बिक्री कैसे करेंगे? इसका रिटर्न कैसे भरेंगे? इस संदर्भ में नहीं बताया गया है.
अनिबंधित दुकानों से होगी समस्या
दुकानदारों का कहना था कि अनिबंधित दुकानों के कारण जीएसटी के नियमों के तहत काम करने में परेशानी होगी. जिले में अधिकतर दवाओं की बिक्री बगैर ट्रेड लाइसेंस के होती है. यदि उन्हें दवाएं बेची जाएं, तो उनके बिल को कैसे दिखाएंगे. नियमों को यदि ठीक तरह से समझा दिया जाये, तो जीएसटी के पालन में आसानी होगी. हमलोग अपनी मूल समस्या का निदान चाहते हैं. सरकार की ओर से इसका समाधान किया जाना चाहिए.
यहां हम दवा कारोबारियोें की बात उन्हीं के शब्दों में रख रहे हैं :
अजय कुमार : जीएसटी लागू होने के बाद ही समझ आयेगा कि कैसे काम करना है. अभी हमलोगों ने जीएसटी काे जितना समझा है, वह बहुत कम है. नियमों को नहीं जानने की वजह से समस्या ज्यादा हो रही है. इनुपट टैक्स नहीं मिलने से हमलोग घाटे में चले जाएंगे, लेकिन इसके निदान का सरल उपाय नहीं रखा गया है. जीएसटी लागू होने के बाद बिलिंग प्रणाली भी बदल जायेगी. इसके लिए सरकार को वक्त देना चाहिए था. दुकानदारों को प्रशिक्षित कर नया नियम लागू किया जाता, तो इतनी परेशानी नहीं होती. अब तो सबकुछ अंधकारमय है. व्यावहारिक तौर पर बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा.
रंजन साहू : दवा को टैक्स स्लैब से अलग रखा जाना चाहिए. लाइफ सेविंग दवाओं पर टैक्स लगाने का कोई मतलब नहीं है. अभी जो जीएसटी में प्रावधान किया गया है, उससे बहुत सारी मुश्किलें आनेवाली हैं. दवाओं की एक्सपायरी लंबे समय तक होती है. कई दवाएं डेढ़ वर्ष पहले खरीदी गयी थीं. उसका इनपुट टैक्स कैसे मिलेगा? उन दवाओं को कैसे बेचा जायेगा? सरकार कहती है कि 30 जून तक ही पिछले टैक्स का सामंजस्य होगा, लेकिन यह संभव नहीं लगता. सही काम करनेवाले लोगों को परेशानी होगी. सरकार ने कई दवाओं पर 28 फीसदी टैक्स निर्धारित किया है, यह उचित नहीं है.
सुरेंद्र प्रसाद सिन्हा : जीएसटी कमेटी की अंतिम बैठक 30 जून को है व एक जुलाई से यह लागू किया जायेगा. अभी तक सरकार ही स्पष्ट नहीं है तो दुकानदारों को कैसे पता चलेगा. जीएसटी के कई बिंदुओं पर असमंजस की स्थिति है. हमने छह फीसदी टैक्स देकर जो दवाएं खरीदी हैं, उन पर छह फीसदी टैक्स और लेना है. इससे दुकानदार घाटे में चले जायेंगे. कंपनी पहले प्वाइंट पर ही एमआरपी पर टैक्स चार्ज कर लेती, तो परेशानी नहीं होती. अभी जीएसटी के पूरे नियमों की जानकारी किसी को नहीं है. जितना जानते हैं वह सुनकर या पढ़कर. व्यावहारिक स्तर पर अभी कई समस्याएं आनेवाली हैं. जब जीएसटी लागू होगा, तो इसका पता चलेगा.
दिलीप कुमार जालान : जीएसटी में बहुत सी दवाओं पर टैक्स ज्यादा लगाया गया है. कैंसर, लीवर व किडनी रोग जैसी बीमारियों की दवाओं पर 12 फीसदी टैक्स है. डायबिटीज व हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों पर भी इतना ही टैक्स रखा गया है. पांच फीसदी टैक्स बहुत कम दवाइयों पर है, जिसकी बिक्री कम होती है. सरकार को चाहिए कि जीएसटी में दवाओं के लिए चार स्लैब को घटा कर दो कर दिया जाता, तो लोगों को फायदा मिलता. दवाओं को इतने अधिक स्लैब में लाने पर इसकी बिलिंग में भी परेशानी होगी. हमलोग सरकार से नियमों में संशोधन चाहते हैं.
अशोक डागा : नयी टैक्स प्रणाली में हम अनिबंधित डीलर को दवाएं बेचते हैं, तो हमें उनका आधार व पैन कार्ड का नंबर लेना होगा. इससे वे बाद में इस बात से इनकार नहीं कर सकेंगे कि हमने दवाएं नहीं खरीदी हैं. हमें अपने खरीदारों से समय-समय पर बात भी करनी होगी. ऐसा नहीं कि किसी के नाम पर कोई दवा खरीद कर ले जाये. इससे कारोबारियों की मुश्किलें बढ़ेंगी. जिसके नाम पर दवाएं बेची जा रही हैं, वह आदमी बाद में दवा खरीद से इनकार कर दे, तो जीएसटी में हम कैसे दिखाएंगे. इस नियम में हमें सजग रह कर व्यापार करना होगा, जिससे हमें परेशानी नहीं हो.
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