संग्रामपुर : प्रखंड के बढ़ोनियां गांव स्थित काली मंदिर लोगों के आस्था का केंद्र बना हुआ है. सच्चे मन से जो भी भक्त मां के दरबार पहुंचते हैं उनकी मन्नत जरूर पड़ती है. यही कारण है कि काली पूजा के मौके पर 10 वर्षों तक के लिए मूर्ति बनवाने वालों के नाम पहले से ही तय है. जिसकी भी मुरादें पूरी होती है वे मां की मूर्ति बनवाने की कतार में शामिल हो जाते हैं. बढ़ौनियां गांव के मध्य में स्थित इस काली मंदिर की स्थापना के संबंध में किसी को भी पूरी जानकारी नहीं है.
गांव के ओंकारनाथ सिंह बताते हैं कि पूर्वजों से सुनी सुनायी बात के अनुसार करीब 200 वर्ष पूर्व एक सोनार परिवार द्वारा यहां मां काली की पूजा प्रारंभ की गयी थी जो आजतक चली आ रही है. मुखिया वीर कुंवर सिंह का कहना है कि गांव वालों के लिए मां काली की पूजा का सर्वाधिक महत्व है. ग्रामीण राममूर्ति सिंह ने बताया कि पहले मंदिर के भक्त द्वारा भाव लगाया जाता था. वे भक्त शंभुगंज थाना क्षेत्र जगतपुर गांव के थे. उन पर जब देवी का भाव आता था तो गांव वालों के हर दुख का समाधान हो जाता था. कहा जाता है कि एक बार एक अंधे ने परीक्षा के उद्देश्य से भक्त के आंखों की रोशनी मांगी.
घर जाते-जाते रास्ते में ही उसके आंखों में ज्योति तो आ गयी. लेकिन घर पहुंचते ही उसकी मौत हो गयी. उसी समय भक्त को स्वप्न आया कि अब भाव लगाना बंद कर दो. आज भी यहां पगली घंटी की परंपरा है. गांव में जब कोई भी सामूहिक सम्सया आती है तो पुजारी द्वारा पगली घंटी बजती है. घंटी बजते ही पूरा गांव वहां जमा होता है. साथ ही जो निर्णय होता है उसे पूरा गांव स्वीकार करते हैं. काली पूजा के अवसर पर भव्य मेला लगता है.