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माता का आगमन डोली पर जायेंगी चरणायुद्ध वाहन से

वासंतिक नवरात्र : हिंदू नववर्ष उत्सव की तैयारी शुरू, कलश स्थापना आठ को मुंगेर : चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा शुक्रवार आठ अप्रैल को वासंतिक ( चैत्र) नवरात्र आरंभ हो रहा है. वासंतिक नवरात्र का कलश स्थापना के लिए सुबह से मध्याह्न 2:35 बजे तक का मुहूर्त काफी शुभ है. इसी दिन विक्रम संवत् 2073 व […]

वासंतिक नवरात्र : हिंदू नववर्ष उत्सव की तैयारी शुरू, कलश स्थापना आठ को

मुंगेर : चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा शुक्रवार आठ अप्रैल को वासंतिक ( चैत्र) नवरात्र आरंभ हो रहा है. वासंतिक नवरात्र का कलश स्थापना के लिए सुबह से मध्याह्न 2:35 बजे तक का मुहूर्त काफी शुभ है. इसी दिन विक्रम संवत् 2073 व कलियुग का 5118 वां वर्ष शुरू हो जायेगा. नववर्ष के आरंभ होते ही गौरी पूजन, ध्वजारोहण, दुर्गा सप्तशती पाठ सहित अन्य धार्मिक अनुष्ठान आरंभ हो जायेंगे. शास्त्रों के अनुसार इस बार माता दुर्गा का आगमन डोली पर तथा गमन चरणायुद्ध वाहन पर होगा.
आठ दिनों का होगा नवरात्र
यूं तो एक साल में चार नवरात्र होते हैं. किंतु वासंतिक नवरात्र व शारदीय नवरात्र में ही आदि शक्ति भगवती दुर्गा की विशेष पूजा आराधना की जाती है. पंडित विनोद झा का कहना है कि डोली पर मां का आगमन शुभ माना जाता है, जबकि चरणायुद्ध वाहन पर जाना आम जनों में विकलांगता पैदा करती है. इससे परेशानियां बढ़ने की संभावनाएं हैं.
उन्होंने बताया कि 8 अप्रैल को पहली पूजा, 9 को दूसरी, 10 को तीसरी, 11 को चार व पांच, 12 को छठी, 13 को सप्तमी, 14 को महाष्टमी पूजा व निशा पूजा, 15 को महानवमी सह रामनवमी, हनुमंत ध्वजादान, रामावतार, त्रिशूलिनी पूजा तथा 16 को विजयादशमी, अपराजिता पूजन, देवी विसर्जन और नवरात्र व्रत का पारण किया जायेगा.
नवरात्र की चल रही तैयारी
वासंतिक नवरात्र की तैयारी जोर- शोर से चल रही है. शहर से लेकर गांव तक वासंतिक नवरात्र को लेकर विभिन्न मंदिरों में देवी के प्रतिमाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है. वहीं पूजा की तैयारी को लेकर पंडाल निर्माण व सजावट का कार्य आरंभ कर दिया गया है.
10 से कद्दू भात के साथ चैती छठ आरंभ
साल में छठ का महापर्व भी चार बार होता है. जिसमें वासंतिक छठ व शारदीय छठ का काफी महत्व है. नवरात्र के दौरान ही 10 अप्रैल से नहाय खाय कद्दू भात के साथ चैती छठ का व्रत आरंभ हो जायेगा. चैती छठ का खरना 11 अप्रैल को होगा. अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दान 12 अप्रैल को तथा उदीयमान सूर्य को 13 अप्रैल को अर्घ्य दान किया जायेगा.

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