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पीएम के आगमन से भी नहीं खिला कमल

मुंगेर : मुंगेर में भाजपा को 15 वर्षों बाद चुनाव लड़ने का मौका मिला था और वह मौका भी भाजपा ने गंवा दिया. इस सीट से पार्टी ने युवा तुर्क प्रणव कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया था. जोर-शोर से प्रचार अभियान चला. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसी विधानसभा क्षेत्र के मुंगेर […]

मुंगेर : मुंगेर में भाजपा को 15 वर्षों बाद चुनाव लड़ने का मौका मिला था और वह मौका भी भाजपा ने गंवा दिया. इस सीट से पार्टी ने युवा तुर्क प्रणव कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया था.

जोर-शोर से प्रचार अभियान चला. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसी विधानसभा क्षेत्र के मुंगेर हवाई अड्डा में महती चुनावी सभा भी की. बावजूद मुंगेर में कमल नहीं खिल पाया. गठबंधन की राजनीति ने मुंगेर जिले में भाजपा को हासिये पर खड़ा कर दिया है.

वर्ष 2000 में भाजपा ने अपना प्रत्याशी प्रो. अजफर शमशी को बनाया था जो कुछ ही मतों से चुनाव हार गये थे. एक बार फिर 2015 के विधानसभा में भाजपा का वही इतिहास दोहराया गया. 2005 एवं 2010 के चुनाव में यह सीट गठबंधन के तहत जनता दल यू खाते में रहा और डॉ मोनाजिर हसन व अनंत कुमार सत्यार्थी यहां के विधायक हुए. वैसे इस बीच हुए उपचुनाव में राजद के टिकट से विश्वनाथ प्रसाद भी विधायक बने थे.
पीएम की सभा नहीं हुई कामयाब : विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी सभा इस जिले में एनडीए के मतों को एकजुट नहीं कर पाया. आजादी के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव के दौरान किसी प्रधानमंत्री ने सभा की थी. सभा में भीड़ भी काफी थी.
किंतु प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान लालू प्रसाद के गौ मांस प्रकरण पर दिये गये विचार के बाद स्थिति बनने के बदले बिगड़ गयी. महागठबंधन के लोग यह प्रचार करने लगे कि प्रधानमंत्री ने लालू प्रसाद को शैतान कहा. मामला इस प्रकार उलझा कि महागठबंधन के मतों का धु्रवीकरण होता चला गया और एनडीए का वोट एकजुट नहीं रह पाया.
भाजपा में रहा अंतरकलह का बोलबाला : प्रणव कुमार के उम्मीदवार बनाने के साथ ही भाजपा में अंतरकलह की जो धुआ उठी वह अंतत: पार्टी को मुंगेर में डुबो ही दिया. पार्टी के नेता खासकर जिला स्तर के पदाधिकारी पूरी तरह मैदान में मुस्तैद नहीं दिखे. जबकि 15 वर्षों बाद पार्टी को मौका मिला था.
हाल यह रहा कि दिन के रोशनी में जो भाजपा का झंडा बुलंद करते रहे रात के अंधेरे में महागठबंधन में भी गोता लगाते रहे. यहां तक कि एनडीए के उम्मीदवार के रूप में जिस व्यक्ति ने विधान परिषद का चुनाव लड़ा वह भी महागठबंधन प्रत्याशी को जिताने में लगे रहे.

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