मुंगेर: ‘‘ शहीद के चीताओं पर हर वर्ष लगेंगे मेले, वतन पे मरने वालों का, बांकी यही निशा होगा ’’ आजादी के बाद यह फलसफा विस्मृत कर दिया गया. शहीदों के नाम पर स्मारक तो दूर स्मारक के लिए सरकार जमीन तक उपलब्ध नहीं करा सकी. यह बात किसी और की नहीं बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में आहुति देने वाले पंडित कमलेश्वरी प्रसाद सिंह और उनके दो पुत्रों की है. निजी स्तर पर इनके स्मारक बनाये गये हैं जिसका अनावरण आज होना है.
वतन की आन-शान की रक्षा के लिए पूरा परिवार समर्पित हो गया. इस परिवार के सरदार नित्यानंद सिंह ने तो शहादत की मिसाल कायम की.
जिस पर न सिर्फ मुंगेर को बल्कि बिहार को भी नाज है. सरदार नित्यानंद सिंह स्वतंत्रता संग्राम की महत्वपूर्ण कड़ी थे. जिन्होंने फौज की लांस नायक की नौकरी छोड़ आजादी की लड़ाई में कूद पड़े और नेपाल की तराई में आजाद दस्ते का गठन कर सेनानियों को हथियार का प्रशिक्षण देने का काम किया. उसके उपरांत नेपाल के ही हनुमाननगर जेल पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया सहित अन्य बंदियों को छुड़ाने में कामयाबी हासिल की.
क्रांति की कड़ी को जारी रखने के क्रम में सियाराम दल में धन संचय, शस्त्र संचय, शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण और अंगरेजी हुकूमत के प्रतिरोध के लिए जनसंगठन का काम करते रहे. इसी कड़ी में सोनवर्षा थाने पर हमला किया और इस हमले में अंगरेजी हुकूमत के गोली के निशाना बनकर शहीद हो गये. यदि आजादी की लड़ाई पर लिखने वालों की बात करें तो केके दत्ता को छोड़ कर किसी इतिहासकार की नजर इन शहीदों पर नहीं पड़ी. ज्योंही सियाराम दल और आजाद दस्ते की नाम आती है तो स्वयं ही सरदार नित्यानंद सिंह का नाम सामने आ जाता है. सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आजादी के 68 साल के दौरान बिहार और केंद्र में कई सरकारें बनी और गयी. लेकिन इन वीर शहीदों की याद में कुछ नहीं किया गया. हैरत की बात तो यह है कि इनके पैतृक गांव मुंगेर में इनके आवास के अलावे इस शहीद की कोई पहचान नहीं. जिससे भावी पीढ़ी यह जान सके यही सरदार नित्यानंद सिंह का गांव है और इन्होंने देश के लिए यह कुरबानी दी. मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दूबे के कार्यकाल में बिहार के कई शहीदों के गांव को आदर्श ग्राम का दर्जा दिया गया. लेकिन नित्यानंद सिंह का यह गांव उस दज्रे का भी हकदार नहीं रहा.