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बिना किताब के स्कूल जा रहे 85 फीसदी बच्चे

एक ओर जहां सरकार शिक्षा का अधिकार कानून की दुहाई देकर सरकारी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के दावे कर रही है. वहीं दूसरी ओर पिछले चार महीने से स्कूली बच्चों को पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराने में शिक्षा विभाग पूरी तरह से विफल साबित हो रहा है़ हाल यह है कि पाठ्य पुस्तक के […]

एक ओर जहां सरकार शिक्षा का अधिकार कानून की दुहाई देकर सरकारी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के दावे कर रही है. वहीं दूसरी ओर पिछले चार महीने से स्कूली बच्चों को पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराने में शिक्षा विभाग पूरी तरह से विफल साबित हो रहा है़ हाल यह है कि पाठ्य पुस्तक के अभाव में जिले के दो लाख से भी अधिक बच्चों का भविष्य अंधकार में है़ वहीं प्रशासनिक महकमा भी इस मामले में लगातार चुप्पी साधे हुए है़

मुंगेर : मुंगेर जिला में कुल 648 प्राथमिक व 475 मध्य विद्यालय संचालित है. इनमें कुल 2 लाख 47 हजार 406 बच्चे नामांकित हैं. जिनमें से अब तक 36 हजार 906 बच्चों को ही पुरानी पुस्तकें उपलब्ध करायी गयी है, उसमें भी कई पुस्तकें ऐसी है जो पढ़ने लायक ही नहीं है़ सत्र 2017-18 का चौथा महीना बीतने को है, किंतु अब तक कुल 2 लाख 10 हजार 5 सौ बच्चे बिना पाठ्य पुस्तक के ही विद्यालय पहुंच रहे हैं. समझा जा सकता है कि जब बच्चों के पास पढ़ने के लिए अपनी पाठ्य पुस्तकें ही नहीं होगी तो वह कक्षा में क्या पढ़ेंगे और गृह कार्य कैसे करेंगाे ऐसा प्रतीत होता है
कि शिक्षा विभाग बच्चों के प्रति संवेदनशील नहीं हैं. विभाग को यदि तनिक भी शिक्षा के अधिकार कानून का ख्याल होता तो स्कूली बच्चों को समय पर पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध करा दी जातीं.
दो लाख से अधिक बच्चों का भविष्य अंधकारमय
शिक्षा के अधिकार कानून से बच्चे हो रहे वंचित
चौथे महीने में भी नहीं मिली हैं पाठ्य-पुस्तकें
सदर प्रखंड स्थित मध्य विद्यालय गढ़ी के कक्षा सात की छात्रा संजना कुमारी ने बताया कि किताब नहीं रहने के कारण वह न तो घर में विभिन्न विषयों का अध्ययन कर पाती है और न ही विद्यालय में शिक्षक उन्हें पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ा रहे हैं. ऐसे में उसकी विषयवार पढ़ाई नहीं हो पा रही है़ विद्यालय जाते हैं तो ऐसा लगता है कि वहां वह सिर्फ मध्याह्न भोजन खाने ही जाते हैं.
शहर के कन्या मध्य विद्यालय छोटी केलाबाड़ी में कक्षा आठ की छात्रा सोनम कुमारी ने बताया कि बिना किताब के विद्यालय आने का मन नहीं करता है़ पाठ्यक्रम के अनुसार किसी भी विषय की पढ़ाई नहीं होती है़ घर में सिर्फ व्याकरण तथा ग्रामर की ही पढ़ाई कर पा रहे हैं. किसी भी विषय की पुस्तकें उपलब्ध नहीं रहने से उसे संबद्ध विषय की कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है़ बाजार में भी सरकारी विद्यालय की पुस्तकें नहीं मिलती है, अन्यथा वहां से खरीद कर भी पढ़ाई जरूर करती.

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