मधुबनीः जिले में मनरेगा योजना के तहत पौधरोपण के नाम पर लाखों खर्च हुआ, लेकिन पंचायतों में कहीं भी पौधा नजर नहीं आ रहा़ यदि किसी पंचायत में पौधा लगा भी है तो जंगली पौधा लगा हुआ है़ लेकिन इन पेड़ों पर हजारों रुपये खर्च कर दिये गये हैं. पौधा लगाने के नाम पर जिले में लाखों रुपये खर्च किये गये तो पेड़ की निगरानी के लिये वनपोषक के नाम पर ही हर माह हजारों रुपये खर्च हो रहे हैं, लेकिन पौधों की संख्या मात्र कागज तक ही सिमट कर रह गयी़ किसी भी पंचायत में लगाये गये पौधा का 10 फीसदी पौधा नहीं बचा हुआ है़.
लाखों हुए खर्च
पौधरोपण अभियान में पंचायत जनप्रतिनिधि एवं मनरेगा के पंचायत स्तरीय पदाधिकारियों ने जमकर खर्च किया़. एक पौधा को लगाने में करीब 200 रुपये खर्च किये गय़े पौधों की खरीद में घटिया से घटिया स्तर का पौधा लगाया गया जो लगते ही सूखने लग़े लेकिन जन प्रतिनिधियों एवं संबंधित पदाधिकारियों ने इन सूखे पौधे को भी बचाने के नाम पर हजारों का वारा न्यारा कर लिया़.
सूत्रों की मानें तो जिला में शायद ही ऐसा कोई पंचायत हो जहां पौधरोपण के नाम पर लाखों का खर्च नहीं दिखाया गया है़ सूत्रों की मानें तो पौधरोपण योजना पंचायत प्रतिनिधियों के लिये कामधेनु गाय के रूप में सामने आया़ . एक पौधा की खरीद पर 35 रुपये से लेकर 100 रुपये तक खर्च किये गये तो इन पौधों को आवारा पशुओं से बचाने के नाम पर बांस घेराव के नाम पर प्रति पौधा करीब 150 रुपये का बजट पेश किया गया और राशि की निकासी की गयी़.
बाजार में एक बांस की कीमत 30 से 50 रुपये तक आता है़ एक बांस से कम से कम 8 से 10 पौधा का घेराव किया जा सकता है,लेकिन इसी घेराव के नाम पर प्रति पेड़ 150 रुपये विभाग से लिया गया़.
वनपोषक भी काम ना आया
पौधा को लगाने के बाद पौधा को बचाने के नाम पर वनपोषक की नियुक्ति हुई़ इस मद में भी लाखों रुपये खर्च किये गय़े नियमानुसार एक वन पोषक को न्यूनतम मजदूरी के दर से भुगतान किया गया़. जिसमें प्रति पंचायत हजारों रुपये खर्च किया गया़ भले ही वनपोषक किसी पौधा को बचा नहीं सका हो और शायद ही किसी पौधा में कभी पानी भी दिया हो. कुल मिलाकर पौधरोपण अभियान में लाखों का वारा न्यारा किये जाने की बात सामने आयी है़.