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10 साल के सोनू के सहारे लोगों की होती है नैया पार

मधुबनी : बाढ़ प्रभावित मधेपुर इलाके के जानकीनगर, द्वालख, महपतिया सहित आस पास के लोगों का खेवनहार एक 10 साल का बालक है. यही बालक इन दिनों हर दिन लोगों की नैया पार लगाता है. उम्र कम होने के साथ साथ शारीरिक रूप से भी इतना कमजोर है कि ठीक से नाव खेने वाला बांस […]

मधुबनी : बाढ़ प्रभावित मधेपुर इलाके के जानकीनगर, द्वालख, महपतिया सहित आस पास के लोगों का खेवनहार एक 10 साल का बालक है. यही बालक इन दिनों हर दिन लोगों की नैया पार लगाता है. उम्र कम होने के साथ साथ शारीरिक रूप से भी इतना कमजोर है कि ठीक से नाव खेने वाला बांस भी नहीं उठा पाता. पर इसके बाद भी जान पर खेलकर बांस उठाता है और तेज धारा में लोगों को इस पार से उस पार करता है. इसके बदले उसे कुछ मजदूरी भी नहीं मिलती. दरअसल जानकीनगर घाट पर सरकार द्वारा लोगों को पार उतारने के लिये सरकारी नाव उपलब्ध कराया गया है. जिसका एक नाविक शनिचर सदाय है.
शनीचर सदाय जब नाव खेते खेते थक जाता है तो वह घर पर चला जाता है और फिर नाव खेने की जिम्मेदारी उसके छोटे से पोते सोनू पर आ जाती है. सोनू को यह भी पता नहीं है कि उसे इस नाव खेने के एवज में क्या मिलेगा या क्या मिलना चाहिए. उसे तो बस अपने दादा द्वारा लोगों को हर हाल में नैया पार लगाने का आदेश पालन करना है. कई कई बार तो दिन भर सोनू ही लोगों को पार करता है.
यह अक्सर तब होता है जब शनिचर सदा बाजार किसी काम से या जिला मुख्यालय में किसी काम से आता है. सोनू बताता है कि जिस दिन उसके दादा नहीं होते हैं उस दिन वह सुबह से शाम तक लोगों को नदी पार कराता है. नन्हीं सी जान से नाव खेने का बांस भी नहीं उठाया जा रहा था. पर इसके बाद भी लोग नाव पर सवार होकर इस पार से उस पार हो रहे थे. सोनू न तो किसी से इसके एवज में कुछ मांगता और न ही लोग उसे कुछ दे रहे थे. सोनू बताता है कि वह नाव खेने का काम अपने दादा से ही सीखा है. करीब दो साल पहले से वह अपने दादा को नाव खेने में सहयोग कर रहा है. इसी दौरान वह नाव चलाना सीख गया.
बाढ़ में कई लोगों की बचायी जान
दस साल का सोनू देखने में भले ही कमजोर है. पर इसकी हिम्मत को आज क्षेत्र का हर कोई सलाम करता है. गांव के लोगों ने बताया कि जब गांव में भूतही बलान का पानी रातों रात घुस गया था और लोग पानी की धारा में दूर दूर तक खेत में चले गये थे तो यह बच्चा पानी की तेज धारा में अपनी जान पर खेलकर नाव लेकर जाता और हर मददगार को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाता. लोगों ने बताया कि घाट पर वैसे तो तीन नाव हैं.
पर एक नाविक निजी रूप से पैसे कमाने के लिये बाढ़ के दौरान दूसरे इलाके चला गया. ऐसे में पूरा भार इसी एक नाव पर आ गया. अब दिन रात भला एक नाविक शनिचर सदा कितना नाव चलाते. स्वाभाविक है थकान होती और बैठ जाते. पर इसी दौरान जब किसी के पानी में चले जाने की सूचना आती तो मजबूरी में सोनू को नाव लेकर भेजते. सोनू भी लोगों को सुरक्षित बचाकर निकाल लाता.
दूसरों की जान बचाने में गंवा बैठे अपनी संपत्ति
सोनू के दादा शनिचर सदा बताते हैं कि बाढ़ में उनका सब कुछ पानी में बह गया. वे खुद नाव चलाते हैं पर अपने सामान को नहीं बचा सके. बताते हैं कि यदि वे अपने घरेलू सामान को बचाने में लग जाते तो शुरुआत में पानी की धारा इतनी तेज थी कि कई लोगों की जान चली जाती. पर मानव जीवन को बचाने में अपने सामान को बर्बाद होते देखते भर रह गये.

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