मधुबनी : शहर से दूर तीन किलोमीटर पर अवस्थित सप्ता पंचायत का कंजर बस्ती. सड़क के दोनों किनारे बहुत कम घर. सप्ता पंचायत का 400 परिवारों वाली इस बस्ती के लोगों का मुख्य पेशा भीख मांगना एवं शिकार खेलना ही है. पर इस बस्ती के लोग भी अब इस पेशे को छोड़ना चाहते हैं. सो बस्ती के अधिकांश युवक सुबह होते ही काम की तलाश में निकल जाते हैं.
कभी काम मिलता है, तो कभी दिन भर काम के तलाश में भटकते रह जाते हैं. अधिकांश युवकों को नप के एक स्वयं सेवी संस्था काम मुहैया कराती है. जिस कारण इन लोगों के रहने और जीवन शैली में अभूतपूर्व बदलाव भी हो गया है. पर यह इनके लिये काफी नहीं. पूरे जिले भर में केवल एक संस्था है जो इन्हे काम मुहैया करा रही है. शुक्रवार को भी इस बस्ती के करीब एक दर्जन लोग सुबह सुबह ही काम पर निकले. पर अब भी करीब 20 से 25 युवक बस्ती में वैसे ही बैठे रहे. बताया कि उन्हें काम नहीं मिल रहा. जिस कारण वे लोग दिन भर किसी तरह बस्ती में समय काट रहे हैं.
आम मजदूरों की तरह नहीं मिलता काम . कंजर बस्ती के श्याम लाल कंजर बतलाते है कि हमलोगों को काम नहीं मिलता है. काम के अभाव में हमलोग भीख मांगते है या जानवरों का शिकार करते है. हमलोग काफी गरीब है, दो शाम का खाना भी बहुतों को नसीब नहीं होता है. हमलोग कंजर जाति के हैं. आज भी हम लोगों को समाज का हर वर्ग अपने दरवाजे या घर में प्रवेश नहीं करने देता. यही कारण है कि हमें रोज रोज काम नहीं मिलता. जब कभी कोई काम देता भी है
तो वह काम मिलता है जो कोई अन्य करने में परहेज करते हैं. मानों हम इसी के लिये बने हैं. बीते कुछ दिनों से इस मुहल्ला के युवाओं को नप प्रशासन की ओर से दैनिक मजदूरी पर रखा गया. इन लोगों से मुख्यत: नाला सफाई का काम कराया जा रहा था. आज भी कुछ युवक काम कर रहे हैं. जब काम मिला तो लगा कि अब शायद पीढी दर पीढी भीख मांगने व शिकार करने की प्रवृति से छुटकारा मिलने वाला है. अपने पति, बेटे को समाज के आम लोगों की तरह ही काम करते देख समुदाय के लोगों में खुशी भी हुई. पर जैसे जैसे समय बीतता गया, इनके सामने समाज की सच्चाई आती गयी. आज भी इन्हें आम लोग काम नहीं देते. कभी जो कुछ काम मिल पाता है वह नप के स्वयंसेवी संस्था के द्वारा ही मिल रहा है.
सड़क एवं नाले का अभाव. टूटी फुटी पतली सड़क, दुरूह रास्ता जहां शाम के बाद पैदल चलना भी मुश्किल इस कंजर बस्ती की पहचान है. बस्ती के लोग बताते हैं कि बरसात में इस सड़क पर आवागमन अवरुद्ध हो जाता है. रास्ते पर जल जमाव की मुख्य समस्या है. एक भी नाला कंजर बस्ती में नहीं है. जिससे जल जमाव की समस्या उत्पन्न होती है. इस टोले में अवस्थित सामुदायिक भवन अधूरा पड़ा है. इसी प्रकार प्रधानमंत्री इंदिरा आवास योजना के तहत 250 परिवारों को सरकार द्वारा आवास प्रदान किया गया है.
बांकी 150 परिवारों को यह लाभ अब तक नहीं मिला है. एक भी चापाकल इस कंजर बस्ती में नहीं है. जिस कारण दुरूह रास्तों से दूर से पानी ढोना पड़ता है. एक भी शौचालय की व्यवस्था सरकार द्वारा नहीं की गयी है. जिससे इस बस्ती में रहने वालों गज्जो देवी कहती है कि हमारी बस्ती की बहु बेटियां सड़क के किनारे खुले में शौच करती है. राशन भी कभी कभार मिलता है एवं गैस चूल्हा भी नहीं मिला है.
सामाजिक सुरक्षा लाभ योजना से वंचित. इस बस्ती के धर्मेंद्र कंजर बताते हैं कि मैंने अपनी बेटी की शादी 2012 में की थी, पर शादी में खर्च का एक भी पैसा पांच साल में नहीं मिला. रहिका प्रखंड का कई बार चक्कर लगाया और आज भी लगा रहे हैं, लेकिन कोई पदाधिकारी सुनते ही नहीं. हम लोगों को वृद्धावस्था पेंशन भी नहीं मिलता है.
समाज का हर वर्ग नहीं दे रहा काम, अब भी समाज से दूर ही हैं इस समुदाय के लोग
हर योजना से वंचित है बस्ती, सड़क व पानी
तक का नहीं है इंतजाम
नहीं िमला योजनाअों का लाभ
ऐसा नहीं कि इन कंजरों की स्थिति का जिले के अधिकारियों को जानकारी नहीं है. जब कभी भी किसी योजना के शुरुआत की बात होती है तो अधिकारी इस मुहल्ले की ओर ही दौड़ते हैं. बात स्वच्छता अभियान की हो, नशा मुक्ति अभियान की, इंदिरा आवास की या अन्य कोइ जनसरोकार से जुड़ी योजना की बात हो.
डीएम, डीडीसी व अन्य अधिकारियों का इस बस्ती में आना जाना लगा होता है. जागरूकता अभियान के दौरान इन लोगों के बीच समाज की मुख्य धारा से जुड़ने, शिक्षा ग्रहण करने, आम लोगों की तरह रहने की नसीहत देते हैं. पर इस पर खुद प्रशासन ही पहल नहीं करता.
आज भी उपेक्षित
हैं बस्ती के लोग
सप्ता पंचायत के मुखिया योगेंद्र साह बतलाते हैं कि कंजर टोला पूर्व से उपेक्षित रहा है और आज भी उपेक्षित है. कंजर बस्ती के लोग वास्तव में कष्ट का दंश झेल रहे हैं.