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परंपरा . सदियों से लगते आ रहे इस मेले की पौराणिकता है सिद्ध

सिंहेश्वर मेला का गौरवशाली है अतीत प्रसिद्ध सिंहेश्वर मेला में केवल छह दिन ही शेष रह गये हैं. जिले की धार्मिक नगरी सिंहेश्वर को शिव मंदिर व शिवरात्रि के अवसर पर लगने वाले मेले के लिए जाना जाता है़ यहां शिवरात्रि मेला कब से लगाया जा रहा है इसका लिखित प्रमाण नहीं है, लेकिन सिंहेश्वर […]

सिंहेश्वर मेला का गौरवशाली है अतीत

प्रसिद्ध सिंहेश्वर मेला में केवल छह दिन ही शेष रह गये हैं. जिले की धार्मिक नगरी सिंहेश्वर को शिव मंदिर व शिवरात्रि के अवसर पर लगने वाले मेले के लिए जाना जाता है़ यहां शिवरात्रि मेला कब से लगाया जा रहा है इसका लिखित प्रमाण नहीं है, लेकिन सिंहेश्वर नाथ मंदिर में स्थापित शिव लिंग की पौराणिकता सिद्ध है़
सिंहेश्वर : साढ़े सात हजार वर्ष पहले ऋषि शृंग ने शिव लिंग को पुनर्जागृत किया. इसके बाद कई युगों में विभिन्न साम्राज्य के राजाओं ने बाबा सिंहेश्वर नाथ की आराधना की और मंदिर को संरक्षण दिया़ 1800 ई में हरिचरण चौधरी ने इस शिवलिंग पर मंदिर बनवाया. दरभंगा महाराज के संरक्षण के बाद राजभर ने शिव की उपासना की.
पंडा के विरोध के बाद मामला अदालत में गया. जालंधर पंडा ने अपने पक्ष में फैसले के बाद 1905 में इसमें आराधना शुरू की. इसके बाद 1935 में सनातन धर्मावलंबियों ने पंडा समूह के विरोध में फिर अदालत की शरण ली. मंदिर की व्यवस्था को जब 1945 के आसपास कोर्ट के आदेश पर न्यास के अधीन किया गया तब प्रशासन की ओर से व्यवस्थित तरीके से मेला लगाया जाने लगा़ मेले की जगह को नियोजित तरीके से सजाया गया़
डिजाइन बना कर मेला परिसर में चतुर्भुज सड़क बनाया गया और इसके बीच में पार्क बनाया गया़ जहां सड़कें मिलती थी वहां कुआंनुमा घेरा बना कर फव्वारा लगाया गया़ जिस स्थान पर मेले का उद्घाटन किया गया, वहां एक गेट बनाया गया़ सड़क के दोनों ओर आम और इमली के पेड़ लगाये गये़ इस दौरान पशु मेला भी लगाया जाता था
जो सोनपुर पशु मेले से भी बड़ा था. पशु मेला समाप्त हो गया लेकिन हर सप्ताह पशु हाट लगने का सिलसिला अब भी जारी है. इतिहासकार हरिशंकर श्रीवास्तव शलभ की लिखी किताब शैव अवधारणा और सिंहेश्वर में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है.

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