मधेपुरा : शनिवार की रात फर्जी डॉक्टर के भरोसे अवैध रूप से संचालित निजी नर्सिंग होम में प्रसूता की मौत के बाद से स्वास्थ्य महकमा सवालों में घिर गया है. चूंकि जिले में संचालित नर्सिंग होम, क्लिनिक व पैथोलॉजी की जांच स्वास्थ्य विभाग के जिम्मे है. इस संबंध में सिविल सर्जन डाॅ गदाधर पांडे ने कहा कि जहां महिला की मौत हुई है वह नर्सिंग होम बिना डॉक्टर के फर्जी रूप संचालित हो रहा था. वहां कोई बोर्ड या साइन बोर्ड नहीं लगा हुआ है,
जबकि प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि क्लिनिक के सामने बड़ी-बड़ी डिग्रियों के साथ कई डॉक्टर का नाम लिखा हुआ बोर्ड लगा हुआ था, लेकिन महिला की मौत के बाद बोर्ड को वहां से हटा दिया गया. इससे स्पष्ट होता है कि मरीज की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग क्लिनिक को फर्जी बता कर अपने कर्तव्य से इतिश्री कर ली. इसके बाद प्रभात खबर ने शहर में नर्सिंग होम, क्लिनिक व पैथोलॉजी की पड़ताल की, तो कई
चौंकाने वाले तथ्य सामने आये. केवल शहर में सौ से अधिक ऐसे नर्सिंग होम, क्लिनिक व पैथोलॉजी के बोर्ड व साइन बोर्ड लगे दिखे जिस पर बड़े-बड़े डॉक्टर के नाम लिखे थे. मुख्यालय के अलावा विभिन्न प्रखंडों में इनकी संख्या पांच सौ से अधिक बतायी जा रही है, जबकि हैरत करने वाली बात यह है कि स्वास्थ्य विभाग से पूरे जिले में केवल 49 नर्सिंग होम, क्लिनिक व पैथोलॉजी का औपबंधिक पंजीयन हुआ है. जिला पदाधिकारी की अध्यक्षता व सिविल सर्जन के संयोजन में बैठक कर इनका पंजीयन किया गया था.
इसमें 44 नर्सिंग होम, क्लिनिक व पैथोलॉजी की पंजीयन की समय सीमा समाप्त हो चुकी है. इस प्रकार जिले में केवल नर्सिंग होम, क्लिनिक व पैथोलॉजी हैं जिन्हें स्वास्थ्य विभाग से औपबंधिक पंजीयन प्राप्त है. स्वास्थ्य विभाग ने सभी को छह माह के भीतर एमसीआइ के मानक अनुसार संसाधन व सुविधा को पूरा करने का निर्देश दिया था, लेकिन एमसीआइ के मापदंड को पूरा करने में मधेपुरा का लगभग सभी नर्सिंग होम, क्लिनिक व पैथोलॉजी को अब तक अक्षम बताया जा रहा है. हालांकि स्वास्थ्य विभाग से मिल रही जानकारी के अनुसार इससे संबंधित मामला उच्च न्यायालय पटना में लंबित है. स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों की माने तो क्लिनिकल स्टेबलिसमेंट एक्ट के तहत निजी नर्सिंग होम, पैथोलॉजी, क्लिनिक खोलने के लिए कई प्रावधान हैं, लेकिन इसका अनुपालन नहीं हो रहा है.
अगर इसे सख्ती से लागू किया जाये तो अधिकांश नर्सिंग होम, क्लिनिक व पैथोलॉजी का शटर गिर जायेगा. हालांकि जिन 49 नर्सिंग होम, क्लिनिक व पैथोलॉजी को औपबंधिक पंजीयन दिया गया है वहां की व्यवस्था कुछ ठीक ठाक बतायी जा रही है. इसके अलावे जिले में संचालित अन्य नर्सिंग होम, क्लिनिक व पैथोलॉजी की जानकारी स्वास्थ्य विभाग को नहीं है.
नर्सिंग होम व क्लिनिक में एमबीबीएस तो पैथोलॉजी में एमडी का होना अनिवार्य. एमसीआइ के मानक अनुसार नर्सिंग होम व क्लिनिक में डॉक्टर को एमबीबीएस की डिग्री, तो पैथोलॉजी खोलने के लिए एमडी डॉक्टर का होना अनिवार्य है. इसके अलावा एमसीआइ के मापदंड के अनुसार नर्सिंग होम व क्लिनिक में मरीजों के लिए सारी सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए, लेकिन इन नियमों की अनदेखी कर नर्सिंग होम, क्लिनिक व पैथोलॉजी का संचालन हो रहा है.
डॉक्टर तो डॉक्टर कंपाउंडर व नर्स भी अनुभवहीन. मुख्यालय सहित पूरे जिले में संचालित पांच सौ से अधिक नर्सिंग होम, क्लिनिक व पैथोलॉजी में डिग्रीधारी डॉक्टर की बात तो दूर वहां कार्यरत कंपाउंडर व नर्स अनुभवहीन व फर्जी हैं, जबकि एमसीआइ के मानक अनुसार नर्सिंग होम, क्लिनिक व पैथोलॉजी में कार्यरत नर्स को नर्सिंग कोर्स करना अनिवार्य है. बिना प्रशिक्षित नर्स व कंपाउंडर के भरोसे चल रहे नर्सिंग होम, क्लिनिक व पैथोलॉजी के खिलाफ स्वास्थ्य विभाग कार्रवाई कर सकती है.
शहर से लेकर गांव तक फल-फूल रहा यह गोरखधंधा. फर्जी डॉक्टर के भरोसे संचालित नर्सिंग होम के संचालक का नेटवर्क तेज रहता है. प्रखंड से लेकर गांव तक इनके बिचौलिये तैनात रहते है. खास कर मरीज लाने में मुख्य भूमिका आशा निभाती है. शहर से सटे सटे गांव व कस्बों में इस तरह के क्लिनिक संचालित हो रहे है. इन जगहों पर कार से उतरने वाले डॉक्टर खुद को एमबीबीएस बता कर मरीजों का सर्जरी करते हैं. स्वास्थ्य विभाग की सूत्रों की माने तो विभाग के आंखों के सामने यह गोरखधंधा शहर से लेकर गांव तक फल फूल रहा है, लेकिन इसके खिलाफ कार्रवाई के बजाय मोटी रकम की वसूली होती है.
मरीजों का हो रहा आर्थिक दोहन. जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में नियमों को ताक पर रख कर इन दिनों धड़ल्ले से निजी नर्सिंग होम, क्लिनिक व पैथोलॉजी का संचालन किया जा रहा है. शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में अनाप शनाप कमाने के उद्देश्य से फर्जी नर्सिंग होम व क्लिनिक खोले जा रहे हैं. ऐसे फर्जी डॉक्टरों के भरोसे चल रहे निजी नर्सिंग होम की जिले में भरमार है. इनमें अधिकतर ऐसे स्वास्थ्य संस्थान हैं,जो मरीजों का आर्थिक दोहन करते हैं. जानकारों की मानें तो मरीजों के उपचार के नाम पर कई स्तरों पर दोहन किया जाता है. खासकर विभिन्न तरह के जांच के नाम पर अत्यधिक आर्थिक दोहन किया जाता है.
क्लिनिकल स्टेबलिसमेंट एक्ट के प्रावधान. क्लिनिकल स्टेबलिसमेंट एक्ट में कई तरह के प्रावधान दिये गये हैं पर अधिकतर स्वास्थ्य संस्थान मानकों पर खरा नहीं उतर रहे हैं. एक्ट के तहत जिन संस्थान को औपबंधिक निबंधन दिया गया है, उनमें से भी अधिकतर प्रावधान को पूरा नहीं करते हैं. ऐसे संस्थानों के पास आधारभूत संरचना के अलावा कई बुनियादी चीजों का भी अभाव है. दरअसल, जिले में अधिकांश ऐसे स्वास्थ्य केंद्र हैं, जो अपने कृपा पात्रों के द्वारा मरीजों व उनके परिजनों को बरगला कर उनका आर्थिक दोहन करते हैं.
कंचन की मौत के बाद हरकत में आया स्वास्थ्य महकमा. शहर के भीरखी स्थित जय भवानी सेवा सदन में महिला की मौत के बाद स्वास्थ्य महकमा हरकत में आया और सिविल सर्जन के निर्देश पर बिना डॉक्टर के संचालित अवैध नर्सिंग होम को सील कर दिया गया. वहीं पुलिस ने मृतका कंचन के देवर के बयान पर चिकित्सक डॉ एसके चौधरी, नर्स निर्मला व कंपाउंडर संजीव कुमार पर हत्या की प्राथमिकी दर्ज कर अनुसंधान शुरू कर दिया है. परिजनों ने नर्सिंग होम संचालक पर मृतका की मौत के बाद उनके देवर ने डाॅक्टर के कर्मियों व भाड़े के गुडों को बुलाकर मारपीट करने, जेब से मोबाइल व नकद 16 हजार रुपये छीनने का आरोप लगाया है. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मानें, तो अवैध ढंग से संचालित नर्सिंग होम में चिकित्सक के नाम पर कोई सुदर्शन कुमार नामक कंपाउंडर नर्सिंग होम में ऑपरेशन करता था. ज्ञात हो कि भर्राही ओपी क्षेत्र के गम्हरिया वार्ड संख्या सात के मनीष कुमार के 25 वर्षीय पत्नी कंचन की मौत हो गयी थी. उसके बाद परिजनों ने मधेपुरा-सुखासन पथ पर शव को रख सड़क को लगभग चार घंटे जाम कर प्रदर्शन किया. प्रभात पड़ताल में स्थानीय लोगों ने बताया कि नर्सिंग होम में कंपाउडर के सहारे ही मरीजों का इलाज होता था. वहीं बताया गया कि नर्स निर्मला द्वारा सहरसा जिले के बैधनाथपुर में इसी तरह का एक और फर्जी क्लिनिक संचालित किया जा रहा है.