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महापर्व छठ का बिहार में है विशेष महत्व

महापर्व छठ का बिहार में है विशेष महत्व लखीसराय: लोक आस्था का महापर्व छठ का बिहार में विशेष महत्व है. प्रतिवर्ष दो बार कार्तिक व चैत माह में मनाये जाने वाला यह पर्व लोगों की आस्था से जुड़ा है. यह पर्व तुरंत फलदायक मनोकामना सिद्धि व संतान सुख देने वाला माना जाता है. बिहार के […]

महापर्व छठ का बिहार में है विशेष महत्व लखीसराय: लोक आस्था का महापर्व छठ का बिहार में विशेष महत्व है. प्रतिवर्ष दो बार कार्तिक व चैत माह में मनाये जाने वाला यह पर्व लोगों की आस्था से जुड़ा है. यह पर्व तुरंत फलदायक मनोकामना सिद्धि व संतान सुख देने वाला माना जाता है. बिहार के सबसे बड़े महापर्व में लोग आराधना करते हैं. मान्यता है कि निष्ठापूर्वक छठ मइया की आराधना से पारिवारिक सुख-शांति एवं असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है. इसके अलावे संतानोपत्ति धन, यश की प्राप्ति होती है. कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक के महापर्व का विशेष महत्व है. आज इसका फैलाव देश के कोने-कोने तक हो चुका है. बिहार में छठ की तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है. श्रद्धालु आश्विन पूर्णिमा से ही इसकी तैयारी में जुट जाते हैं. गांव की गलियों, नदी, तालाब के घाटों की साफ-सफाई कच्चे घर आंगन, रास्ते को पवित्र समझे जाने वाले गाय के गोबर का लेप लगा कर शुद्ध करना इस महापर्व की महात्म के प्रति लोगों की आस्था को दर्शाता है. अहले सुबह महिलाएं छठ मइया के महिमा मंडित गीतों को गाती नदी तट तक जाती है. एक पखवारा पूर्व से ही गांव में नारियों के मिश्रित कंठ से सुनिह अरजिया हमार हे छठी मइया……. मारबो रे सुगवा धनुष से……..आदि की गूंज से चहुंओर श्रद्धा एवं भक्ति की मंदाकिनी बहने लगती है पंचमी तिथि को खरना का दिन होता है. इस दिन व्रती उपवास रख कर संध्या समय खीर, सुखी पूड़ी का नैवेदय छठ मइया को चढ़ा कर प्रसाद ग्रहण करती है तथा स्वजनों एवं मित्रों को खरना का प्रसाद खाते-खिलाते हैं. षष्ठी तिथि सूर्योपासना का दिन होता है भविष्य पुराण में कहा गया है षष्ठी तिथि सर्वदा समस्त कामनाओं को देने वाली होती है जो अपनी जय की इच्छा रखता है, उसे षष्ठी तिथि को सभी समयों में प्रत्यन पूर्वक उपवास रखना चाहिए. षष्ठी तिथि को व्रती बिना जल ग्रहण किये रहते हैं. व्रती सवेरे से ही स्नादि से निवृत्त होकर पकवान बनाती है. इस कार्य में सहयोग करने वाली महिलाएं भी उपवास रखती है. संध्या में सूप में नारियल, मूली, सेब, संतरा, डाभ, मौसमी, पानी फल, किसमिस , मखाना, गन्ना, सिंदूर, अछत, पान, सुपारी, लाल धागा और दीया रख कर नदी तट पर पानी में खड़े होकर अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित करती है. इसी तरह सप्तमी को उदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जाता है. मान्यताओं के मुताबिक सूर्य पूरब दिशा का स्वामी है इसलिए पूरब दिशा में उगते सूर्य को अर्घ्य देने का चलन है. इसी तरह सूर्य पश्चिम दिशा में अस्त होता है जिसका स्वामी शनि है इसलिए अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. सूर्योपासना का महान पर्व है छठ सूर्यगढ़ा: लोक आस्था से जुड़ा छठ पर्व बिहार का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. यह पर्व सूर्योपासना का एक महान पर्व है. इस महापर्व में परंपरा का विशेष महत्व है. चाहे भगवान सूर्य को अर्घ्य देने की पंरपरा हो या स्वच्छता के साथ छठ व्रत संपन्न करने का चलन सभी चीजें श्रद्धालु पूरी श्रद्धा एवं विश्वास के साथ संपन्न करते हैं. भारतीय संस्कृति में सूर्य पूजन की परंपरा काफी पुरानी हे. हम वैदिक युग से सूर्य की उपासना करते रहे हैं. वस्तुत: सूर्य के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती. शायद इसीलिए सूर्य को प्रत्यक्ष ब्रहम भी कहा जाता है. सूर्यगढ़ा सूर्योपासना का प्राचीन केंद्र रहा है पोखरमा, नंदपुर सहित कई जगहों पर सूर्योपासना का प्रमाण मिलता है. यह सूर्यवंशी राजाओं का गढ़ रहा है. सूर्योपासना के महापर्व छठ में श्रद्धालु अपने इष्ट देवता की प्रत्यक्ष पूजा करते हैं जबकि अन्य देवताओं की पूजा सिर्फ कल्पना के आधार पर की जाती है. मान्यता है कि सूर्योपासना से दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से मुक्ति मिलती है तथा सर्वकामना की सिद्धि होती है. इस पर्व में स्वच्छता व अनुशासन का विशेष महत्व है. यह छठ पर्व का महात्य ही है कि एक पखवारा पूर्व से ही अहले सुबह से ही महिलाएं छठ छठ गीत गाती पर्व की तैयारी में जुट जाती है. बड़की पर्व के रूप में भी जाना जाने वाला महापर्व छठ सामाजिक समरसता की भी अद्वितीय मिसाल पेश करता है. इस पर्व में आपसी सहयोग, समरसता, सदभाव की एक अनुठी मिसाल देखने को मिलता है. लोग जाति-धर्म, अमीर गरीब के तमाम बंधनों से उपर उठ कर दूसरे को सहयोग करते नजर आते हैं. इस पर्व का महत्व ही है कि हिंदुओं के अलावे मुस्लिम समुदाय के लोग भी इसमें बढ़-चढ़ कर अपनी भागीदारी निभाते हैं. कुछ जगहों पर मुस्लिम धर्मावलंबियों भी छठ पर्व में शिरकत करते नजर आते हैं. चाहे छठ के लिए फल, बद्धी, गन्ना, नारियल बेचने की बात हो या फिर अन्य कार्य सभी जगहों पर हिंदुओं के साथ मुस्लिम धर्मावलंबी सहभागी देते हैं. क्या अमीर क्या गरीब सभी लोग एक साथ पूरी आस्था एवं भक्ति भाव से नदी तट पर पानी में खड़े होकर अस्ताचलगामी एवं उदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित करते हैं. मान्यता है कि जो श्रद्धालु पंचमी तिथि को एक वक्त भोजन कर षष्ठी का उपवास रखता है तथा सप्तमी को उदयीमान भगवान भास्कर को फल,पकवान आदि अर्पित कर अर्घ्य अर्पित करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है. त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रा ने भी सूर्योपासना की थी. दानवीर कर्ण सूर्य के उपासक थे. छठ पर्व के एक गीत में छठ मइया को भगवान सूर्य का बहन बताया गया है. रखा खरना का व्रत लखीसराय: लोक आस्था का महापर्व चार दिवसीय अनुष्ठान के दूसरे दिन सोमवार को व्रती ने खरना का उपवास रखा. शाम में गुड़ एवं चावल से बनी खीर, पूड़ी एवं फल आदि छठी मइया को चढ़ा कर भगवान सूर्य को भोग लगाया गया. इसके उपरांत व्रती एकांत होकर खरना का प्रसाद ग्रहण की. प्रसाद ग्रहण करने के दरम्यान ध्यान रखा गया कि व्रती को कोई आवाज सुनायी न दे. व्रती द्वारा खरना का प्रसाद ग्रहण करने के उपरांत परिवार के अन्य सदस्यों एवं इष्ट मित्रों को खरना का प्रसाद दिया गया. पर्व के दौरान व्रती एवं अन्य सहयोगी महिलाओं द्वारा स्वच्छता का विशेष ख्याल रखा गया ताकि छठ मइया एवं भगवान सूर्यदेव की आराधना में कहीं चूक न रह जाय. अनुष्ठान के दूसरे दिन खरना को लेकर भी व्रती द्वारा तैयारी की गयी. शाम होते ही स्नादि से निवृत्त होकर व्रती एवं अन्य श्रद्धालु महिलाएं अरबा चावल को अच्छी तरह चुन कर सफाई करने के उपरांत गुड़ के साथ खीर बनाने में जुट गयी. इसमें मिटटी या लोहे के चूल्हे पर आम की लकड़ी जला कर पूरे नेम धर्म के साथ खरना का प्रसाद तैयार किया गया. इसमें गुड़ की खीर जिसे आम बोलचाल की भाषा में रसिया भी कहते है एवं सुखी पूड़ी बना कर केला आदि फलों के साथ विधिपूर्वक पूजा की गयी. श्रद्धालुओं ने भी पूजन स्थल पर आस्था पूर्वक आराधना की एवं व्रती के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लिये. बाजारों में उमड़ी भीड़ छठ पर्व की खरीदारी को लेकर मंगलवार को सुबह से ही शहर में खरीदारों की भीड़ उमड़ पड़ी. शहर में फल, पूजन सामग्री सूखा मेवा, गन्ना, मिटटी के बरतन, चीनी का सांचा आदि की सैकड़ों दुकानें सजायी गयी थी. किराना दुकानों में छठ पर्व की सामग्री बेचने की विशेष व्यवस्था की गयी. शहर के अलावे कसबाई इलाकों के हाट बाजारों सूर्यगढ़ा, बड़हिया, मेदनीचौकी, पीरीबाजार, कजरा, हलसी, रामगढ़ चोक, मननपुर बाजार आदि जगहों पर भी छठ पर्व के लिए सैकड़ों दुकानें सजायी गयी. ग्रामीण इलाकों में भी दुकानों में खरीदारों की भीड़ बनी रही. लोगों ने गन्ना, डाभ, फल, मूली, मिटटी के ढकनी, मिटटी का हडि़या, नारियल, सूखा मेवा, बद्धी, पूजन सामग्री आदि की खरीदारी की. सोमवार को बाजारों में समानों की कीमत इस प्रकार समान कीमत गन्ना- 12 से 15 रुपये प्रति डंठल नारियल- 25 रुपये से 35 रुपये प्रति पीस पानी फल(सिंघारा)40 से 50 रुपये प्रति किलो डाभ- 20 रुपये प्रति पीस चीनी सांचा – 90 रुपये प्रति किलो सेब- 60 से 70 रुपये प्रति किलो चिनिया केला- 35-40 रुपये प्रति दर्जन सिंगापुरी केला- 15 से 20 रुपये प्रति दर्जन कमला नीबू – 40 से 50 रुपये प्रति किलो अमरूद- 50 से 60 रुपये प्रति किलो मूली- 20 रुपये प्रति किलो अनानस – 30 रुपये से 40 रुपये प्रति पीस बेदाना- 150 रुपये प्रति किलो नारियल छिला- 40 रुपये प्रति पीस बधी- 12 रुपये से 24 रुपये प्रति दर्जन मिटटी का ढकनी – 10 रुपये प्रति सेट मिटटी का हडि़या- 25 रुपये से 30 रुपये प्रति पीस आम की लकड़ी- 60 रुपये से प्रति पांच किलो बांस का सूप- 50 से 60 रुपये प्रति पीस बांस की टोकरी- 180 से 200 रुपये प्रति पीस बांस का दउरा-100 रुपये प्रति पीस किसमिस- 280 से 400 रुपये प्रति किलो बदाम दाना- 100 रुपये प्रति किलो छोहारा-120 से 180 रुपये प्रति किलो मखाना- 360 रुपये प्रति किलो मुनक्का- 200 रुपये से 240 रुपये प्रति किलो गड़ी गोला- 200 रुपये प्रति किलो काजू-650 रुपये प्रति किलो

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