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कुम्हार के पारंपरिक व्यवसाय पर मंडरा रहा खतरा

लखीसराय : रोशनी का पर्व दीपावली को चंद ही दिन शेष बचे हैं. पर्व में दीपों के महत्व को देखते हुए कुम्हार भी दीप बनाने में जुट गये हैं. दीपावली मे दीया के अलावा बड़े पैमाने पर कलश, लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा के अलावे मिट्टी के बरतनों की विशेष उपयोगिता है. ऐसे में कुम्हार भी इन […]

लखीसराय : रोशनी का पर्व दीपावली को चंद ही दिन शेष बचे हैं. पर्व में दीपों के महत्व को देखते हुए कुम्हार भी दीप बनाने में जुट गये हैं. दीपावली मे दीया के अलावा बड़े पैमाने पर कलश, लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा के अलावे मिट्टी के बरतनों की विशेष उपयोगिता है. ऐसे में कुम्हार भी इन सामानों की तैयारी में महीने भर पहले से जुट जाते हैं.

जैसे जैसे दीपावली नजदीक आ रही है. कुम्हार के चाक तेजी से घूमने लगे हैं. हालांकि अब दीया व अन्य मिट्टी के समान की खरीदारी कम होती है. इस कारण कुम्हार के समक्ष आर्थिक संकट उत्पन्न होने लगा है. कुम्हार राजेंद्र पंडित ने बताया कि एक चाक पर दिन भर में अधिक से अधिक पांच सौ दीये बनाये जा सकते हैं. कड़ी मेहनत कर भी मजदूरी नहीं मिल पाता. अब चाइनीज बल्ब बाजार में आ जाने से मिट्टी के दीये की बिक्री पहले की अपेक्षा बहुत कम हो गयी है.

लेकिन परिवार का भरण-पोषण करने के लिए इस व्यवसाय के अलावे कोई अन्य रोजगार नहीं होने की वजह से मजबूरन यह रोजगार करना पड़ रहा है.पारंपरिक व्यवसाय पर मंडरा रहा खतराराजू पंडित ने बताया कि बाजार चाइनीज सामानों से पटा हुआ है. चाइनीज लाइटों की चकाचौंध के आगे मिट्टी का दीया नहीं बिक पाता है.

दीपावली के समय रंग बिरंगे मिट्टी के खिलौने बच्चों का पसंदीदा रहता है लेकिन आज कल मिट्टी का खिलौना और दीया कि खरीदारी कम हो गयी है. जिस कारण इस पेशा से जुड़े लोगों के पारंपरिक व्यवसाय पर खतरे का आसार मंडराने लगा है. पीढ़ी दर पीढ़ी इस पेशा से जुड़े होने के बावजूद आज कल चाइना लाइटों का प्रचलन बढ़ने से रोजी रोटी पर प्रभाव पड़ने लगा है. अगर यही परिस्थिति रही तो पुरखों का यह व्यवसाय को छोड़ना पड़ेगा.

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