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कमरा व शक्षिकों की कमी से छात्रों को हो रही परेशानी

कमरा व शिक्षकों की कमी से छात्रों को हो रही परेशानी फोटो-01चित्र परिचय: उच्च विद्यालय बड़हिया फोटो-02चित्र परिचय: नवोदय विद्यालय बड़हियाप्रतिनिधि, लखीसरायउच्च विद्यालय बड़हिया के एक भाग में जवाहर नवोदय विद्यालय व दूसरे भाग में इंटर स्तरीय उच्च विद्यालय बड़हिया संचालित हो रहा है. जिससे दोनों विद्यालयों में कमरा की कमी से पठन-पाठन में परेशानी […]

कमरा व शिक्षकों की कमी से छात्रों को हो रही परेशानी फोटो-01चित्र परिचय: उच्च विद्यालय बड़हिया फोटो-02चित्र परिचय: नवोदय विद्यालय बड़हियाप्रतिनिधि, लखीसरायउच्च विद्यालय बड़हिया के एक भाग में जवाहर नवोदय विद्यालय व दूसरे भाग में इंटर स्तरीय उच्च विद्यालय बड़हिया संचालित हो रहा है. जिससे दोनों विद्यालयों में कमरा की कमी से पठन-पाठन में परेशानी हो रही है. इससे विद्यालय में पढ़नेवाले बच्चे भी परेशान है. फिर भी जिला प्रशासन जवाहर नवोदय विद्यालय के निर्मित भवन में विद्यालय को शिफ्ट नहीं कर रही है. जिले के बड़हिया नगर पंचायत में अवस्थित उच्च विद्यालय की स्थापना वर्ष 1912 में की गयी थी. विद्यालय में कक्षा चार से 10 तक की पढ़ाई होती थी. यहां खेल मैदान, भवन, छात्रावास आदि की सुविधा उपलब्ध थी. इस विद्यालय से सैकड़ों विद्यार्थी वैज्ञानिक, इंजीनियर, चिकित्सक व पदाधिकारी बने. जिसके कारण यह विद्यालय मुंगेर के बाद चर्चित विद्यालय माना जाता था. सरकारीकरण के बाद विद्यालय की पढ़ाई की गुणवत्ता में गिरावट आनी शुरू हो गयी. वर्ष 1990 के बाद विद्यालय में पठन-पाठन की गुणवत्ता में गिरावट के साथ ही उत्कृष्ट शिक्षक भी सेवानिवृत होने लगे. शिक्षकों की कमी से पढ़ाई की गुणवत्ता प्रभावित हुई जिसके परिणाम स्वरूप यह सिलसिला वर्ष 2005 तक चला. वर्ष 2006 से शिक्षकों के नियोजन के बाद पठन-पाठन में थोड़ा सुधार हुआ. विद्यालय को राज्य सरकार ने इंटर स्तरीय विद्यालय में उत्क्रमित कर दिया. वर्ष 2006 में ही इस विद्यालय के एक भाग में जवाहर नवोदय विद्यालय की स्थापना कर दी गयी. जिससे विद्यालय में कमरा, क्रीड़ा मैदान, छात्रावास आदि का अभाव हो गया. साथ ही प्राइमरी सेक्शन को समाप्त कर दी गयी. अब इस विद्यालय में कक्षा नौ, 10 व इंटर की पढ़ाई होती है. इसमें कुल मिला कर 500 छात्र-छात्रा विद्यालय के पांच कमरे में पठन-पाठन करते हैं. 11 वीं वर्ग में मात्र एक ही शिक्षक हिन्दी विषय के धनश्याम कुमार है. शेष विषयों में एक भी शिक्षक नहीं है. यहां 117 छात्रों का नामांकन है. शिक्षक व कमरे के अभाव में इन छात्रों का जीवन अंधकारमय होता जा रहा है. शिक्षक धनश्याम कुमार ने बताया कि शिक्षक व कमरा के अभाव में छात्रों की पढ़ाई नहीं हो पा रही है. फिर भी प्रयास रहता है कि बच्चों का वर्ग सफर न हो. क्या कहते हैं प्रभारी प्राचार्यप्रभारी प्राचार्य रामाकांत सिंह ने बताया कि विद्यालय के एक भाग में जवाहर नवोदय विद्यालय संचालित होने से इस विद्यालय में कमरा का अभाव हो गया है. 11 वीं कक्षा के लिए शिक्षकों की कमी की जानकारी डीइओ को दे दी गयी है. क्या कहते हैं डीइओडीइओ त्रिलोकी सिंह ने इस संबंध में बताया कि जिले के जितने भी इंटर स्तरीय विद्यालय में विषयवार शिक्षक नहीं हैं. वहां माध्यमिक शिक्षक के द्वारा वर्ग संचालित कराया जा रहा है. जहां कमरा का अभाव है, उसके संबंध में सरकार को जानकारी दे दी गयी है.नहीं मिला सब्जी की खेती को बढ़ावा उपेक्षित हैं नंदपुर के किसानइसके बावजूद किसानों ने प्रखंड में सब्जी उत्पादन में बनायी पहचान फोटो-04चित्र परिचय: खेत में लगी सब्जीफोटो-05चित्र परिचय: पंकज कुमारफोटो-06चित्र परिचय: उदय शंकर सिंहफोटो-07चित्र परिचय: शंभु सिंहफोटो-08चित्र परिचय: विनय सिंहप्रतिनिधि, मेदनीचौकीसूर्यगढ़ा प्रखंड मुख्यालय से तीन किलोमीटर उत्तर किऊल नदी तट पर अवस्थित नंदपुर गांव विकास की मुख्य धारा से अलग-थलग पड़ गया है. करीब 16 सौ की आबादी वाले इस गांव में एनएच 80 से जोड़ने वाली सड़क बुरी तरह टूट-फूट चुकी है. गांव की गलियों का पक्कीकरण नहीं किया गया है. मिर्च, मसाला, दलहन, तेलहन, सब्जी आदि फसलों का उत्पादन कर किसानों ने प्रखंड में अपनी पहचान बनायी है. स्वास्थ्य उपकेंद्र नहीं रहने से बीमार लोग तीन किलोमीटर की दूरी तय कर सूर्यगढ़ा पीएचसी जाते हैं. सिंचाई की सुविधा नहीं रहने के कारण खेती घाटे का सौदा बन कर रह गयी है. गांव के लोग औसतन लंबे कद के होते हैं. भाषा में मैथिली व अंगिका का मिश्रण है. रहन-सहन, बोलचाल, तौर-तरीका, कद-काठी में प्रखंड के अन्य गांवों से यह अलग थलग है. गांव में पढ़ाई का माहौल नहीं रहने के कारण कुछ लोगों ने अपने बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था शहरों में कर रखी है. गांव के किसानों ने करीब 200 बीघे में सब्जी की खेती कर रखी है. सब्जियों में कद्दू, करैला, नेनुआ, भिंडी, गोभी, टमाटर, परवल आदि शामिल हैं. किसानों को सब्जी की खेती के लिए प्रखंड कृषि कार्यालय से कोई लाभ नहीं मिला. जिससे किसानों की लागत काफी बढ़ गयी. मौसम ने साथ नहीं दिया. गांव के पंकज कुमार ने अपने 15 कट्ठे खेत में करैला व कद्दू की खेती कर रखी है. 13 हजार रुपये लागत है. वह कहते हैं कि प्रखंड कृषि कार्यालय से न तो बीज मिली, न खाद और न ही दवा मिली. डीजल अनुदान भी नहीं मिला. 150 रुपये प्रति घंटा से आठ घंटा पानी पटाना पड़ा. लागत भी हाथ नहीं लगेगी. विनय सिंह बटाई पर सब्जी की खेती करते हैं. वे बोले कि 10 कट्ठा में मिर्च की खेती कर रखी है. स्थिति अच्छी नहीं है. मकई भी हाथ नहीं लगी. पटवन करके रबी फसल की बुआई कर रहे हैं. नमी की कमी के कारण घनिया अभी तक अंकुरित नहीं हुआ है. शंभु सिंह ने तीन बीघे में कद्दू, परोल, करैला, भिंडी की खेती कर रखी है. बीज, खाद, दवा, पानी, डोरी, बांस बत्ती, जुताई, मजदूरी मे कुल 60 हजार रुपये खर्च हो गये. हल्की बारिश के बाद कड़ी धूप होने के वजह से कद्दू व करैला की लतें मर गयी. दिलीप सिंह ने बताया कि हम लोग सब्जी की खेती करते हैं. सरकार हमें बढ़ावा नहीं देती है. उदय शंकर कुमार, भूषण सिंह, राजेंद्र सिंह, विपिन सिंह, देवकी सिंह, परमानंद सिंह आदि ने भी सब्जी की खेती कर रखी है.

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