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बच्चों को रखें स्मार्ट फोन से दूर, मन और शरीर पर पड़ रहा प्रतिकूल प्रभाव, बौद्धिक विकास के लिए भी घातक

किशनगंज : आधुनिक तकनीक ने लोगों के जीवन की हर पहलू को प्रभावित किया है. इससे जहां सुविधाएं बढ़ी है वहीं, इसके दुष्परिणाम भी सामने आये हैं. आज आधुनिता के इस दौर में तेजी से बढ़े स्मार्ट फोन के प्रचलन से खासकर नौनिहालों का स्मार्टनेश बिगड़ रहा है. बच्चों में टेक्नोलॉजी का प्रभाव बड़ों की […]

किशनगंज : आधुनिक तकनीक ने लोगों के जीवन की हर पहलू को प्रभावित किया है. इससे जहां सुविधाएं बढ़ी है वहीं, इसके दुष्परिणाम भी सामने आये हैं. आज आधुनिता के इस दौर में तेजी से बढ़े स्मार्ट फोन के प्रचलन से खासकर नौनिहालों का स्मार्टनेश बिगड़ रहा है. बच्चों में टेक्नोलॉजी का प्रभाव बड़ों की तुलना में चार से पांच गुणा अधिक तेजी से होता है.

इस खतरे से अंजान अभिभावक अपने बच्चों के मनोरंजन एवं उसे स्मार्ट बनाने के लिए उसे स्मार्ट फोन के इस्तेमाल की आजादी दे रहे हैं. जबकि दो साल की उम्र से पहले बच्चे को स्क्रीन एक्सपोजन नहीं होने देना चाहिए. ये बच्चों की सेहत एवं उसके बौद्धिक विकास के लिए घातक है.

बच्चों के दिमाग व शरीर को कई तरह से करता है प्रभावित
दो साल की उम्र तक बच्चों का दिमाग तीन गुणा तक विकसित होता है. ऐसे में स्मार्ट फोन, टीवी, कंप्यूटर, टैबलेट आदि गैजेट्स के इस्तेमाल का असर बच्चों के दिमाग पर पड़ता है. बच्चों के विकसित हो रहे दिमाग पर टेक्नोलॉजी के ओवर एक्सपोजर से बच्चों के दिमाग कई तरह से प्रभावित होते हैं. इससे उसमें सीखने की क्षमता में बदलाव, ध्यान में भटकाव, आंखों पर प्रभाव एवं हायपरएक्टीविटी से स्वयं को अनुशासित व नियमित नहीं रख पाने की समस्याएं पैदा होती है.

बच्चों की मूवमेंट कम हो जाने से उसका शारीरिक विकास भी थम जाता है. इससे बच्चों का मोटापा बढ़ना, निंद की कमी होने के साथ ही उसमें आक्रामकता की प्रवृत्ति जन्म लेने लगती है. जबकि फिजिकल एक्टिविटी से बच्चों में नई स्कील डवलप होती है. इसके अलावा हाई स्पीड मीडिया कंटेंट से बच्चों के फोकस करने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है. स्मार्ट फोन से बच्चों में रेडियेशन का भी खतरा बना रहता है.
क्या कहते हैं चिकित्सक
अभिभावक अपने बच्चों को स्मार्ट फोन, टैबलेट व कंप्यूटर के बेवजह इस्तेमाल से रोकें. इसकी लत लग जाने से बच्चों के बौद्धिक व शारीरिक विकास की क्षमता प्रभावित होने के अलावा वे अपने परिवार से भी कटने लगते है. परिवार से अधिक ह्वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, आदि पर अपना समय गुजारते हैं.
जिससे आगे चल कर वे मानसिक रोग के शिकार हो सकते हैं. इससे बच्चों को बचाने के लिए जरूरी हो तो अपनी निगरानी में स्मार्ट फोन की इजाजत दें. इसके साथ ही फोन से वे सभी एप को समाप्त कर दें, जो बच्चे को प्रभावित कर रहे हैं.
डॉ एमएल रामदास, शिशु विशेषज्ञ

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