कार्तिक के लिए मां पार्वती ने रखा था छठ का व्रत
मानसी : लोक आस्था का चार दिवसीय पावन पर्व छठ रविवार को नहाय खाय के साथ प्रारंभ हो गया. व्रती गंगाजल से स्नान कर अत्यंत नियमपूर्वक अरवा चावल का भात, चने की दाल, कद्दू की सब्जी बिना लहसुन प्याज के बनाकार भोग लगाकार खाया. व्रतियां सोमवार को उपवास रहकर संध्या में भोग लगाकर खरना व्रत करेगी.
मंगलवार को अस्तांचलगामी सूर्य तथा बुधवार को उदयांचल सूर्य को अधर्य दान कर पूजा अचर्ना करेगी. इस छठ व्रत को लेकर लोगों की मान्यता है कि छठ व्रत को निष्ठापूर्वक करने से असाध्य रोगों से मुक्ति, संपत्ति की प्राप्ति, पारिवारिक एवं शारीरिक सुख शांति, धन धान्य प्राप्ति तथा कठिनाईयों एवं समस्याओं से मुक्ति मिलती हैं.
मान्यता है कि आसुरी शक्तियों को पराजित करने के लिए देवताओं ने सेनानायक के रूप में शिव पार्वती के कनिष्ठ पुत्र कार्तिकेय को चुना. माता पार्वती सेना के युद्ध के लिए प्रस्थान करने के पश्चात एक नदी के तट पर पहुचीं तथा सेनाओं एवं पुत्र की मंगलकामना हेतु उन्होंने वहां अस्तांचलगामी सूर्य को अर्थ्य देकर पूजन किया तथा निर्जला व्रत धारण किया.
उन्होंने सूर्य देव के समक्ष प्रण किया कि यदि मेरा पुत्र विजय होकर सकुशल घर लौट आएगा तो मैं पुन: आपकी पूजा विधिवत अर्ध्य देकर करूगीं और तभी अपना निर्जला व्रत भंग करूगीं. अपने प्रण के मुताबिक माता पार्वती ने पुन: निष्ठापूर्वक सूर्य देवता का निर्जला वर्त रख कर पूजन किया एवं प्रात: काल जब पूर्व दिशा से क्षितिज पर सूर्य देवता अवतरित हुए तो जल एवं दूध से अर्ध्य देकर अपना व्रत तोड़ा. तब से यह पर्व आजतक जारी हैं.