खगड़िया/परबत्ता : आधुनिक युग में प्लास्टिक के तरह-तरह के डिजाइनों वाले छोटे -छोटे बरतनों के बाजार में आ जाने से मिट्टी के बरतनों का प्रयोग सिमटता जा रहा है. इससे कुम्हार जाति के पुश्तैनी धंधे में लिप्त कारीगरों के जीवन में अंधेरा छाने लगा है. दीपावली के मौके पर कुम्हार दीप, प्याला,
घड़ा आदि कम मात्रा में निर्माण कर रहे हैं. मिट्टी के बरतन बनाकर अपनी जीविका का निर्वाह करने वाले प्लास्टिक युग में रोटी की समस्या से जूझ रहे हैं. कई कुम्हार जाति के लोग अपने पुश्तैनी धंधे को छोड़ दूसरे व्यवसाय को अपना चुके हैं. परबत्ता निवासी अर्जुन पंडित बताते हैं कि पहले मुफ्त में मिट्टी उपलब्ध हो जाती थी.
अब आठ सौ रुपये टेलर मिट्टी खरीदना पडता है. उसके बाद भी समय पर मिट्टी के बनाये हुए समान नहीं बिक पाते हैं. कारण, लोग प्लास्टिक के बने बरतनन का उपयोग करने लगा है. मिट्टी के मूल्यों में लगातार वृद्धि,कच्ची सामग्री को अग्नि में पकाने के लिए अत्यधिक खर्च करना पड़ता है.
जिस कारण से पहले कि अपेक्षा मिट्टी के बर्तन कुछ मंहगी हुई हैं. विषम प्रतिस्पर्धा में भी प्रखंड के कई कुम्हार अपने पुश्तैनी धंधे अपनाए हुए हैं. आज से एक दशक पूर्व दीपावली के पहले कुम्हार के चेहरों पर दिखने वाली खुशी मायूसी में बदल गई हैं. एक समय था जब दीपावली के मौके पर परबत्ता से मिट्टी के बनाए हुए दीपक अन्य जिलों में भेजा जाता था.
उदपुर,परवत्ता,मोजाहिदा,रुपोहली,राका,खीराडीह ,कोलवारा,महद्दीपुर,आदि गांव कुम्हार जाती के लोग काफी संख्या में निवास करते हैं. ओर दीपावली के मौके पर मिट्टी के दीया बनाते थे. जो आज एक्का दुक्का परिवार अपनी पुश्तैनी धंधे को बरकरार रखे हैं. दीपक से रोशन करने वाले कुम्हार जाति के लोगों का जीवन अंधकार में हैं. बाजारों में चाइनीज समान की बिक्री जोरों पर हैं.