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प्राइवेट स्कूलों में अभिभावकों का दोहन
कटिहार: जिले में निजी विद्यालय की मनमानी रुकने का नाम नहीं ले रहा है. इन दिनों अभिभावक निजी विद्यालय की मनमानी से न केवल परेशान दिख रहे हैं, बल्कि कर्ज लेकर बच्चे का फीस जमा करने को विवश है. एक निजी विद्यालय फीस जमा नहीं होने की वजह से बच्चों का रिजल्ट रोके हुए हैं. […]
कटिहार: जिले में निजी विद्यालय की मनमानी रुकने का नाम नहीं ले रहा है. इन दिनों अभिभावक निजी विद्यालय की मनमानी से न केवल परेशान दिख रहे हैं, बल्कि कर्ज लेकर बच्चे का फीस जमा करने को विवश है. एक निजी विद्यालय फीस जमा नहीं होने की वजह से बच्चों का रिजल्ट रोके हुए हैं. जिन बच्चों का रिजल्ट रोका गया है, उनके अभिभावक नाम नहीं छापने के शर्त पर बताया कि विद्यालय प्रबंधन का साफ कहना है कि जब तक बकाया फीस जमा नहीं हो जाता है, तब तक बच्चे का रिजल्ट नहीं दिया जायेगा.
दरअसल यह मामला सिर्फ एक विद्यालय का
नहीं है. जिले में संचालित अधिकांश निजी विद्यालय की यही स्थिति है. प्रशासनिक निगरानी व हस्तक्षेप नहीं होने से निजी विद्यालय की मनमानी बढ़ती जा रही है. निजी विद्यालय के निगरानी को लेकर शिक्षा विभाग को नोडल विभाग बनाया गया है, पर यह विभाग भी पूरी तरह उदासीन है. जिले में संचालित अधिकांश निजी विद्यालय आरटीई के तहत आधारभूत संरचना को लेकर तय किये गये मानक को पूरा नहीं करती है. उसके बावजूद नियमों को ताक पर रखकर धड़ल्ले से न केवल विद्यालय का संचालन हो रहा है. प्रभात खबर में निजी विद्यालय की मनमानी को लेकर शृंखला के तहत लगातार खबर प्रकाशित हो रही है, पर अब तक जिला प्रशासन की ओर से किसी तरह का संज्ञान नहीं लिया गया है. प्रस्तुत है अभियान को जारी रखते हुए पांचवीं किस्त के रूप में निजी विद्यालय पर पड़ताल करती हुई यह रिपोर्ट.
प्रशासनिक हस्तक्षेप नहीं होने से हो रही है मनमानी : दरअसल, निजी विद्यालय की मनमानी एवं नियमों को ताक पर रखकर संचालन करने का हौसला प्रशासनिक उदासीनता की वजह से बढ़ा हुआ है. प्रशासन के स्तर पर नियमित निगरानी नहीं होने तथा अनुश्रवण नहीं किये जाने से निजी विद्यालय की मनमानी बढ़ता जा रहा है. शिक्षा अधिकार कानून के तहत दिये गये प्रावधान को अधिकांश निजी विद्यालय पालन नहीं करता है.
डायस के तहत शैक्षणिक सत्र 2015-16 में करीब 150 निजी विद्यालय ही शिक्षा विभाग को निर्धारित प्रपत्र में अपनी रिपोर्ट सौंपी है. जबकि कटिहार जिले में 300 से अधिक निजी विद्यालय का संचालन हो रहा है. डीइओ एवं डीपीओ के निर्देश के बावजूद निजी विद्यालयों ने यू डायस के लिए निर्धारित प्रपत्र में अपनी रिपोर्ट जमा नहीं कर विभाग को खुली चुनौती भी दी है. केंद्र सरकार के निर्देश पर यू डाइस के तहत निर्धारित प्रपत्र में छात्रवार आंकड़े एकत्रित करने के निर्देश के आलोक में स्थानीय जिला शिक्षा पदाधिकारी एवं जिला कार्यक्रम पदाधिकारी आदेश के बावजूद अधिकांश विद्यालय निजी विद्यालय निर्धारित प्रपत्र में रिपोर्ट जमा नहीं किया. फलस्वरूप ऐसे विद्यालय में नामांकन एवं अध्ययनरत बच्चों का डाटा विभाग को नहीं मिल सका. उल्लेखनीय है कि इसी डाटा के आधार पर केंद्र सरकार शिक्षा से संबंधित योजना तैयार करते हैं.
यूं तो निजी विद्यालय बच्चों को शिक्षा देने के नाम पर फीस के लिए कई तरह के हेड बनाया है. दूसरी तरफ वाहनों पर बच्चों को उनके घर से स्कूल तक लाने व पठन-पाठन समाप्त होने के बाद फिर घर पहुंचाने के लिए भी मोटी रकम तो अभिभावक से वसूल करता ही है, पर स्कूल वाहन में बच्चे को जिस तरह से क्षमता से अधिक ले जाया जाता है. इस मामले में स्थानीय परिवहन विभाग में मौन है. ऑटो व छोटे वाहनों से भी निजी विद्यालय बच्चे को ले जाते हैं. कई ऐसे निजी विद्यालय भी हैं जो वाहनों को निजी उपयोग के नाम के पर परिवहन विभाग से रजिस्ट्रेशन कराते हैं, जबकि उसका उपयोग विद्यालय व्यावसायिक रूप से होता है. यहां व्यावसायिक उपयोग करने के बावजूद सरकार को निजी वाहन का शुल्क चुकाया जाता है.
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