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शिक्षकों को फीस में कैश पेमेंट देना पसंद करते हैं निजी स्कूल

संशय. संचालकों की मनमानी पर समाज की खामोशी भी चौंकाने वाली जिले में निजी विद्यालय कुकुरमुत्ते की तरह उग आये हैं. हालांकि इनमें से कुछ ने बकायदा पंजीकरण भी कराया है, जबकि सैकड़ों स्कूल िबना पंजीकरण के ही चल रहे हैं. जाहिर है यहां नियमों की अनदेखी हो रही है. कटिहार : निजी विद्यालय के […]

संशय. संचालकों की मनमानी पर समाज की खामोशी भी चौंकाने वाली

जिले में निजी विद्यालय कुकुरमुत्ते की तरह उग आये हैं. हालांकि इनमें से कुछ ने बकायदा पंजीकरण भी कराया है, जबकि सैकड़ों स्कूल िबना पंजीकरण के ही चल रहे हैं. जाहिर है यहां नियमों की अनदेखी हो रही है.
कटिहार : निजी विद्यालय के मनमानी की गाथा कोई नया नहीं है. पिछले कई वर्षों से अप्रैल महीना निजी विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों के लिए टेंशन पैदा करता है. कई तरह के शुल्क लेने की वजह से अभिभावक परेशानी में रहते हैं. अधिकांश अभिभावक को अपने बच्चे की पढ़ाई का खर्च वहन करने के लिए कर्ज लेने की जरूरत पड़ जाती है. अब तो मार्केटिंग के इस दौर में बेरोजगार युवक रोजगार के दृष्टिकोण से निजी विद्यालय खोल रहा है. निजी विद्यालय के कार्य करने वाले शिक्षकों की भी अपनी कहानी है. दूसरी जगह अध्ययनरत छात्र छात्राएं शिक्षक की भूमिका अदा करते हैं. कुछ ऐसे भी होते हैं,
जिसकी पढ़ाई समाप्त हो गयी है. वह शिक्षक की भूमिका में रहते हैं. विद्यालय प्रबंधन ऐसे शिक्षकों को 2000 से लेकर 4000 तक मासिक पारिश्रमिक देते हैं. जबकि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड सीबीएसई ने निजी विद्यालय में शिक्षकों को रखने को लेकर मार्गदर्शिका भी जारी की किया है, पर उसका अनुपालन अधिकांश विद्यालय नहीं करते हैं.
दूसरी तरफ निजी विद्यालय द्वारा अभिभावकों को बच्चों के शिक्षा देने के विरुद्ध बिल थमाया जाता है. उस बिल के विरुद्ध अगर कोई अभिभावक चेक या अन्य तरह के डिजिटल पेमेंट का माध्यम अपनाते हैं तो विद्यालय प्रबंधन साफ इनकार कर देता है. विद्यालय प्रबंधन को सिर्फ कैश पसंद है. प्रभात खबर अप्रैल महीने में निजी विद्यालय के द्वारा फीस के नाम पर राशि वसूली एवं अभिभावकों की परेशानी को लेकर पिछले दो दिनों से खबर प्रकाशित कर रहा है. लेकिन शासन प्रशासन व जनप्रतिनिधियों की ओर से भी कहीं कोई सुगबुगाहट दिखायी नहीं पड़ती.
निजी विद्यालय के द्वारा अभिभावकों का किये जा रहे आर्थिक दोहन पर हर तबका खामोश नजर आ रहा है. अभिभावक तो बच्चे के भविष्य का हवाला देकर चुप्पी साध ले रहे हैं तथा आर्थिक दोहन किसी तरह सहन कर रहे हैं. पर समाज की खामोशी अपने आप में एक बड़ा सवाल है. प्रस्तुत है निजी विद्यालय की मनमानी पर पड़ताल करती प्रभात खबर की यह तीसरी कड़ी.
अभिभावकों से नकद फीस लेते हैं स्कूल संचालक : शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश निजी विद्यालय अलग-अलग मद में अभिभावक से फीस के रूप में राशि वसूल करती है. जानकारी के मुताबिक अधिकांश निजी विद्यालय को फीस के रूप में कैश पेमेंट ही पसंद है. दो दिन पूर्व एक अभिभावक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि जब उन्होंने अपने बच्चे की वार्षिक पीस 5500 रुपया चेक द्वारा विद्यालय को पेमेंट करने की कोशिश की, तो विद्यालय प्रबंधन ने चेक लेने से साफ इनकार कर दिया. अधिकांश निजी विद्यालय प्रबंधन चेक या अन्य किसी तरह के डिजिटल पेमेंट करने पर नाराज हो जाते हैं. एक निजी विद्यालय के संचालक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि नियमानुकूल कई तरह के फीस लेने की इजाजत नहीं है. चेक या डिजिटल पेमेंट से कई तरह की परेशानी उत्पन्न होने का खतरा रहता है. इसलिए अभिभावक से वह लोग नकद ही भुगतान की अपेक्षा करते हैं.
राजनीतिक व प्रशासनिक इच्छाशक्ति की भी कमी : दरअसल, प्रशासनिक व राजनीतिक इच्छा शक्ति कमी की वजह से शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में निजी विद्यालय बाजार का रूप लेता जा रहा है, जिसको जो मरजी, वही निजी विद्यालय खोल लेते हैं. कहीं कोई मानक या पैमाना नहीं है. सरकार ने शिक्षा अधिकार कानून लागू होने के बाद निजी विद्यालय की स्थापना को लेकर जो गाइड लाइन जारी किया है, उसकी भी धज्जियां उड़ाई जा रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब सत्ता में आये तो एक बड़ा काम करते हुए सामान स्कूल प्रणाली आयोग का गठन कर दिया. लोगों को लगा कि बिहार में सामान शिक्षा अब लागू हो जायेगी.
निजी विद्यालय की मनमानी समाप्त होगी. पर ऐसा हुआ नहीं, हालांकि आयोग ने समय पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी. उसके बावजूद सरकार आज तक कॉमन स्कूल सिस्टम कमीशन के रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया. फलस्वरूप निजी विद्यालय की मनमानी अब सिर चढ़कर बोलने लगी है.
शिक्षकों की गुणवत्ता को लेकर नहीं उठता कोई सवाल
निजी विद्यालय में पढ़ाना स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है. कटिहार जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश निजी विद्यालय में कार्यरत शिक्षक के शिक्षा के गुणवत्ता को लेकर कभी कोई सवाल खड़ा नहीं होता. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड एवं एनसीटीइ ने शिक्षकों को लेकर गाइड लाइन जरूर जारी किया है, पर अधिकांश निजी विद्यालय उस का अनुपालन नहीं करती है. निजी विद्यालय अपने मनमाफिक न्यूनतम पारिश्रमिक देकर बेरोजगार लोगों से शिक्षण कार्य कर आते हैं. अधिकांश निजी विद्यालय में कार्यरत शिक्षकों को प्रबंधन की ओर से पारिश्रमिक के रूप में हर महीने 2000 से 4000 तक भुगतान किया जाता है. इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2000 से 4000 तक पारिश्रमिक पाने वाले शिक्षक किस तरह की शिक्षा बच्चों को दे रहे होंगे.
अधिकांश अभिभावक को बच्चे की पढ़ाई का खर्च वहन करने के लिए लेना पड़ जाता है कर्ज
मार्केटिंग के इस दौर में बेरोजगार युवक रोजगार के दृष्टिकोण से खोल रहे निजी विद्यालय
अध्ययनरत छात्र-छात्राएं भी शिक्षक की भूमिका करते हैं अदा
2000 से 4000 तक मासिक पारिश्रमिक देते हैं स्कूल प्रबंधन
मामले की होगी जांच सच हुआ, तो कार्रवाई
निजी विद्यालयों की यदि कोई भी शिकायत मिलती है, तो निश्चित रूप से कार्रवाई होगी. िफलहाल कटिहार से बाहर हूं. कटिहार आते ही निजी विद्यालय प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करेंगे. कुछ अभिभावकों ने भी उन्हें री एडमिशन व अन्य फीस के बारे में शिकायत की है. मामला सच साबित हुआ तो कार्रवाई होगी.
श्रीराम सिंह, डीइओ

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