कटिहार : रेवेन्यू अदालतों से पारित निर्णय पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ताओं में जमीनी मामलों के निष्पादन को लेकर स्पेशल कोर्ट के गठन की आवाज उठने लगी है. दरअसल जिला पदाधिकारी के न्यायालय में मात्र दो दिनों के अंदर दर्जनों मामले में रातों-रात निष्पादित किये जाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा […]
कटिहार : रेवेन्यू अदालतों से पारित निर्णय पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ताओं में जमीनी मामलों के निष्पादन को लेकर स्पेशल कोर्ट के गठन की आवाज उठने लगी है. दरअसल जिला पदाधिकारी के न्यायालय में मात्र दो दिनों के अंदर दर्जनों मामले में रातों-रात निष्पादित किये जाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है.
अधिवक्ताओं ने आरोप लगाया है कि पूर्व के जिला पदाधिकारी ललन जी ने मात्र दो दिनों के अंदर ही महीनों से लंबित आदेश पर लिये अभिलेखों का रातों-रात निष्पादन कर दिया. अधिवक्ताओं का आरोप है कि ऐसे निष्पादन में लाखों का वारा-न्यारा किया गया है और यह एक प्रकार का न्यायिक घोटाला है. लोगों को जिला पदाधिकारी के न्यायालय से लेकर निम्न रेवेन्यू अदालतों से न्याय की आशा करना बेकार साबित हो रहा है. इस मामले में जिला पदाधिकारी के न्यायालय से जुड़े कर्मचारियों की मिलीभगत भी मानी जा रही है.
कहते हैं अधिवक्ता : व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ता श्रीकांत मंडल का कहना है कि पूर्व के जिला पदाधिकारी ललन जी ने यूं तो दर्जनों अभिलेखों को जान-बूझकर आदेश पर रखकर महीनों तक उसमें आदेश पारित नहीं किया, जो कि नियम के विरुद्ध था. लेकिन जब वे पदोन्नत होकर जाने लगे तो रातों-रात दर्जनों अभिलेखों का निष्पादन कर दिया. ज्यादातर अभिलेख ऐसे हैं, जिसमें कहीं न कहीं फिर लेनदेन की बू आती है.
अधिवक्ता ओम प्रकाश गुप्ता का कहना है कि रेवेन्यू से जुड़ी अदालत की स्थिति बहुत ही खराब हो चुकी हैं. लोगों को यहां से न्याय मिलने की अपेक्षा कम हो गयी है. रिवेन्यू से जुड़े मुख्य रूप से जिला पदाधिकारी, अपर समाहर्ता, भूमि सुधार उपसमाहर्ता तथा अनुमंडल पदाधिकारी के न्यायालय की बात करें तो वहां पर पदस्थापित पेशकार ही पदाधिकारी के रूप में अप्रत्यक्ष रूप से कार्य करते हैं. पेशकार अथवा सेवानिवृत्त पेशकार ही ऐसे पदाधिकारियों के तारणहार बन रहे हैं. पेशकार ही इन न्यायालयों के न्यायाधीश अप्रत्यक्ष रूप से कहलाते हैं. अधिवक्ता राजकुमार साह का कहना है कि रेवेन्यू से जुड़े अदालत में अब न्याय की आशा आना बेकार हो गया है.
दरअसल सरकार को रेवेन्यू से जुड़े मामलों के लिए प्रशासनिक पदाधिकारियों से वह शक्ति छीन लेनी चाहिए. इसके जिसके लिए वे काबिल नहीं है. अधिवक्ता बाबुल खान का कहना है कि कार्यपालक पदाधिकारियों के न्यायालय में निर्णय प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से धनवानों के पक्ष में सुनाये जाते हैं. इन न्यायालयों में वादों के गुना गुण के आधार पर नहीं बल्कि पेशकारों से अच्छे संबंध के आधार पर तय किये जाते हैं. अधिवक्ता चंद्रशेखर पाठक का कहना है कि जिस प्रकार सरकार विशेष एक्ट के तहत
किसी न्यायिक पदाधिकारी को शक्ति लेकर अलग न्यायालय का गठन कर वादों की सुनवाई करता है. उसी प्रकार सरकार को यह चाहिए कि रेवेन्यू से जुड़े मामले भी न्यायिक सेवा के पदाधिकारी को ही सौंपी जाय और ऐसे मामलों में रेवेन्यू स्पेशल कोर्ट कोर्ट का गठन कर उसमें रेवेन्यू से जुड़े मामलों का निष्पादन किया जाय. अधिवक्ता प्रदीप कुमार दत्ता का कहना है कि कार्यपालक पदाधिकारियों को वादों के संचालन और उसकी कार्रवाई का ज्ञान नहीं होता है तथा स्वयं के द्वारा निर्णय नहीं दिया जाता है. सिर्फ ऐसे पदाधिकारी आदेश पर बिना सोचे-समझे दस्तखत कर देते हैं. अधिवक्ता अजीत कुमार मोदी का कहना है कि 70 के दशक में जिस प्रकार अनुमंडल दंडाधिकारी से आपराधिक मामलों में संज्ञान लेने की शक्ति छीन ली गयी. उसी प्रकार रेवेन्यू न्यायालयों में समाहर्ता भूमि सुधार उपसमाहर्ता अथवा अनुमंडल पदाधिकारी के न्यायालयों से सुनवाई की शक्ति कानून में संशोधन कर हटा लेना चाहिए. चूंकि ऐसे पदाधिकारी कभी भी जमीनी विवाद को कम करने में सहायक सिद्ध नहीं होते हैं.
अधिवक्ता मोहम्मद कुद्दुस का कहना है कि लोगों को रेवेन्यू कोर्ट में न्याय नहीं मिलता है. चूंकि वकील पेशेवर होते हैं और यदि वह इन न्यायालयों में मेरिट पर वाद जीतने की अपेक्षा रखते हैं. तो पक्षकारों की नजर में तू इस सफल वकील नहीं कहलाते हैं. इन न्यायालयों में मेरिट को ताक पर रख दिया जाता है. वरिष्ठ अधिवक्ता रामानंद प्रसाद सिन्हा का कहना है कि न्यायालय से जब न्याय की अपेक्षा कम हो जाय अथवा निर्णय देने के काबिल पदाधिकारी नहीं रह जाय तो ऐसी स्थिति में आम लोगों के हित में सरकार को व्यवस्था में परिवर्तन अथवा कानून में संशोधन कर आवश्यक कार्यवाही करनी चाहिए. अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष मोहम्मद गुलाम रशीद का कहना है कि रेवेन्यू कोर्ट में पदाधिकारियों द्वारा न्यायालय नहीं किये जाने से लोगों में ऐसे न्यायालयों के प्रति विश्वास में गिरावट आयी है. कई अधिवक्ताओं का मानना है कि पूर्व के जिला पदाधिकारी ललन जी के द्वारा महीनों से आदेश पर रखे अभिलेखों को जिस प्रकार निष्पादित किया गया. वह एक बड़ा न्यायिक घोटाला है. सभी अभिलेखों में एक ही दिन में बैक डेटिंग कर निष्पादित कर दिया जाना बड़ा स्कैंडल है. अधिवक्ताओं का कहना है पूर्व की अपेक्षा अब रेवेन्यू कोर्ट के पदाधिकारियों द्वारा न्यायालय का कार्य मात्र चेंबर प्रैक्टिस रह गया है. कार्यपालक पदाधिकारियों को सिर्फ वैसे ही मामलों में अभिरुचि ली जाती है. इसमें उनका व्यक्तिगत रुचि हो अथवा उच्च न्यायालय से जुड़ा मामला हो. शेष मामले में पक्षकारों को न्याय की अपेक्षा परेशानी ही उठानी पड़ रही है.