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दियारा में नहीं है मूल सुविधाएं

दियारा में नहीं है मूल सुविधाएं चुनावी आजादी के छह दशकों के बाद भी क्षेत्र का विकास नहीं हुआफोटो नं. 9,10 कैप्सन-गांव की बदहाल सड़क, इसी तरह रह रहे लोग प्रतिनिधि, कुरसेलागंगा पार दियारा के गांवों में समस्याओं का अंबार है. देश आजादी के छह दशकों के बाद भी यहां विकास नहीं हुआ. आबादी को […]

दियारा में नहीं है मूल सुविधाएं चुनावी आजादी के छह दशकों के बाद भी क्षेत्र का विकास नहीं हुआफोटो नं. 9,10 कैप्सन-गांव की बदहाल सड़क, इसी तरह रह रहे लोग प्रतिनिधि, कुरसेलागंगा पार दियारा के गांवों में समस्याओं का अंबार है. देश आजादी के छह दशकों के बाद भी यहां विकास नहीं हुआ. आबादी को सड़क, पानी, बिजली, स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं मयस्सर नहीं हो सकी है. प्रखंड क्षेत्र के अंतर्गत पड़ने वाले गंगा नदी पार दियारा के भू-भाग पर गोबराही व बटेशपुर दियारा के गांव है. पगडंडी कच्ची टूटी फूटी सड़कें या फिर बालू का रेत यहां आवागमन का साधन है. मीलों, कोसों आवागमन के लिए इसी पर चलना होता है. बाढ़-बरसात के दिनों में इन राहों पर चलने में मुसीबत खड़ी हो जाती है. जल-जमाव, कीचड़ों थालों के प्रकोप से रास्तों पा चलना दूभर कर जाता है. पेयजल के नाम पर गंगा मैया आसरा है. नहाना, धोना, पीने का पानी सब नदियों के भरोसे पूरे होते हैं. गोबराही के गांव टोले में महज चंद कुछ लोगों के पास चापाकल है. स्वास्थ्य उपचार के लिए आबादी के बीच कोई साधन सुविधा उपलब्ध नहीं है. बीमार लोगों को खाट पर लाद कर मीलों के कच्चे बीहड़ रास्तों से गुजर कर गंगा नदी के पार उपचार के लिए ले जाने की विवशता बनी रही है. आपात स्थितियों में रोगी ससमय उपचार नहीं होने पर दम तोड़ दिया करते हैं. झोला छाप चिकित्सक और झाड़-फूंक, जड़ी-बुटियों के सहारे यहां का जन-जीवन जीता और मरता आया है. शिक्षा व्यवस्था के तहत यहां दो टोलों के प्राथमिक विद्यालय में पांचवीं तक शिक्षा की व्यवस्था है. साधन अभाव में गांव के अधिकांश बच्चे पांचवीं की पढ़ाई के बाद आगे शिक्षा छोड़ देते हैं. -नियति का कहर कटाव प्रकोप दियारा में कहर बन कर टूटता आया है. पिछले कई दशकों से नदियों के कटाव प्रकोप से दियारा के आबादी का भूगोल मिटता और बसता आया है, जिसके देश के तबाही से यहां का जनजीवन परेशान होता आया है. बावजूद यहां के लोगों ने दियारा में रहने से कभी हार नहीं माना है. दियारा का माटी गंगा का पानी व बलू का रेत इनके जीवन का आधार बनता आया है. बदौलत तमाम असुविधा के कठिनाइयों के बाद भी यहां के लोग दियारा को छोड़ नहीं पाते. -बंदूक का खौफगरजती बंदूके और मौत का खौफ भी आबादी को दियारा में निवास करने से डिगा नहीं पाती है. लूट, हत्या, रंगदारी जैसे अपराध यहां आम बने रहते हैं. कब किसकी जान चली जाय, यहां इसका कोई भरोसा नहीं होता है. किसान मजदूर आम निरीह अपराधियों के गोली के निशाने बनते रहते हैं. -चुनावी असर से अलगविधानसभा चुनाव का यहां कोई असर नहीं है. प्रचार के लिए प्रत्याशी भी यहां बिरले ही आते हैं. दलों के कार्यकर्ता प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान के लिए प्रचार कर जाते हैं. दियारा के लोगों को मतदान के लिए मीलों पैदल चल कर गंगा पार कर मतदान केंद्र पहुंचना पड़ता है. इस वजह से यहां के लोगों को मतदान करने की दिलचस्पी कम रह जाती है. आबादी के लोगों का कहना है कि किसी भी प्रतिनिधियों ने दियारा के समस्याओं को दूर करने और शांति स्थापित करने का प्रयास नहीं किया.

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