किसानों को मिले फसल की कीमत लगाने का अधिकार फोटो नं. 1 से 8 तक कैप्सन-किसानों ने दी अपनी प्रतिक्रिया :::::::::चुनावी मुद्दा :::::::::::-विधानसभा चुनाव . क्षेत्र में राजनीतिक गतिविधियां हुई तेज, किसानों का मुद्दा गौण-किसानों ने कहा , आपदा में कोई जनप्रतिनिधि नहीं देता है साथप्रतिनिधि, कटिहारसोलहवीं विधानसभा चुनाव को लेकर सरगरमी तेज हो चुकी है. पांचवें चरण के तहत कटिहार जिले की सातों सीट पर पांच नवंबर को मतदान होना है. ऐसे में प्रशासनिक व राजनीतिक गतिविधियां परवान चढ़ने लगी है. दूसरी तरफ आमलोग से जुड़े मुद्दे को लेकर भी अब लोग मुखर होने लगे हैं. प्रभात खबर आमजन से जुड़े मुद्दे को लेकर पाठकों के बीच आती रही है. खासकर चुनावी सरगर्मी में स्थानीय व जन-सरोकार के मुद्दे अधिक उठने लगे हैं. दरअसल, लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव का एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है. मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर अगले पांच वर्षों के लिए अपना प्रतिनिधि चुनते हैं. इससे क्षेत्र व राज्य का दशा और दिशा तय होता है. ऐसे में सामाजिक मुद्दे को सामने लाकर प्रत्याशी और सियासी दलों के संज्ञान में लाना जरूरी होता है. यही वजह है कि आम लोगों की तरफ से जन-सरोकार के मुद्दे पर प्रत्याशी व सियासी दलों के सामने सवाल उठने लगे हैं. ‘वोट करें-बिहार गढ़ें’ मुहिम के तहत प्रभात खबर ने भी कई मुद्दे सामने लाये हैं. इसी कड़ी में किसानों से जुड़ा मुद्दा यहां प्रस्तुत किया जा रहा है.खेती से कतराने लगे हैं किसानबाजारवाद के इस दौर में किसानों की सुधि लेने वाला कोई नहीं है. दिन-भर के कड़ी मेहनत के बाद किसान फसल पैदा करते हैं. लेकिन उसकी कीमत उसे नहीं मिलती. अन्नदाता के नाम से प्रसिद्ध किसान अपनी बदहाली पर आज भी आंसू बहा रही है. जिले में करीब 90 फीसदी से अधिक लोग खेती करते हैं. इसमें छोटे-बड़े सभी किसान शामिल हैं. किसानों के लिए खेती ही उसका आजीविका का प्रमुख साधन है. लेकिन जिस तरह की मेहनत खेती में किसानों को करनी पड़ती है, उसके अनुरूप लाभ नहीं होने से जिले के किसान हताश व निराश हैं. अब तो किसान खेती करने से भी कतराने लगे हैं. प्राकृतिक आपदा से होती है पीड़ाकिसान खेती करते हैं. खेतों में फसल लहलहाती है तब अगर प्राकृतिक आपदा यथा चक्रवातीय तूफान, बाढ़, कटाव, सुखाड़, आगजनी जैसी प्राकृतिक आपदा फसल को लील जाय. ऐसे में किसानों के उपर क्या बीतती है, यह किसान ही बता सकता है. हर साल किसानों को कोई न कोई प्राकृतिक आपदा से सामना करना ही पड़ता है. पिछले चार महीना पहले ही चक्रवातीय तूफान ने किसानों का मक्का व गेहूं के फसल को व्यापक क्षति पहुंचायी थी. आज भी उस क्षति की भरपायी नहीं हो सकी. फलस्वरूप किसान अपने पीड़ा को सीने में दबाये हुए हैं. कभी-कभी गेहूं के बाली में दाना नहीं आना भी किसानों को परेशानी में डाल देती है. इस साल किसानों के साथ ऐसा ही हुआ है. कमोवेश हर साल जिले के किसानों को प्राकृतिक आपदा से जूझना ही पड़ता है.नहीं मिली डीजल अनुदान व क्षतिपूर्तिसरकार द्वारा प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान के बाद मिलने वाले क्षतिपूर्ति के लिए आज तक किसान प्रखंड कार्यालय का चक्कर लगाते हैं. यही स्थिति डीजल अनुदान को लेकर है. राज्य सरकार ने किसानों को पांच पटवन का डीजल अनुदान देने की घोषणा की है. बताया जाता है कि डीजल अनुदान की राशि जिला मुख्यालय से प्रखंड कार्यालय भी चले गया है लेकिन किसानों को अबतक डीजल अनुदान की राशि नहीं मिली है. किसानों को मूल्य निर्धारण का अधिकारकिसानों के लिए यह सबसे बड़ी विडंबना रही है कि वह अपने उत्पादित अनाज का कीमत स्वयं नहीं लगा सकता. किसी भी कंपनी द्वारा छोटे से छोटे सामग्री के उत्पादन के बाद उसकी कीमत संबंधित कंपनी लगाती है. उसके बाद ही उसे बाजार में उतारता है. किसानों के साथ ऐसी व्यवस्था नहीं है. अनाज का उत्पादन भले ही किसान करते हैं, लेकिन उसकी कीमत के लिए बिचौलिया, व्यवसायी, बाजार व सरकार पर निर्भर होना पड़ता है. इनके द्वारा ही कीमत तय होती है कि किसानों द्वारा उत्पादित अनाज को किस दर में खरीदा जाय. किसान के घर से जब कोई अनाज व्यवसायी के पास चले जाता है, तब उसकी कीमत आसमान छूने लगती है. कहते हैं किसानहसनगंज के किसान त्रिवेणी प्रसाद मंडल, प्राणपुर के केहुनियां पंचायत के पूर्व मुखिया जगदीश प्रसाद साह, डंडखोरा के शत्रुघन सिंह, शांता देवी, अजय यादव, प्रखंड किसान मंच के सुबोध विश्वास, कंचन दास, अख्तर हुसैन आदि ने कहा कि कृषि व्यवस्था को देखते हुए खेती से मन उबने लगा है. एक तरफ किसान कर्ज लेकर खेती करती है. दूसरी तरफ उत्पादन का लागत भी वसूल नहीं हो पाता है. प्राकृतिक आपदा सहित विभिन्न तरह के संकट से किसानों का सामना होता है. किसानों द्वारा दिये जाने वाले अनुदान, क्षतिपूर्ति आदि में भी बिचौलिया हावी हैं. जब तक किसानों को अपने उत्पादित फसल की कीमत लगाने का अधिकार उन्हें नहीं मिलेगा, तब तक किसानों की सूरत नहीं बदलेगी. विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दल को अपने एजेंडे में शामिल करना चाहिए की नयी सरकार बनने पर किसानों की उत्पादित फसल की कीमत लगाने का अधिकार किसानों को दिया जायेगा.
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किसानों को मिले फसल की कीमत लगाने का अधिकार
किसानों को मिले फसल की कीमत लगाने का अधिकार फोटो नं. 1 से 8 तक कैप्सन-किसानों ने दी अपनी प्रतिक्रिया :::::::::चुनावी मुद्दा :::::::::::-विधानसभा चुनाव . क्षेत्र में राजनीतिक गतिविधियां हुई तेज, किसानों का मुद्दा गौण-किसानों ने कहा , आपदा में कोई जनप्रतिनिधि नहीं देता है साथप्रतिनिधि, कटिहारसोलहवीं विधानसभा चुनाव को लेकर सरगरमी तेज हो चुकी […]
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