ऑडिट को लेकर नहीं होता प्रचार-प्रसार, जिस दिन ऑडिट उसी दिन अखबारों में छपा विज्ञापन
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आंगनबाड़ी केंद्रों में सोशल ऑडिट के नाम पर खानापूर्ति
ऑडिट को लेकर नहीं होता प्रचार-प्रसार, जिस दिन ऑडिट उसी दिन अखबारों में छपा विज्ञापन कटिहार : जिले के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बुधवार को राज्य सरकार के निर्देश पर आंगनबाड़ी केंद्रों का सोशल ऑडिट कराया गया. आंगनबाड़ी केंद्र का यह सोशल ऑडिट महज खानापूर्ति ही रहा. स्थानीय आइसीडीएस के जिला प्रोग्राम प्रशाखा ने […]
कटिहार : जिले के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बुधवार को राज्य सरकार के निर्देश पर आंगनबाड़ी केंद्रों का सोशल ऑडिट कराया गया. आंगनबाड़ी केंद्र का यह सोशल ऑडिट महज खानापूर्ति ही रहा. स्थानीय आइसीडीएस के जिला प्रोग्राम प्रशाखा ने सोशल ऑडिट होने का दावा किया है. आइसीडीएस के जिला कार्यालय के अनुसार जिले के सभी 2792 आंगनबाड़ी केंद्रों में सफलतापूर्वक सोशल ऑडिट किया गया है. जबकि ग्राउंड रियलिटी यही है कि आंगनबाड़ी केंद्रों में सोशल ऑडिट महज खानापूर्ति साबित हुई है.
राज्य सरकार ने भी जिस दिन सोशल आॅडिट होनी है, उसी दिन मीडिया में विज्ञापन प्रकाशित किया है. इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सोशल ऑडिट के प्रति विभाग कितना संजीदा है. आंगनबाड़ी केंद्र के लिए गठित सोशल ऑडिट कमेटी में शामिल अध्यक्ष व सदस्यों को भी पता नहीं चला कि बुधवार को सोशल ऑडिट होनी है. यह अलग बात है कि सेविका व अन्य के प्रभाव में कागजी स्तर पर सोशल ऑडिट करा लिया जाता है.
बुधवार को भी यही हुआ. अगर आंगनबाड़ी केंद्रों के सोशल ऑडिट कराने की नियत सही होती तो दो-चार दिन पहले से ही इसका व्यापक प्रचार प्रसार किया जाता. पर ऐसा नहीं हुआ. बुधवार के सवेरे ही विभिन्न अखबारों में सोशल ऑडिट कराने को लेकर विज्ञापन प्रकाशित हुआ, जबकि आंगनबाड़ी केंद्र अधिकांश सुदूर इलाके में हैं. वहां अखबार की भी पहुंच नहीं है. ऐसे में उन क्षेत्रों में किस तरह सोशल ऑडिट हुआ होगा. इसका भी अंदाजा लगाया जा सकता है.
इन सेवाओं का होता है सोशल ऑडिट
राज्य सरकार के निर्देश पर आंगनबाड़ी केंद्रों से मिलने वाली सेवाओं को लेकर साल में दो बार सोशल ऑडिट कराया जाता है. समाज कल्याण विभाग के निर्देश पर सोशल ऑडिट में लाभार्थी, उसके अभिभावक, स्थानीय प्राधिकार के प्रतिनिधि आदि शामिल होते है. आंगनबाड़ी केंद्र में टीकाकरण, गर्भवती एवं धात्री महिलाओं को पूरक पोषाहार, विद्यालय पूर्व शिक्षा, रेफरल सेवाएं आदि सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती है. इन सुविधाओं को पारदर्शी बनाने एवं लाभुक तक बेहतर तरीके से पहुंचाने के उद्देश्य सोशल आॅडिट का प्रावधान किया गया. ग्रामीण क्षेत्र में वार्ड सदस्य व शहरी क्षेत्र में वार्ड आयुक्त की अध्यक्षता में सोशल ऑडिट कमेटी गठित की गयी है.
आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थिति है जगजाहिर
भले ही राज्य सरकार सोशल ऑडिट के बहाने आंगनबाड़ी केंद्र से मिलने वाली सेवाओं में पारदर्शिता लाने की पहल करती हो. पर जमीनी स्तर पर आंगनबाड़ी केंद्र से मिलने वाले सेवाओं में कोई सुधार नहीं हो रहा है. भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली नीतीश सरकार में आंगनबाड़ी केंद्र भ्रष्टाचार का पर्याय बनती जा रही है. कहीं भी चले जाइए. किसी से भी बात कर लीजिए. आंगनबाड़ी केंद्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की बात पूरी तरह जगजाहिर होने लगी है.
यही वजह है कि सोशल ऑडिट के नाम पर भी खानापूर्ति की जाती है. सोशल ऑडिट कमेटी के एक अध्यक्ष सह वार्ड सदस्य ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि सोशल ऑडिट के नाम पर सिर्फ रस्म अदायगी की जाती है. सेविका के द्वारा अपने प्रभाव से सोशल ऑडिट से संबंधित पंजी पर हस्ताक्षर करा लिया जाता है. गांव की महिला सेविका के रूप में काम करती है. इसलिए अधिक लोग उसके खिलाफ खुलकर सामने नहीं आते है. हांलाकि वार्ड सदस्य यह भी स्वीकार करते हैं कि सेविका कुमार मोहरा बनाया जाता है. जबकि सेविका के जरिए सीडीपीओ व बड़े अधिकारी तक नजराना पहुंचता है.
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