ठेलपत्थर गांव. जंगल व पहाड़ की तलहटी में बसा है आदिवासियों का गांव
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विकस से दूर सिसक रही है जिंदगी
ठेलपत्थर गांव. जंगल व पहाड़ की तलहटी में बसा है आदिवासियों का गांव सड़क, शिक्षा, पेयजल, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत जरूरतों का है अभाव सोनो : विकास को लेकर सरकारी तंत्र द्वारा नित्य नये दावों के बीच प्रखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्र व नक्सल प्रभावित इलाकों में कई ऐसे भी गांव है जहां विकास का दावा खोखला […]
सड़क, शिक्षा, पेयजल, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत जरूरतों का है अभाव
सोनो : विकास को लेकर सरकारी तंत्र द्वारा नित्य नये दावों के बीच प्रखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्र व नक्सल प्रभावित इलाकों में कई ऐसे भी गांव है जहां विकास का दावा खोखला साबित हो रहा है. चरकापत्थर थाना क्षेत्र के रजौन पंचायत अंतर्गत ठेलपत्थर भी ऐसा ही विकास से मरहूम गांव है. जंगल व पहाड़ की तलहटी में बसे लगभग दो दर्जन से अधिक घर वाले आदिवासियों के इस गांव तक न तो पक्की सड़क गयी है और न ही बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल है. पेयजल व स्वास्थ्य जैसी मूलभूत समस्या भी दूर नहीं की गयी है.पूरे गांव में सरकार की ओर से मात्र एक चापाकल है.
जिससे गांव भर के लोग अपनी प्यास बूझाते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि गांव में मात्र एक चापाकल रहने के कारण हमेशा भीड़ लगा रहता है.दो-चार दिन के लिए भी खराब होने पर हमें काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. स्थानीय प्रशासन या फिर पंचायत प्रतिनिधियों के कृपा से गांव में एक-दो चापाकल की व्यवस्था हो जाता तो हमलोगो को पेयजल के लिए काफी सहूलियत होता.उक्त गांव के लोगों को न तो सिंचाई का साधन है और न ही रोजगार की व्यवस्था.यहां के बच्चे समीप के गांव बंदरमारा स्थित स्कूल में पढ़ने जाते है. पुरुष व महिला सदस्य जंगल से लकड़ियां व दातुन लाकर बाजार में बेचते है. इनसे मिले राशि से ही यहां के लोग अपना घर चलाते है.अपने बीमार पुत्र का इलाज कराने सोनो आये ठेलपत्थर गांव निवासी बैसा मरांडी व उनकी पत्नी मंझली बसकी बताती है कि दिनभर की मेहनत के बाद मुश्किल से सौ रुपये कमा पाते है.यदि किसी दिन लकड़ी व दातुन लाने नहीं गये तो वह राशि भी नहीं मिल पाता है.स्वास्थ्य सुविधा से वंचित इस गांव के लोग बीमार होने पर ग्रामीण चिकित्सक के शरण में जाते है.स्थिति बिगड़ने पर चरकापत्थर या फिर सोनो अस्पताल आते है. ग्रामीणों के पास खेती के लायक जमीन का अभाव है. हाल के दिनों में युवाओं में शिक्षा के प्रति बढ़ी ललक के कारण कुछेक युवक पढ़ाई की ओर मुखातिब हुए है.अबतक प्रशासनिक उदासीनता का शिकर रहे ग्रामीण आक्रोशित होते हुए कहते हैं कि हमलोगों को प्रशासन से कोई बहुत उम्मीद भी नहीं है.हम भगवान के भरोसे ही यहां अपना भरण-पोषण करते हैं. मायूस बैसा मरांडी बताते है कि हमलोग बहुत गरीब व छोटे आदमी है.जबकि प्रशासन तो बड़े लोगों का ध्यान रखता है.इन हालातों व सोच के बीच यह कहना गलत नहीं होगा कि इस गांव में जिंदगी सिसक रही है.
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