हौसला से लबरेज वर्षा नक्सल प्रभावित क्षेत्र में लोगों के बीच चला रही है अभियान
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लाल गलियारे में नयी दुनिया गढ़ने में लगी है मशरूम दीदी
हौसला से लबरेज वर्षा नक्सल प्रभावित क्षेत्र में लोगों के बीच चला रही है अभियान महिलाओं को हुनरमंद बनाने पर वर्षा को लेकर मिशाल पेश करने लगे हैं लोग जमुई : लोग बुलंद हौसले और सच्चे लगने से किसी काम में लग जायें, तो सफलता अवश्य मिलती है. उक्त कथन को चरितार्थ करने में लगी […]
महिलाओं को हुनरमंद बनाने पर वर्षा को लेकर मिशाल पेश करने लगे हैं लोग
जमुई : लोग बुलंद हौसले और सच्चे लगने से किसी काम में लग जायें, तो सफलता अवश्य मिलती है. उक्त कथन को चरितार्थ करने में लगी जिले के बरहट प्रखंड क्षेत्र के नक्सल प्रभावित क्षेत्र केवाल निवासी मोहन प्रसाद की 17 वर्षीया बेटी वर्षा की मेहनत को देख गांवों के लोगों से बरबस इन दिनों यह बात निकलने लगी है. वर्षा मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में अपने परिवार तथा गांव भर के लोगों को आत्मनिर्भर बना कर मिशाल कायम कर रही है. बीए की छात्रा वर्षा बताती है
कि मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में पहले पिताजी का हाथ बंटाती थी. अब अपना उत्पादन के साथ-साथ गांव के करीब ढेड़ से दो सौ महिला को इस क्षेत्र से जोड़कर काम कर रही हूं. वर्षा की सफलता को देखकर क्षेत्र के युवक-युवतियों में भी पढ़ने और कुछ करने की ललक जगने लगी है. क्षेत्र में मशरूम दीदी के रूप में चर्चित हो रही वर्षा की सफलता को क्षेत्र के लोग मिशाल के रूप में पेश करने लगे हैं.
माता-पिता की प्रशंसा से मिला बल
वर्षा बताती है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण इस क्षेत्र में सरकारी योजना भी खुलकर मूर्तरूप नहीं ले पाता है. लोग खेतीबारी कर ही अपना जीविकोपार्जन किसी तरह से करते रहे हैं. करीब तीन-चार साल पूर्व पिताजी श्रम भारती खादीग्राम, परिवार विकास जैसी संस्था के सहयोग से अपने घर में मशरूम उत्पादन का कार्य प्रारंभ किये थे. मां भी उनके कार्य में सहयोग करती थी. पांच भाई-बहन में बड़ी संतान होने के कारण मैं भी उनके कार्य में हाथ बंटाती थी. मेरी लगन और मेहनत को देख मां-पिताजी काफी प्रशंसा करते थे. इससे मुझ काफी बल मिला ओर मैं पढ़ाई के साथ-साथ खुलकर मशरूम उत्पादन में लग गयी. हमारी मेहनत रंग लाया ओर अच्छा-खाशा मुनाफा होने लगा. जिससे मेरे हौसला को बल मिलने लगा. अब पिताजी बीज और बाजार आदि पर ध्यान देने लगे और उत्पादन की जिम्मेवारी मेरे ऊपर आ गयी. इसे देखकर प्रारंभ में आसपास की महिला और युवक-युवती भी मुझसे मशरूम उत्पादन के गुर सीखने लगे. धीरे-धीरे पूरे गांव की महिला और अन्य लोग मेरे साथ जुड़ते गये. वर्तमान में करीब दो सौ महिला मेरे साथ जुड़कर मशरूम उत्पादन कर आत्मनिर्भर बन रही है. वर्षा बताती है कि सुदूर ग्रामीण और नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण ज्यादतर महिला बीड़ी और दैनिक मजदूरी आदि की धंधा से जुड़कर ही अपना जीविका किसी तरह से चलाती रही है, जबकि इस धंधा से इनके शारीरिक विकास को बाधा पहुंचती है. जिसे देख भी मेरे मन में अजीब-सी परेशानी महसूस होते रहती थी. गांव के महिलाओं को इन कामों से अलग कर आत्मनिर्भर बनाने में मुझे काफी अच्छा लग रहा है. वर्षा बताती है कि महिलाओं को सही कार्य में लगाकर आत्मनिर्भर बनते देख मुझे आगे भी समाजहित में कार्य करने की ललक बढ़ने लगी है.
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