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दिव्यांग राजेश लगा रहा जिंदगी की दौड़

प्रेरणा बुलंद हौसले से संवार रहा परिवार की तकदीर पंचदेवरी : लोग विकलांगता को अभिशाप मान कर जिंदगी से हार मान लेते हैं और इस कदर टूट जाते हैं कि कुछ करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. लेकिन, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कभी जिंदगी की जंग में पीछे नहीं हटते. परिस्थितियां चाहे […]

प्रेरणा बुलंद हौसले से संवार रहा परिवार की तकदीर

पंचदेवरी : लोग विकलांगता को अभिशाप मान कर जिंदगी से हार मान लेते हैं और इस कदर टूट जाते हैं कि कुछ करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. लेकिन, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कभी जिंदगी की जंग में पीछे नहीं हटते. परिस्थितियां चाहे कैसी भी हो, बुलंद हौसले के साथ बाधाओं को रौंदते हुए अपनी तकदीर को संवारने लगते हैं. यह वाकया एक ऐसे युवक की जीवनी को बयां कर रहा है, जिसके पैर तो नहीं हैं, लेकिन जिंदगी की दौड़ में कभी पीछे नहीं हटा है. पंचदेवरी प्रखंड के गोपालपुर गांव निवासी राजेश कुमार आज समाज के उन लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन चुका है, जो अपने आप को असहाय मान कर संघर्ष नहीं करते,
बल्कि जिंदगी की जंग में निराश होकर हार मान लेते हैं. राजेश विकलांग है. पांच वर्ष की उम्र में ही वह पोलियो का शिकार हो गया था. सही ढंग से शिक्षा भी उसे नहीं मिल सकी. उसके पिता वीरेंद्र साह एक मामूली किसान हैं. घर की परिस्थितियां ऐसी थीं कि पांचवीं के बाद मजबूर होकर पढ़ाई छोड़नी पड़ी. उच्च शिक्षा ग्रहण करने की चाहत पूरी नहीं हो सकी. बचपन में ही उसके सारे अरमान बिखर गये, लेकिन राजेश हतोत्साहित नहीं हुआ. परिस्थितियों ने साथ नहीं दिया तो क्या हुआ, कुछ कर गुजरने का जज्बात तो उसके अंदर था ही.
पांचवी पास करने के कुछ ही वर्षों बाद उसने ट्राइ साइकिल के लिए जिला मुख्यालय का चक्कर लगाना शुरू कर दिया. सरकार की तरफ से ट्राइ साइकिल जब मिली, तो उसे लगा की जिंदगी का एक बहुत बड़ा सहारा मिल गया है. अगले दिन से ही राजेश ने उठा ली ट्राइ साइकिल और शुरू कर दिया कपड़ों का व्यवसाय. पास के समउर बाजार से कपड़े खरीदना और उसे ट्राइ साइकिल पर लाद कर गांव-गांव बेचना उसकी दिनचर्या बन गयी. राजेश 10 वर्षों तक लगातार इस काम से अपने परिवार का भरण-पोषण करता रहा है. मां-बाप, चार भाई और तीन बहनों का बोझ अपने सिर पर उठा कर कभी उन्हें किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी.
कर्ज लेकर खरीदा बाइक : इसी बीच राजेश ने अपनी दो बहनों हेमा और किरण की शादी भी की. भाई -बहनों में सबसे बड़ा होने के नाते सारी जिम्मेवारियां इसे ही संभालनी थी. लेकिन, राजेश थोड़ा भी विचलित नहीं हुआ. धैर्य और साहस का परिचय देते हुए वह अपने व्यवसाय में निरंतर लगा रहा. राजेश बताता है कि परिवार का बोझ बढ़ता गया, लेकिन आमदनी में उस रफ्तार में नहीं बढ़ी, तो ब्याज पर रुपये कर्ज लेकर तीन चक्के वाली प्लीजर बाइक खरीदी और अपने व्यवसाय क्षेत्र को और बढ़ाया. राजेश अपने तीन छोटे भाइयों बबलू,भरदुल और छठू को उच्च शिक्षा देकर अच्छी नौकरी दिलाना चाहता है. उसके पैर खुद शरीर का बोझ संभालने में सक्षम नहीं है, लेकिन उसने खुद पूरे परिवार का बोझ संभाल कर एक मिसाल कायम तो की ही है, समाज के लिए प्रेरणास्रोत भी बन चुका है. आज समाज के लोग उसके धैर्य, साहस, ऊंचे सोच और कड़ी मेहनत की दाद दे रहे हैं. क्षेत्र में उसे सम्मान की नजर से देखा जा रहा है.

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