पंचदेवरी : पंचदेवरी जिले का सबसे छोटा प्रखंड जरूर है, लेकिन राजनीति के क्षेत्र में जिले में इसकी एक अलग पहचान है. पंचायत चुनाव हो या विधानसभा या फिर लोकसभा का चुनाव ही क्यों न हो, राजनीतिक समीकरण तैयार करने में पंचदेवरी की अहम भूमिका होती है. यहां के राजनीतिक धुरंधर हर पहलू में माहिर हैं. यहां के प्रखंड स्तरीय चुनाव के इतिहास पर गौर करें, तो 1997 में पंचदेवरी एक अलग प्रखंड के रूप में उभर कर जिले के मानचित्र पर आया.
उसके बाद 2001 में जब त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हुआ, तो पंचायत के पहले प्रमुख बने लोहटी अनुग्रह नारायण दूबे. इनके कार्यकाल का दो वर्ष जैसे ही पूरा हुआ राजनीतिक दावं-पेच शुरू होने लगा. फरवरी, 2003 में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, जिसमें अनुग्रह नारायण दूबे को कुरसी गंवानी पड़ी और प्रमुख बने महंथवां के परमात्मा सिंह. यह 2006 तक इस पद पर काबिज रहे. 2006 के चुनाव में सबेयां के रवि प्रकाश मणि त्रिपाठी प्रमुख चुने गये, जिन्होंने पूरे पांच साल तक प्रखंड की बागडोर संभाले रखा. फिर 2011 में जब पंचायत चुनाव हुआ, तो प्रमुख पद नटवां के वीरेंद्र मदेशिया को हासिल हुआ.
इनके कार्यकाल के दो वर्ष पूरे होते ही राजनीति शुरू हो गयी. आखिरकार 24 अक्तूबर, 2013 को राजनीति के शिकार हुए बीडीसी सदस्यों ने अविश्वास प्रस्ताव लाया. हालांकि उस बार वीरेंद्र मदेशिया अपनी कुरसी बचाने में सफल रहे. अंतत: अपने कुशल राजनीतिक ज्ञान का परिचय देते हुए वीरेंद्र मदेशिया ने वर्ष 2014 के अंत में स्वेच्छा से प्रमुख पद छोड़ दिया. फिर 13 जनवरी, 2015 को चुनाव हुआ, जिसमें तेतरिया के प्रमोद गुप्ता की पत्नी पूनम देवी निर्विरोध प्रमुख चुनी गयीं. इस तरह इतिहास साक्षी है कि पंचदेवरी के कूटनीतिज्ञों ने रवि प्रकाश मणि त्रिपाठी को छोड़ कर किसी भी प्रमुख को बख्शा नहीं है.