गोपालगंज : 92 वर्ष की उम्र, झुकी हुई कमर, चेहरे पर झुर्रियां, लेकिन जज्बात वही पुरानी. आजादी का नाम लेते ही आज भी बटुकेश्वर पांडेय की भृकुटियां तन जाती हैं. आज देश 67वें गणतंत्र मना रहा है. आजादी के इस लंबे अंतराल के बाद आज भी स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर पांडेय का जज्बा और देश के प्रति दीवानगी वही है, जो 1942 में थी. बरौली प्रखंड के कोटवां गांव के निवासी तब 18 वर्ष के थे, जब देश में भारत छोड़ो आंदोलन की आग धधक रही थी.
ब्रह्मचारी विज्ञानानंद के सानिध्य में पांडेय ने छात्र जीवन छोड़ कर आजादी की जंग में छलांग लगा दी. थाना जलाने, रेल लाइन उखाड़ने और सरकारी खजाने को क्षति पहुंचाने में पांडेय ने अहम भूमिका निभायी. वे बताते हैं कि प्लान के मुताबिक सासामुसा स्टेशन के पास ट्रेन रोक कर खजाना लूटना था. सेमरिया गांव के पास वे पहुंच गये, लेकिन उनके अन्य साथी समय पर नहीं पहुंचे. उन्होंने अकेले ही ट्रेन रोक दी और खजाना लूटने के लिए सिपाहियों से जूझ पड़े. अंतत: गिरफ्तार हो गये और उन्हें गोरखपुर जेल भेज दिया गया. फिर 1947 तक जेल जाना और फिर बाहर आकर आजादी की जंग लड़ना जारी रहा.
आजादी मिली और आजाद भारत में पांडेय जी बतौर शिक्षक अपनी जिंदगी बिताते रहे. इस 67वें गणतंत्र पर पूछने पर उन्होंने बताया कि आजादी के मूल्यों को वर्तमान पीढ़ी भुला चुकी है. देश विकृतियों के दौर से गुजर रहा है. हमें अधिकार मिले हैं, लेकिन आज की व्यवस्था अतीत को आहत कर जाती है. फिर भी प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि देश की एकता और अखंडता के लिए तत्पर रहे. हम टूटेंगे, तो गुलाम हो जायेंगे. इसलिए एकजुट होकर अपनी स्वतंत्रता और भारतीय गणतंत्र का अलख युवा पीढ़ी जगाये रखें. ऐसे स्वतंत्रता सेनानी को गणतंत्र के इस पावन पर्व पर कोटि-कोटि नमन.