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आसाराम के आश्रम की हुई जांच, डीएम को सौंपी रिपोर्ट

राजेश पांडेय ,कुचायकोट. तारा नरहवां में आसाराम के आश्रम की जांच कर जांच टीम ने रिपोर्ट बुधवार को डीएम कृष्ण मोहन को सौंप दी. जांच में पाया गया है कि यह जमीन गैरमजरूआ मालिक रानी का बगीचा खतियान में दर्ज है.आश्रम बनने के पूर्व इलाके के लोग इसे सरकारी जमीन और सार्वजनिक काम के लिए […]

राजेश पांडेय ,कुचायकोट.
तारा नरहवां में आसाराम के आश्रम की जांच कर जांच टीम ने रिपोर्ट बुधवार को डीएम कृष्ण मोहन को सौंप दी. जांच में पाया गया है कि यह जमीन गैरमजरूआ मालिक रानी का बगीचा खतियान में दर्ज है.आश्रम बनने के पूर्व इलाके के लोग इसे सरकारी जमीन और सार्वजनिक काम के लिए उपयोग करते थे.तारा नरहवां में इस जमीन को लेकर कई बार संघर्ष भी हो चुका था, फिर भी इलाके के लोग इस पर कब्जा नहीं होने दिया था . इसे सार्वजनिक रखने के उद्देश्य से लोग किसी को जमीन पर उपयोग नहीं करने देते थे. इस बीच पुर खास क निवासी कल्पनाथ राय जो आसाराम के अहमदाबाद आश्रम के शिष्य बता कर इसी जमीन पर आश्रम बनाने क नाम पर 27 जनवरी, 2000 को नींव डाली . लोगों ने धर्म के नाम पर इस जमीन पर आश्रम बनने पर आपत्ति नहीं जतायी . ग्रामीणों ने जांच टीम के सामने इसका खुलासा किया . ग्रामीणों ने यह भी कहा कि यह सार्वजनिक जमीन थी . अब आश्रम को हटा कर फिर से सार्वजनिक घोषित किया जाये. उधर अंचल पदाधिकारी सुनील कुमार सिंह के समक्ष सेवादार कल्पनाथ राय के भाई मुंशी राय ने 1967 में हथुआ की महारानी दुर्गेश्वरी शाही के द्वारा लिखे गये डीड को प्रस्तुत करते हुए 1978 से अपने नाम का रसीद कटाने का दावा किया है. इसको लेकर पूरी रिपोर्ट डीएम को सौंपी गयी है. 1967 में महारानी दुर्गेश्वरी शाही ने जिस डीड से जमीन मुंशी राय के नाम लिखा है. उस डीड के सत्यापन के लिए छपरा रजिस्ट्री कार्यालय में जांच कराने की बात कही गयी है. जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट में कागजात की उच्चस्तरीय जांच कराने की सलाह दी है. अब ग्रामीणों का सवाल यह है कि 1967 में रजिस्ट्री कराने के बाद मुंशी राय ने 11 वर्षो तक उस जमीन का लगान का निर्धारण क्यों नहीं कराये.वर्ष 2000 तक आश्रम बनने के पूर्व इस जमीन पर दावा क्यों नहीं किया गया . उधर भू हदबंदी वाद संख्या 243/03 /73-74 में राज्य सरकार बनाम दुगेर्ंश्वरी शाही मामले में डीएम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि 1962-63 से 1971-72 तक में जितनी जमीन की रजिस्ट्री की गयी है. वह फर्जी अंतरण की गयी है, जिसे पटना उच्च न्यायालय ने भी अपने फैसले में सही पाया है.

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